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अक्षय फलदायक पर्व है आखा तीज

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को बसंत ऋतु का समापन होकर ग्रीष्म ऋतु प्रारम्भ होती है और इसी दिन को सनातनी अक्षय तृतीया या आखा तीज कहते हैं। यह दिन अबूझ या सर्वसिद्ध या स्वयंसिद्ध मुहूर्त में माना गया है, इसलिए सनातन धर्म में अक्षय तृतीया का दिन बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन किसी भी तरह के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। यही कारण है कि, इस दिन किया गया जप,तप,हवन,स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। इसका अर्थ है कि इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है। माना तो यहाँ तक जाता है कि इस दिन यदि हम जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करें तो भगवान क्षमा ही नहीं करते, बल्कि सदगुण भी प्रदान कर देते हैं। यही कारण है कि आज भी अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में हमेशा-हमेशा के लिए समर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परम्परा है।
अब अक्षय तृतीया से जुड़ी कुछ रोचक पौराणिक घटनाएं ध्यानार्थ-

भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है,यानि सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ आज ही के दिन हुआ था।

अक्षय तृतीया के दिन प्रभु विष्णु के तीन अवतारों की पूजा की जाती है-एक भगवान परशुराम,दूसरा नर नारायण और तीसरा हयग्रीव,क्योंकि इन सभी का जन्म आज ही के दिन हुआ था।

एक रोचक तथ्य यह भी कि प्रभु विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम उन आठ पौराणिक पात्रों में से एक हैं,जिन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है। इसी अमरता के चलते यह तिथि अक्षय मानी गई है।

ऐसी मान्यता है कि माता लक्ष्मी और प्रभु श्री विष्णु का विवाह इसी दिन हुआ था।

आज ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था,यानि भगीरथ जी तपस्या के बाद गंगा जी को इसी दिन धरती पर लाए थे।

ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी आज ही के दिन हुआ था ।

मान्यता है कि भंडार और रसोई की देवी माता अन्नपूर्णा(दूसरा नाम ‘अन्नदा’ )का जन्म भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था।

आज ही के दिन प्रभु महादेव कुबेर की तपस्या से खुश हो ऐश्वर्य का आशीर्वाद दिया जिससे उन्हें माता लक्ष्मी की प्राप्ति हुई।

द्वापर युग में प्रभु श्रीकृष्ण के परम बाल सखा सुदामा ने अक्षय तृतीया के दिन ही प्रभु श्रीकृष्ण से मुलाकात कर उपहार में उन्हें बड़े ही संकोच के साथ सूखे चावल भेंट किए थे जिसके चलते उनके भौतिक जीवन का उद्धार हुआ।

महर्षि वेदव्यासजी और श्री गणेशजी द्वारा इस शुभ दिन से ही महाकाव्य महाभारत के लेखन का प्रारंभ हुआ था।

अक्षय तृतीया के दिन ही पाण्डव ज्येष्ठ युधिष्ठिर को वरदान स्वरुप वह अक्षय पात्र मिला,जिसमें रखी हुई भोजन सामग्रियां तब तक अक्षय रहेंगीं,जब तक द्रौपदी परोसती रहेगी।

अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर ही द्वापर युग के साथ महाभारत युद्ध का भी समापन हुआ था।

प्रसिद्ध पवित्र तीर्थस्थल श्री बद्री नारायण जी के कपाट भी अक्षय तृतीया वाली तिथि से ही दर्शनार्थ खोले जाते हैं।

साल में एक ही बार अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर वृंदावन के श्रीबांकेबिहारी जी मंदिर में भक्तों को श्री विग्रह चरण के दर्शन होते हैं।

अक्षय तृतीया जैन धर्मावलम्बियों के महान धार्मिक पर्वों में से एक है। इस दिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान (भगवान आदिनाथ भी) ने एक वर्ष की पूर्ण तपस्या करने के पश्चात इक्षु (शोरडी-गन्ने) रस से पारायण किया था। इसी कारण से जैन धर्म में इस दिन को इक्षु तृतीया भी कहते हैं। इसलिए यह दिन भगवान आदिनाथ, जैनों के पहले भगवान की स्मृति में मनाया जाता है।

बताना चाहूँगा कि आखा तीज को ही बीकानेर नगर(राजस्थान) की स्थापना हुई और पतंगें उडा़कर उत्सव मनाया गया था।

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