ममता तिवारी
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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कैसे बंधन हैं यही,कैसे कैसे जाल।
बाँधे कोई प्रेम से,नफरत कोई पाल॥
इक हो बंधन क्रोध पे,गुस्सा खाये आप।
जले क्रोध करते समय, खुद पर कर ना पाप॥
निज मन की सुनते सभी,सबकी सुनते संत।
साधु शब्द जाने नहीं,फिरते बने महंत॥
बनो संत कर दिल बड़े,मधुवाणी गल घन्त।
दाढ़ी कितनो बढ़ लियो,दु:ख की होत न अंत॥
बाँधो घागे प्रेम के,छल की रस्सी तोड़।
सच को आये आँच ना,झूठी माया छोड़॥
पालन अपने फर्ज की,बंधन खुद की भार।
हित कर देश समाज की,ध्यान लगा परिवार॥
तुष्टि बाँध धागे रखो,तृष्णा रस्सी त्याग।
हो बंधन संतोष जो,भखे न लालच व्याग॥
बाँध अंध अज्ञान को,आ फिर ज्ञान प्रकाश।
बनो भले मानुष उड़ो,निर्मल लख आकाश॥
आन नहीं हिंसा तजो,कर ना मन तकरार।
जैसे को तैसा करो,मानवता व्यवहार॥
कभी प्रदूषण हो नहीं,आज प्रकृति को बांध।
जीव जगत ना ताड़ना,चलो मिलाकर काँध॥