जीवन ढला
शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’रावतसर(राजस्थान) ****************************************** शैशव से फिर आया बचपन और जवाँ का दौर चला।जैसे उदय पूर्व से होकर रवि पश्चिम में जाय ढला॥ समय धुरी पर चलता रहता रोक नहीं कोई पाया,जीवन की गति यही निरंतर ये सब है विधि की माया।सूरज-चाँद सितारे नदियाँ है परिणाम यही सबका,खिलते हैं सब वृक्ष धरा पर ऋतु बसंत … Read more