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भूल

देवश्री गोयल
जगदलपुर-बस्तर(छग)
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मंदिर की सीढ़ी चढ़ते समय नीलिमा की आँख भरी हुई थी…,और वो बुदबुदाते हुए जा रही थी,-“मेरी सारी गलती माफ कर दीजिए भगवन,बस एक बार और मेरी गोद भर दीजिए…l”
पता नहीं,आज उसका मन क्यों बहुत ही अकुला रहा था…! उसे उसका अतीत,जो बेहद काला था…याद आ रहा था…l
नीलिमा थी तो मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की,पर आजाद ख्याल लडक़ी थीl माता-पिता के टोकने पर उग्र हो उठती थी,तिस पर उसे नौकरी मिल गयी तो सोने में सुहागा हो गया…l बर्बादी के सारे रास्ते उसने अख्तियार किए…दिन-रात अनाप-शनाप व्यक्तियों से मिलना,एक पुरुष जो पहले ही विवाहित था,से कुछ ज्यादा ही नजदीकी बढ़ा ली…l नतीजतन कुछ ही दिनों में उसे पता चला कि वो माँ बनने वाली है..घर में कोहराम मच गया…पता चलते ही माँ ने लोक-लाज का हवाला दिया,किन्तु नीलिमा तो किसी और ही दुनिया में विचरण कर रही थीl बस,माँ से उसने बड़ी बेशर्मी से कह दिया…,-“मैं इसे गिरा दूँगी,बच्चा पालने की मेरी उम्र अभी नहीं हैl”
माँ अपनी बेटी की हरकतों से बेजार हो जा रही थी…l नीलिमा चिकित्सक के पास गई तो पता चला कि अब समय ज्यादा हो गया है,गर्भपात से जान को खतरा है..l नीलिमा एकदम परेशान हो उठी,क्योंकि वो माँ बनना नहीं चाहती थी..उसका फिगर खराब होने का डर था…पर अब इस मुसीबत को तो दुनिया में लाना ही था…l अब क्या करूँ…,वह सोचते हुए अस्पताल से बाहर आई तो देखा उसकी बचपन की सहेली रीना भी वहीं अपना इलाज कराने आयी थी…थोड़ी देर की बातचीत में नीलिमा ने तय कर लिया कि अब उसे क्या करना है…?? नीलिमा ने रीना को अपने विश्वास में ले लिया…और एक अंधेरी रात में रीना माँ बन गयी…और नीलिमा को निजात मिल गयी अपनी बेशर्मी से….! जो भी हो,कुछ साल तक के भटकने के बाद नीलिमा ने घर बसाने की सोची….और बसाया भी…l
१०/१२ साल तक नीलिमा ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखाl कभी उसे अपने बच्चे की याद तक नहीं आई,न ही उसने रीना से मुलाकात की…लेकिन अब वो भी माँ बनने का सपना देखने लगी थी…किन्तु नियति को शायद कुछ और ही मंजूर था…!
आज मंदिर में वो पश्चाताप से भरी मायूस-सी बैठी थी…कि उसने अचानक रीना को देखा…l उसकी गोद में एक प्यारी-सी बच्ची थीl १२ साल का लड़का लगभग ५ साल के एक बच्चे का हाथ पकड़ कर चल रहा था…और उसका दूसरा हाथ रीना के हाथ में था…l मातृत्व का ऐसा दप-दप रूप रीना का देख नीलिमा अचंभित हो गयी…!
उसकी नजर उस १२ साल के बच्चे पर अटक गई…उसका मातृत्व जाग उठा…l हे! भगवान ये मैंने क्या किया ??? काश! मैंने अपना बच्चा न दिया होता तो आज मैं ही इसकी माँ होती….और उसके गाल आँसूओं से तर होने लगे…l वो एक बार उस बच्चे को गले से लगाने के उद्देश्य से उसकी ओर बढ़ने लगीl जैसे ही नीलिमा ने बच्चे का हाथ पकड़ा,बच्चा जोर से डर कर चिल्लाते हुए रीना से लिपट गया,-“माँ,देखो ये औरत मुझे अपनी ओर खींच रही है..रीना भी चौंक पड़ीl नीलिमा को देख कर अचंभित हो गयी…इतने सालों में नीलिमा अजीब-सी दिखने लगी थी…! रीना को नीलिमा की शक्ल देखते ही समझ आ गया था कि,अब वो बदल गयी है पर उसके हाव-भाव से रीना थोड़ी विचलित भी हुई…l नीलिमा की आँखों में एक सूनापन था,परन्तु प्रत्यक्ष में उसकी भरी हुई मांग देख कर मुस्कुरा कर कहा,-“अरे तुम नीलू हो न ?? शादी कर ली क्या…? बच्चे कितने हैं ?? जीजाजी क्या करते हैं ?” फिर पलट कर अपने बेटे से कहा-“डरो नहीं बेटा,इनका बेटा भी तुम्हारे जितना बड़ा है…और तुम्हारे जैसा ही दिखता है…इसलिए शायद इन्हें धोखा हुआ होगा…मासूम-सा वो बालक अपनी माँ के सीने में अब भी चिपका हुआ था…और उसे घूर रहा था..l
“कान्हा…मेरा राजा बेटा,डरते नहीं…”,रीना बोली,-“आप एक काम करो,पापा वाली लाइन में छोटू के साथ जाकर खड़े हो जाओ,मैं आती हूँ!”..और वो फिर उससे बोली…,-“नीलू तूने तो उस रात मेरी दुनिया ही बदल थी…तुझे तो पता है न..शादी के बाद डॉक्टर ने साफ बता दिया था कि,मैं कभी माँ नहीं बन सकती…,पर कान्हा को गोद लेना मेरे लिए बहुत शुभ रहा हैं…देख मुझे ईश्वर ने बाद में २ बच्चे और दिएl बहन अब मैं ३-३ बच्चों की माँ हूँ..मेरा कान्हा तो मेरी जान है…मैं इतनी खुश हूँ कि बता नहीं सकती…l और भी बहुत कुछ वो कह रही थी,पर नीलिमा को सुनाई नहीं दे रहा था…! वो सोच रही थी,-
मैंने जिसे जवानी के उन्माद में गवां दिया,जिसकी कदर नहीं की,आज वो किसी की आँखों का तारा हैl मेरा भला उस पर क्या हक…?
और नीलिमा भरी आँखों से अपने बेटे को निहारती हुई चली गई….रोते हुए…अपनी भूल,नादानी और किस्मत के खेल को भोगते रहने के लिए…l

परिचय-श्रीमती देवश्री गोयल २३ अक्टूबर १९६७ को कोलकाता (पश्चिम बंगाल)में जन्मी हैं। वर्तमान में जगदलपुर सनसिटी( बस्तर जिला छतीसगढ़)में निवासरत हैं। हिंदी सहित बंगला भाषा भी जानने वाली श्रीमती देवश्री गोयल की शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी, अंग्रेजी,समाजशास्त्र व लोक प्रशासन)है। आप कार्य क्षेत्र में प्रधान अध्यापक होकर सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत अपने कार्यक्षेत्र में ही समाज उत्थान के लिए प्रेरणा देती हैं। लेखन विधा-गद्य,कविता,लेख,हायकू व आलेख है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार करना है,क्योंकि यह भाषा व्यक्तित्व और भावना को व्यक्त करने का उत्तम माध्यम है। आपकी रचनाएँ दैनिक समाचार पत्र एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-मुंशी प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैं,जबकि प्रेरणा पुंज-परिवार और मित्र हैं। देवश्री गोयल की विशेषज्ञता-विचार लिखने में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिंदी भाषा हमारी आत्मा की भाषा है,और देश के लिए मेरी आत्मा हमेशा जागृत रखूंगी।”

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