दिव्य प्रकाश

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ हम राह भटक रहे हैं तोवह हमें राह दिखाते हैं,क्योंकि ज़िन्दगी के इस अंधेरे मेंवही दिव्य प्रकाश है। वह पुनीत व पावन हैवही गंगा की अमृत धारा है,वह हमारे लिए भक्ति है, पूजा हैवही दिव्य प्रकाश है। ईश्वर भी जिनकी करता हो पूजाकोई नहीं और दूजा,गुरु ही हमारे परबम्हा, गुरु … Read more

मन का दर्पण जब चमकेगा

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला (मध्यप्रदेश)******************************************* मन का दर्पण जब चमकेगा, महक जाएगा जीवन,मन में पावनता महकेगी, दमक जाएगा जीवन।मन को मंदिर जैसा मानो, जीवन बने सुहावन-मन का पंछी जब चहकेगा, चहक जाएगा जीवन॥ मन का दर्पण सत्य बोलता, सच का साथ निभाना,बात न्याय की जब भी होगी, सद् को तुम अपनाना।मन का दर्पण स्वच्छ रहेगा, … Read more

प्रेम में अब भी फरिश्ते हैं

संजय सिंह ‘चन्दन’धनबाद (झारखंड )******************************** कहाँ गया रिश्तों से प्रेम…? रिश्तों में अब प्रेम कहाँ है,बातें झूठी, सत्य कहाँ है ?हम का सारा भाव कहाँ है,मैं, मेरा ये संसार जहाँ है। रिश्ता होता लुप्त जहाँ है,स्नेह, प्रेम वह प्यार कहाँ है ?दिल में दर्द, सत्कार कहाँ है,आदर की दरकार कहाँ है ? रिश्तों की वो … Read more

रिश्ते सींचे कद्र भरोसा

सरोज प्रजापति ‘सरोज’मंडी (हिमाचल प्रदेश)*********************************************** कहाँ गया रिश्तों से प्रेम…?… अशक्त पड़ी रिश्तों की डोरी,अत्यंत बेबस नाजुक डोरीबेगानापन, ओढ़ मुखौटा,भीतरघात, दामन भी छोटा। आज रिश्ते चलाऊ-उबाऊ,स्वयं-स्वयं तक न टिकाऊ ,आधुनिक, खोखले बिकाऊ,बना अपने, पर हैं चलाऊ। जन्म धात्री माँ लांछित होती,संतति बेगैरत निर्मम होतीसिमटा तन-मन चारदिवारी,अर्थ ही अर्थ, अर्थ दरकारी। बेइंतहा नेह, भाईचारा,भाई भुजा, पर … Read more

एकांकी अब जीवन गाथा

डॉ. कुमारी कुन्दनपटना(बिहार)****************************** कहाँ गया रिश्तों से प्रेम…?… जीवन-मृत्यु के बीच ही,जूझता रहता मानव जीवनसत्य-असत्य नहीं दिखता,भटक रहा उसका अंतर्मन। धर्म सनातन भूल रहा जन,भौतिक जीवन में तर्क बढ़ाआत्मबोध का ज्ञान रहा ना,पाप-पुण्य बीच द्वंद खड़ा। जीवन पथ से भटका राही,दिशा-दशा अब बदल रहीप्यार-विश्वास खत्म हुआ सब,आसुरी प्रवृत्ति अब बढ़ रही। ये रिश्ते-नाते, प्यार मुहब्बत,अपने … Read more

कहीं न सज पाते क्यों रिश्ते…?

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’बिलासपुर (छत्तीसगढ़)********************************************* कहीं न सज पाते क्यों रिश्ते, कहाॅं गया वो प्रेम रहा जो,बहुत भले थे पहले रिश्ते, कहीं दिखा दो प्रेम पुराना। मधुर सुहाने खूब भले थे, मानवता की झलक दिखाते,किधर गये वो भूल हुई क्या, अब अराजकता लोग सजाते।किसी डगर में किसी शहर में, कहीं नहीं वो प्रेम सुहाना,करूँ मैं … Read more

प्रेम विहीन रिश्ते

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’सोलन (हिमाचल प्रदेश)***************************************************** कहाँ गया रिश्तों से प्रेम…?… आजकल रिश्तों से,प्रेम कहीं खो गया हैप्रेम से तो बिछड़े,एक जमाना हो गया है। आजकल बनते हैं,पैसे से रिश्तेयदि आप धनवान हैं,तो सब बनाएंगे रिश्ते। सगा गरीब रिश्तेदार भी,किसी को नहीं सुहाता हैअमीर हो कोई दूर का रिश्तेदारवह सबको भाता है। आजकल प्रेम की … Read more

बरखा के रंग

दीप्ति खरेमंडला (मध्यप्रदेश)************************************* मदमाती वर्षा ऋतु आई,तपती धरती की तपन मिटाईरिमझिम-रिमझिम बरसे मेघा,सबके मन में हैं खुशियाँ छाईं। बादल गरजे, बिजली चमके,बूँदों ने बारात सजाईहरी चुनरिया ओढ़ धरा भी,पावस के स्वागत में मुस्काई। कुछ बूँदें रोकी सूरज ने,इंद्रधनुष सजा दियाधरती संग अम्बर ने भी,श्रृंगार अपना कर लिया। नदियाँ भी उन्मुक्त वेग सेबह रहीं किनारा छोड़करआलिंगन … Read more

आओ! मानवता का धर्म निभाएँ

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरेमंडला(मध्यप्रदेश)******************************************* मानवता का धर्म निभाएँ, रीति-नीति को हम अपनाएँ।करुणा-दया, नेहपथ जाएँ, परहित को आचार बनाएँ॥ भूखे को रोटी देकर हम, मंगलमय जीवन कर जाएँ,गहन तिमिर में प्रखर उजाला, जग को हम खुशहाल बनाएँ।दीन-दुखी के आँसू पौंछें, उनके लब मुस्कान सजाएँ,करुणा-दया, नेहपथ जाएँ, परहित को आचार बनाएँ…॥ ऊँच-नीच को तजकर हम अब, समरसता … Read more

कुदरत का कहर तो बरपेगा

हेमराज ठाकुरमंडी (हिमाचल प्रदेश)***************************************** उजड़ रही है देखो बस्तियाँ आज,उजड़ रहे हैं सब खेत-खलियानवह दिन भी शायद दूर नहीं अब,जब बन जाएगी धरती ही श्मशान। न कार रहेगी, न कोठियाँ तब,न घर रहेंगे और न ही तो मकाननदी-नालों में बहती लाशें दिखेगी,पहाड़ बनेंगे सब सपाट मैदान। विकास के नाम पर लूट मचाई है,भ्रष्टाचार की अब … Read more