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आनंद सुरभि यश गायन हो

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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ओंकार शान्ति मन भावन हो,
परमेश भजन नित सावन हो
अभिलाष हृदय सेवन भारत,
आनन्द सुरभि यश गायन हो।

परमार्थ निकेतन जीवन हो,
अरुणाभ भोर शुभ कारज हो
हो सत्य पथिक यायावर जग,
सारस्वत विवेक मन सारथ हो।

सत्संग मुदित गति चाल नवल,
नीलाभ ललित निशिचन्द्र विमल
तज मोह भोग भौतिक साधन,
अनुराग राष्ट्रहित जीवन हो।

आनन्द धरा सब पेट भरे,
सब जन शिक्षा नित सुलभ बने
मानवीय मूल्य संवाहक जन,
नैतिक सरसिज शुभ चरित खिले।

आचार विनत नवनीत प्रकृति,
समुदार हृदय करुणा झंकृति
क्षुधार्त शमन हो गेह वसन,
मुस्कान अधर जन जीवन हो।

सुविचार सतत नव दीप बने,
बलिदान राष्ट्रहित गीत बने
परिवार धरा माने चितवन,
सम्मान श्रेष्ठ आशीष मिले।

नित मातु-पिता रज चरण कमल,
गुरुजन सन्नधि सुखकारक हो
ओंकार जगत् सत्पावन पथ,
परपीड़ हरण नारायण हो।

नवकीर्ति सृजन सत्कर्म फलन,
कुशाग्र बुद्धि हित साधन हो
रवि किरण समा अभिलाष मना,
संघर्ष बाध समझ फल पूरण हो।

देशार्थ जिया परमार्थ धरा,
मनुज,क्षणिक गात्र सफल समझो
मलवाहक तन नव कीर्ति भरा,
परब्रह्म कृपा जीवन समझो।

काय अनिल क्षिति जल पावक नभ,
हो निर्मित सदा नश्वर आरभ,
अनमोल धरोहर ईश्वरकृत,
नायाब पुण्य साधक समझो।

निर्माण नया नव जीवन हो,
अनुसन्धान धरा कल्याणक हो
हो शौर्य वतन खल रिपुसूदन,
सत् त्याग न्याय पथ चिन्तन हो।

जन कण्ठनाद जय भारत हो,
अनुनाद हिन्द यश गायक हो
बने विश्वगुरु जग शक्ति शिखर,
पुरुषार्थ क्षमा जय नायक हो।

नीलाभ कीर्ति अरुणाभ कर्म,
समदर्श भाव सुख क्षितिज मिले
शुभ हरित भरित भू सिन्धु गगन,
राष्ट्र नेह चमन हरि भक्ति खिले।

रोगमुक्त लोक रत योग सबल,
मन स्वस्ति,स्वच्छ कानन द्रुम दल
सुख चन्द्रहास निशि कुमुद गन्ध,
अरुणिम प्रभात नव शक्ति बने।

नारायणी नार्य शक्ति समझ़,
करुणा ममता अनुरक्ति समझl
सम धरा सदय वात्सल्य हृदय,
नव दुर्गा भारत माँ समझोll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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