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धुआँकश

डॉ.सोना सिंह 
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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धुआँकश एक कमरा था
जिसमें एक माड़ी थी,
लकड़ी के बने मचान की तरह।
कमरे में था एक बिस्तर जो था
बिल्कुल उदास,
ग्रे और सुस्त-सा अखबार की तरह।
फिर कुछ सालों में एक घर बना,
जिसमें थे कुछ कमरे…
फिर से कमरे में था एक ही बिस्तर,
यह बिस्तर था उजला,पीला,सफेद।
दोनों जगह बनी थी किसी दुआ की तरह,
दोनों ने चुनी थी बिना कुछ सोचे-समझे।
घर के कमरे में बैठ कर,लेट कर,
दोनों ने देखे अनगिनत सपने,
बुने सतरंगी सपने।
दोनों ने की बातें बहुत सारी,
दोनों ने किए वादे प्यार के बहुत सारे।
दोनों ने किए वादे निभाए जाने के लिए,
दोनों ने बुने…ना जाने कितने उजले ख्वाब सुनहरे।
किसी ना अपने से,पराए से जुड़े,
खुद के कभी उनके सपने सुहाने।
दोनों ने चुना एक-दूसरे को,
साथ जीने के लालच और
साथ में मर जाने की हसरत के साथ,
दोनों ने जिया धुआँकश को खुद की तरह॥

परिचय-डॉ.सोना सिंह का बसेरा मध्यप्रदेश के इंदौर में हैl संप्रति से आप देवी अहिल्या विश्वविद्यालय,इन्दौर के पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला में व्याख्याता के रूप में कार्यरत हैंl यहां की विभागाध्यक्ष डॉ.सिंह की रचनाओं का इंदौर से दिल्ली तक की पत्रिकाओं एवं दैनिक पत्रों में समय-समय पर आलेख,कविता तथा शोध पत्रों के रूप में प्रकाशन हो चुका है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के भारतेन्दु हरिशचंद्र राष्ट्रीय पुरस्कार से आप सम्मानित (पुस्तक-विकास संचार एवं अवधारणाएँ) हैं। आपने यूनीसेफ के लिए पुस्तक `जिंदगी जिंदाबाद` का सम्पादन भी किया है। व्यवहारिक और प्रायोगिक पत्रकारिता की पक्षधर,शोध निदेशक एवं व्यवहार कुशल डॉ.सिंह के ४० से अधिक शोध पत्रों का प्रकाशन,२०० समीक्षा आलेख तथा ५ पुस्तकों का लेखन-प्रकाशन हुआ है। जीवन की अनुभूतियों सहित प्रेम,सौंदर्य को देखना,उन सभी को पाठकों तक पहुंचाना और अपने स्तर पर साहित्य और भाषा की सेवा करना ही आपकी लेखनी का उद्देश्य है।

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