शब्दों का संसार

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’जमशेदपुर (झारखण्ड)******************************************* शब्दों का संसार सदियों से,विभिन्न रूपों में है रहताबड़ी भव्य बेला वो होगी,जब काव्य शब्द ऋषि बोले। शब्दों का संसार अनुपम,जोडे़ हृदय से हृदय स्नेहभावों…

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साथी साथ निभाना

राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** लगातार बारिश होने से, बाढ़ आ गई भारी,खेत और घर डूब गए हैं, फैली है महामारीऊपर से तूफान ने मारा, कोई नहीं सहारा,पत्नी और बच्चे को लेकर,…

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मतपेटी बनाम ईवीएम

संजय सिंह ‘चन्दन’धनबाद (झारखंड )******************************** बैलेट, बुलैट फंसा निर्वाचन आयोग,ऐसा था इतिहास देश का, बाहुबल प्रयोगसरपंच, मुखिया, प्रधान पद में खूब दिखा उपयोग,चुनाव आयोग चिंतित था, रुके कैसे दुरूपयोग ?…

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बीत रही ज़िंदगी

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)************************************** बीत रही ज़िंदगी उतार देखते रहे,आने वाले समय का अंदाज देखते रहेदिल की चाह बढ़ रही है जैसे-जैसे उम्र बढ़ी,अपने इस मुक़ाम का बहाव देखते रहे। मन…

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दोस्तों से डर

संजय सिंह ‘चन्दन’धनबाद (झारखंड )******************************** मन हो स्वछंद, बुद्धि मंद,मुस्कान मंद,विचार द्वंद,चित्त बुलंद, लेखन में छंद,शब्द बंद, चिंतन में अंतर्द्वंद। भरोसा हो अगर, नाप लो डगर,घूम लो शहर, चाहे हो…

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शिव सृष्टि सृजन

संजीव एस. आहिरेनाशिक (महाराष्ट्र)*************************************** आकाश धरा, जल, अग्नि, और वायु शिवशम्भू के रूप हैं सारे,पंचमहाभूतों का कर संतुलन शिव समस्त जीव-सृष्टि को उबारे। सृजन पनपाने वाले रमापति शिव जी सृष्टि…

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आरोप-प्रत्यारोप

राधा गोयलनई दिल्ली****************************************** कहना तो बहुत कुछ है अगर कहने पे आऊँ,पर सोचती हूँ कहने से क्या होगा ?कभी सोचती हूँ कम से कम मन का आक्रोश कुछ तो कम…

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हम न रहे तो…!

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ मनावर(मध्यप्रदेश)**************************************** तितली के पंख से,रंग निकलातितली हुई दुखी,तितली ने फूलों से की दोस्तीपराग ने तितली से। किसी ने मुझे पकड़ लिया था,इसी कारण मुझमें रंग नहींमैं तितली हूँ,उड़ना…

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रास्ता कोई भी हो

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* रास्ता कोई भी हो, बस संकल्प लक्ष्य दृढ़ चाहिए,विश्वास अन्तर्मन हो अटल, आश्वस्त श्रम फल चाहिए। निर्मल सदा श्रमजीवी चरित, रण संयम महारथ चाहिए,सुदृढ़…

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स्वयं को लिख रही

सरोजिनी चौधरी, जबलपुर (मप्र)
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विगत दिनों को आमंत्रित कर,
जीवन का इतिहास लिख रही
यादें कोई छूट न जाएँ,
स्वयं को ख़ुद से आज लिख रही।

लिया एक दीपक हाथों में,
यादों से जो भरा हुआ था
उसकी उज्ज्वल ज्योति में मेरे,
सपनों का सुख छिपा हुआ था।

आशाओं से भरी हुई थी,
यौवन के क्षण-क्षण की बातें
कुछ पल अपने ख़ास बहुत थे,
होती थीं जब प्यार की बातें।

कुछ मस्ती और ख़्वाब की बातें,
कुछ खट्टी-मीठी सी यादें
कुछ पल तेरे नाम किए थे,
वे मेरी अपनी सौग़ातें।

आशाएँ कुछ अधिक नहीं थीं,
फिर भी मुश्किल सदा बड़ी थी
एक समस्या मैं हल करती,
दूजी आ कर खड़ी हुई थी।

बीता बचपन यौवन बीता,
प्रौढ़ावस्था में जब आयी
जिसे निभाना साथ था मेरा,
उसकी ही हो गई बिदाई।

भ्रमित अवस्था थी मेरी तब,
सोचूँ किधर-कहाँ जाऊँ!
पत्थर-सी बन गई थी मैं तब,
कहाँ रोशनी मैं पाऊँ?

पठन किया साहित्य का मैंने,
कई पुस्तकें पढ़ डालीं
मन के दर्पण में मैंने तब,
भावी छवि निर्मित कर डाली।

प्रथम स्थान कर्म को देकर,
भावी जगत किया तब कल्पित।
निखिल विचार विवेक तर्क सब,
भावी कर्म को किया समर्पित॥

 

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