तब ही मानव कहलाओगे…
राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** कहने को तो मनुष्य विकासशील हो रहा,किन्तु वास्तव में वह, विनाशशील हो रहादूसरों की भूमि को नाहक हथियाने के लिए,कोई यहाँ, कोई वहाँ, युद्ध में रत हो…
राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** कहने को तो मनुष्य विकासशील हो रहा,किन्तु वास्तव में वह, विनाशशील हो रहादूसरों की भूमि को नाहक हथियाने के लिए,कोई यहाँ, कोई वहाँ, युद्ध में रत हो…
डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’सोलन(हिमाचल प्रदेश)***************************************************** आजकल इंसान,नही रहा इंसानहो गया है,पत्थर समान। प्रत्येक इंसान अपनी,दुनिया में खो गया हैइसलिए शायद,भावना शून्य हो गया है। समाज में होती घटना का,उस पर…
डॉ. श्राबनी चक्रवर्तीबिलासपुर (छतीसगढ़)************************************************* भीगे-भीगे मौसम में,छुपे-छुपे अरमानों नेप्रकाशित होने का वचन लिया,काले-काले मेघा नेखुले-खुले आसमां को घेर लिया,जम कर बरसने का ऐलान किया। धीरे-धीरे पलकों ने,नयनों से घूँघट उठा…
डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’जमशेदपुर (झारखण्ड)******************************************* अम्बर की छवि देख अपार,धरती मोहित हो मुस्काईगर्जन तर्जन मधुर संगीत,बरखा जल पा धरा हर्षाई। कण-कण प्यास करे पुकार,सुरम्य दिशाएँ बही पुरवाईकृषक हँसते-गाते खेतों में,बरखा…
संजय एम. वासनिकमुम्बई (महाराष्ट्र)************************************* बारिश की बूंदें जब,समाती है मिट्टी में…और महकती है मिट्टी,मिट जाने के लिए…। बारिश के प्यार में,हो जाती है मदहोश…मोहब्बत में उसकी,बह जाने के लिए…। कुछ…
डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* रिमझिम बूँदें सावन की शुभ, बरसे पावस ऋतु फुहार रेझूले सजनी प्रिय मन झूला, गाए प्रीत मिलन रे। प्रीत समागम स्वप्निल सुनहल,कजरी राग रम्य…
श्रीमती देवंती देवीधनबाद (झारखंड)******************************************* सच कहता हूँ यार,महँगाई में दिक्कत हो गई भैयाछोटे छोड़ दिए सेवा-सत्कार,बच्चों के मन से महँगा हो गया प्यार। सच कहता हूँ यार,दो वक्त की रोटी…
रश्मि लहरलखनऊ (उत्तर प्रदेश)************************************************** उनका मौसम,नयनों में बदलतासपनों की चीत्कार से,सहम जाता। उनकी कल्पित मेंहदी का,गाढ़ा-सुर्ख रंगजब-तब ऑंखों में उतर आता। वे प्रतीक्षारत 'अनाथ',भयभीत रहते…मानवीय कंटकों से,जीवित इच्छाओं केजीव-जंतुओं से।…
हेमराज ठाकुरमंडी (हिमाचल प्रदेश)***************************************** वे गोबर से मटमैले हाथ, पसीने की बूँदों से तर वह चेहरागौ सेवा में रत ओ री देहातन! कितना सुन्दर रूप वह तेरा ? आठों याम…
दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)******************************************* बिजली चमकी गगन में,तड़ित तड़का अम्बर मेंगर्जन हुआ जब नभ में,हुई तबाही तब धरती पर। इसी वक्त तो फटती है घटा,अद्भुत होती है नभ…