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सभा

देवश्री गोयल
जगदलपुर-बस्तर(छग)
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पितृपक्ष विशेष……..

आज चित्रवन में कागा समाज में कागा महाराज ने बड़ी सभा (मीटिंग) बुलाई है,यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई। सभी कौओं ने समय और जगह की पुष्टि के लिए खूब चिल्ला-चिल्ली की,और नियत समय में पहुंचने के लिए जल्दी-जल्दी घर लौटने लगे। शाम के ४ बजे चित्रवन के सबसे पुराने बरगद के पेड़ के ऊपर सभी कागा- कागी अपने परिवार के साथ जमा हो गए थे। जो नहीं पहुंचे थे,उसे बुुलाने के लिए कोतवाल कागा दौड़-दौड़ कर जा रहे थे। गजब की एकता थी कागा समाज की। सभी को कागा महाराज के आने का इंतजार था। आखिर सबको आने वाले दिनों में मोहल्ले का बंटवारा जो मिलना था। आखिर इंतजार खत्म हुआ,कागा महाराज का पदार्पण हुआ। सभी कौवे शांत हो गए। सुर्ख काले लिबास में अपनी काली कलगी को उन्होंने जरा हल्के से झटका और सभी का अभिवादन बड़ी ही अदा से स्वीकार किया,और जोर से बोले- ‘काँव-काँव’,तो पूरा कागा समाज खुश होकर चिल्लाने लगा-‘काँव-काँव।’ कागा महाराज ने सचिव को बुलाया और पूरे शहर की सूची दिखाने को कहा। बोले,सुनो! बड़ी हवेलियों की तरफ मैं और मेरा पूरा परिवार और मेरे मंत्री जाएंगे,क्योंकि इनमें रहने वाले लोग अपने माँ-बाप को मरने के बाद बहुत अच्छा खाना खिलाते हैं। खीर,पूरी,मिठाई,कचौड़ी चटनी और जाने क्या-क्या…? बड़ा दिल होता है ना उनका ?? शहर के दूसरे छोर में जो लोग रहते हैं,वे अपने माता-पिता के मरने के बाद उधार ले-ले कर खाना खिलाने के लिए अपने लोगों को बुलाते हैं और जमकर खिलाते हैं,ताकि लोगों को पता तो चले कि वह अपने माता-पिता से कितना प्यार करते हैं ?? हाँ,शहर के आखरी छोर की तरफ मत जाना। वह भिखमंगों की बस्ती है। इन बस्ती के लोगों को बिल्कुल भी तमीज नहीं है,यह लोग रास्ते में फेंके हुए हमारे खाने को भी ढूंढ-ढूंढ कर ले जाते हैं। इसलिए,इनसे सावधान रहना। एक खास बात अपना नखरा बनाए रखना,जब तक इंसान चार-पांच बार तुम्हें ना बुुलाए,बिल्कुल नहीं जाना। आखिर इन्हीं दिनों तो हमारी इज्जत होती है। अब सब जाएं और मजे करें।
एक छोटू कागा,जो बहुत देर से यह सब सुन रहा था,पर उसे समझ कुछ नहीं आ रहा था, तो उसने माँ से पूछा,-माँ क्या हो रहा है ? हमें कहां जाना है?
माँ बोली,कुछ नहीं। बेटा इंसानों के यहां साल में कुछ दिन अपने मरे हुए माँ-बाप को खाना खिलाने का अजीब रिवाज है।’
पर माँ वह तो मर चुके हैं ? वह कैसे खाएंगे ?
माँ ने कहा-वही तो,उनके हिस्से का खाना ही तो वो हमको देते हैं।
अच्छा!ओह! छोटू कागा सोच रहा था यह इंसान कितने अच्छे हैं,मरने के बाद अपने माता-पिता को खाना खिलाते हैं। अगर पूरा खाना जीते-जी खिला देते तो बाद में हम लोग क्या खाते भला…??” और सभा का विसर्जन हो चुका था।

परिचय-श्रीमती देवश्री गोयल २३ अक्टूबर १९६७ को कोलकाता (पश्चिम बंगाल)में जन्मी हैं। वर्तमान में जगदलपुर सनसिटी( बस्तर जिला छतीसगढ़)में निवासरत हैं। हिंदी सहित बंगला भाषा भी जानने वाली श्रीमती देवश्री गोयल की शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी, अंग्रेजी,समाजशास्त्र व लोक प्रशासन)है। आप कार्य क्षेत्र में प्रधान अध्यापक होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत अपने कार्यक्षेत्र में ही समाज उत्थान के लिए प्रेरणा देती हैं। लेखन विधा-गद्य,कविता,लेख,हायकू व आलेख है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है,क्योंकि यह भाषा व्यक्तित्व और भावना को व्यक्त करने का उत्तम माध्यम है। आपकी रचनाएँ दैनिक समाचार पत्र एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैं,जबकि प्रेरणा पुंज-परिवार और मित्र हैं। देवश्री गोयल की विशेषज्ञता-विचार लिखने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा हमारी आत्मा की भाषा है,और देश के लिए मेरी आत्मा हमेशा जागृत रखूंगी।”

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