जीवन का आधार

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ जीत के लिए हमहार से नहीं डरें,गिरना-फिर संभलनायही जीवन का आधार है। रोना काहे का, आँसू मत बहानाहँसते हुए आगे बढ़ते जाना,जीवन में संघर्ष तो करना पड़ता हैयही जीवन का आधार है। डरने वाले क्या लड़ेंगे ज़माने से,यहाँ दुनिया वाले तो बहुत ज़ालिम हैजीने भी नहीं देंगे और ना मरने … Read more

प्यारा बचपन

डॉ. गायत्री शर्मा ’प्रीत’इन्दौर (मध्यप्रदेश )******************************************* बच्चे मन के सच्चे होते,भेदभाव में वह कच्चे होते। पल में ही वो रो देते हैं,अगले पल फिर हँस लेते हैं। भोला-भाला पावन होता,बचपन ये मनभावन होता।। रूठे तो माँ झूला देती,गुब्बारा एक फूला देती। हवाई जहाज व मोटर गाड़ी,नहीं दिए तो पकड़े साड़ी। बचपन सुंदर-सलोना होता,जगमग घर का … Read more

अलबेला मौसम आया

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’सोलन (हिमाचल प्रदेश)***************************************************** मौसम को मैंने इस समयबदलते पाया,वास्तव में अबअलबेला मौसम है आया। न पंखे की जरूरत हैन हीटर की जरूरत है,देखिए मौसमकितना खूबसूरत है। ऐसे अलबेले मौसम काअलग ही मजा है,मौसम खराब हो तोलगती सजा है। मौसम बदल रहा हैतुम मत बदल जाना,सात जन्म तकमेरा ही साथ निभाना। ये मौसम … Read more

‘ही मैन’

हरिहर सिंह चौहानइन्दौर (मध्यप्रदेश )************************************ वह ‘जट यमला पगला दीवाना’,‘गुड्डी’ से मिला ‘चुपके-चुपके’‘आँखें’, ‘ललकार’, ‘बगावत’, ‘शोले’ नेबना दिया उन्हें ‘ही मैन।’ कभी बना वह ‘नौकर बीबी का’,‘राजपूत’, ‘रजिया सुल्तान’, ‘जानी दोस्त’‘अलीबाबा और चालीस चोर’ या ‘शालीमार’ ने,बना दिया उन्हें ‘ही मैन।’ ‘धरमवीर’ से ‘एक महल हो सपनों का,‘लोफर’, ‘यादों की बारात’ के ‘जूगनू’ लिए‘ब्लैकमेल’ कर … Read more

परिस्थितियाँ जीवन की

बबिता कुमावतसीकर (राजस्थान)***************************************** परिस्थितियाँ नदियों सी बहती,मौन विनय की दीक्षा देती है। अंधड़-सी जीवन में आती,सब आधार हिला देती है। कभी प्रचंड लहर बन जाती,तीव्र प्रवाह-सी आती है। नियति का वह सबक सिखा देती,कभी लहरें किनारे तक लाती है। कभी तूफानों में नाव डगमगाती,कभी दाहक प्रखर बन जाती है। समय का चलायमान स्वर बन जाती,कभी … Read more

सब अभिनय

डॉ. श्राबनी चक्रवर्तीबिलासपुर (छतीसगढ़)************************************************* ये बात पते की है,कि जो दिखाई देता हैवो होता नहीं है और,जो होता है वो दिखाई नहीं देता है। चेहरे पर एक चेहरा,लगा लेते हैं लोगताकि असली चेहरा,सामने न आ जाए। कितनी आसानी से,सफेद झूठ बोल जाते हैंचेहरे पर एक शिकन तक,नहीं पड़ती है, न ही कोई शर्म। कौन कहता … Read more

रोम-रोम संगीत

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)********************************** भीगा तन, भीगी हवा,भीगा है श्रृंगार…मोहक रूप सुगंध प्रिय,अतुलित है उपहार। घबराकर कर ही दिया,प्रेम निवेदन मीत…आह्लादित हर भाव हैरोम-रोम संगीत। गूँजा कुछ, करता गया,उर में यह झंकार…।प्रणय आकुल तृप्त तन-मन,प्यासा है संसार॥

जाति-वर्ण लोकतंत्र पर है भारी

ममता साहूकांकेर (छत्तीसगढ़)************************************* जाति वर्ण और भेदभाव,लोकतंत्र पर है भारीऊँच-नीच के चक्कर में,लड़ती है यह दुनिया सारी। अमीर गरीब गोरा काला,छोटे बड़े की भावनाहै बड़ी ही अत्याचारी,इस दुनिया में आने वाला,हर शख्स है समानता का अधिकारी। जाति-धर्म की बातें करके,जो लोगों को भड़काते हैंदेश की एकता और अखंडता को,तार-तार कर जाते हैंऐसे लोगों से ही,भरी … Read more

दो नयन

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’जमशेदपुर (झारखण्ड)******************************************* दो नयन मिले मुस्कान खिले,कितना कुछ कहती ये बातें ! शिशु के निश्छल भाव सलोने,ममता गदगद हँसती दिन-रातें ! नटखट कान्हा का रूप लख,गोपियाँ मुग्ध नयना मटकावें ! राधारानी भाव लजा छुपाती,प्रेम मुदित झुके दो नयन विंहसते ! विरह वेदना आह पीड़ अंत: में,दो नयन तड़प अश्रु बरसावें ! क्रोध … Read more

ठहराव ढूँढते हैं…

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* मृगतृष्णा की चकाचौंध में दर्दिल गम भाव भूलते हैं,व्यस्त दौड़ती हुई ज़िंदगी में ठहराव ढूँढते हैं। बस चाहत आहत जीवन अरमानों पग-पग अन्वेषण,मर्यादित जीवनचर्या लालच में कहीं छूट जाते हैं। कहाँ ख्याल लालच मन अपनापन रिश्ते रह पाते हैं,व्यस्त दौड़ती हुई ज़िंदगी में ठहराव ढूँढते हैं। छोटी-छोटी बातों में … Read more