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एक अनन्य प्रार्थना

मधु मिश्रा
नुआपाड़ा(ओडिशा)
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विश्व शांति दिवस स्पर्धा विशेष……

प्रतिदिन अम्मा जलाया करती है…
आँगन की दिव्य तुलसी और,
घर की देहरी में…
संध्या के दो दीप…।
जिसमें वो किया करती है,
अपने परिवार की सुख़ समृद्धि…
और उनके उत्तम स्वास्थ की कामना…।
पर अम्मा,अब से जो तुम..दीपक जलाओ तो,
कर लेना एक ऐसी आत्मिक प्रार्थना…
कि,हे ईश्वर..मेरे विश्व में आई महामारी को…
शीघ्र समूल नष्ट करो…।
अभी तो विश्व का समस्त प्राणी हर पल…
दहशत के साये में जी रहा है।
इस विपदा का विष तो जैसे…,
यहाँ की हवाओं में ही पल रहा है।
हर पल का ये भय…,
अब तो साँसों को भी अवरुद्ध-सा कर रहा है।
इसीलिए…आज जब दीप जलाओ..तो..
अम्मा तुम दीपक से ये भी ज़रूर कहना…
कि,तुम्हारी सतह की तरह ही…
विश्व में भी शीघ्र ही हो जाए,
स्थिर मन और शांति की स्थापना…।
और हर दीप में जलती हुई घी की बाती से…
जो दिव्य अलौकिक प्रकाश होगा न।
उसकी अनंत ऊर्जा का संचार…
विश्व के समस्त प्राणियों के लिए…
आरोग्य का अद्भुत वरदान बन जाए॥

परिचय-श्रीमती मधु मिश्रा का बसेरा ओडिशा के जिला नुआपाड़ा स्थित कोमना में स्थाई रुप से है। जन्म १२ मई १९६६ को रायपुर(छत्तीसगढ़) में हुआ है। हिंदी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती मिश्रा ने एम.ए. (समाज शास्त्र-प्रावीण्य सूची में प्रथम)एवं एम.फ़िल.(समाज शास्त्र)की शिक्षा पाई है। कार्य क्षेत्र में गृहिणी हैं। इनकी लेखन विधा-कहानी, कविता,हाइकु व आलेख है। अमेरिका सहित भारत के कई दैनिक समाचार पत्रों में कहानी,लघुकथा व लेखों का २००१ से सतत् प्रकाशन जारी है। लघुकथा संग्रह में भी आपकी लघु कथा शामिल है, तो वेब जाल पर भी प्रकाशित हैं। अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में विमल स्मृति सम्मान(तृतीय स्थान)प्राप्त श्रीमती मधु मिश्रा की रचनाएँ साझा काव्य संकलन-अभ्युदय,भाव स्पंदन एवं साझा उपन्यास-बरनाली और लघुकथा संग्रह-लघुकथा संगम में आई हैं। इनकी उपलब्धि-श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,भाव भूषण,वीणापाणि सम्मान तथा मार्तंड सम्मान मिलना है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-अपने भावों को आकार देना है।पसन्दीदा लेखक-कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद,महादेवी वर्मा हैं तो प्रेरणापुंज-सदैव परिवार का प्रोत्साहन रहा है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी मेरी मातृभाषा है,और मुझे लगता है कि मैं हिन्दी में सहजता से अपने भाव व्यक्त कर सकती हूँ,जबकि भारत को हिन्दुस्तान भी कहा जाता है,तो आवश्यकता है कि अधिकांश लोग हिन्दी में अपने भाव व्यक्त करें। अपने देश पर हमें गर्व होना चाहिए।”

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