अनुभव व नदी का रोड़ा

हेमराज ठाकुरमंडी (हिमाचल प्रदेश)***************************************** नदी में लुढ़कते रोड़े की मानिंद,हमने लाखों-लाख खाए थपेड़े हैंछिल-छिल टूट बिखर कर रेत ज्यों,हुए अब तो भीतर अनुभव घनेरे हैं। जो बचा जीवन है शेष…

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घेर लिया तृष्णा ने

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)************************************** चित्त नहीं परिपक्व विविध विधि,घेर लिया तृष्णा नेसभी इंद्रियाँ विभ्रमित करतीं,उलझा मन विषयों में। तेजहीन मैं क्या उत्तर दूँ!ज्ञान है मुझमें सीमितऊपर-नीचे दायें-बायें,माया करती मोहित। श्रांत आज…

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अगले पल का पता नहीं

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* अगले पल का पता नहीं, जी लो जो भी वक्त मिला हैछोड़ो सब बीते अतीत को, खुशियाँ गम बेवक्त मिला है। शेष अशेष कार्यपथ…

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तुम हो शक्तिपुंज

संजय सिंह ‘चन्दन’धनबाद (झारखंड )******************************** जागता हूँ मैं देर तक, लिखता अंधाधुंध,विस्मृत होती यादें अब, राहें दिखती धुंधलिखते-लिखते थक जाता जब आँखें लेता मूंद,भ्रष्ट आचरण, भ्रष्ट आवरण के दंश से…

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हारा अँधेरा

ममता तिवारी ‘ममता’जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)************************************** हारा अँधेरा आज देखो थम कहर गया,ये नूर का सैलाब जैसा क्या बिखर गया। दीपावली की रात आई देख रौशनी,सारे जहाँ का आज तो भाग्य सँवर गया।…

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पाप-प्रवृत्ति

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’सहारनपुर (उप्र)********************************** किसी में ‌न हिम्मत है डराएगा हमको,स्वयं किया हर पाप हमीं को डराता हैबाहर के शत्रु से लड़-भिड़ कर जीतो,मन शत्रु बन हमको नित्य…

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दीपक धीरे-धीरे जलना

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)************************************** दीपक धीरे-धीरे जलना,दीपक हौले-हौले जलनादीपक तुमको तो जलना सारी रात,दीपक दूर है करना अंधकार। जीवन जब मन भटकाये,राह कोई समझ न आयेअंतस का तम तुम हरना,ज्योतिर्मय जीवन…

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बादल भी थे… लालच…

संजय एम. वासनिकमुम्बई (महाराष्ट्र)************************************* बादल भी थे,हवा भी थीमौसम सुहाना था,फिर भी खुश ना थे। बारिश भी थी,झरना भी थानदी भी थी,दरिया भी था,फिर भी हम प्यासे रह गए। पेड़-पौधे…

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शिव वंदन

प्रीति तिवारी कश्मीरा ‘वंदना शिवदासी’सहारनपुर (उप्र)********************************** तव चरणों की सेवा दो शिव!,कल्याण करो हे! आत्मरूपतुम बिन कैसी भी सुंदरता,ना किसी काम को रंगरूप। वत्सल-मूरत भयहारी शिव,सब जग पगबाधा मुक्त करोजो…

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अब वो गाँव कहाँ…

धर्मेंद्र शर्मा उपाध्यायसिरमौर (हिमाचल प्रदेश)******************************************************* जीवन जो गाँव में पला,प्रेम प्यार सहयोग से सजानया-नवरा लगता था सवेरा,जीवन सबका मुस्कान भरा। खेल-खेल में दिन बीत जाता,हर कोई अपना-सा लगताएक-दूसरे को खूब…

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