सतरंगी दुनिया

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’सोलन (हिमाचल प्रदेश)***************************************************** प्रेशर कुकर कितना भी पुराना हो जाए, वो कभी भी सीटी मारना नहीं छोड़ता है। इसी प्रकार शेर कितना भी बूढ़ा हो जाए, मांस ही खाएगा;कभी घास नहीं खाएगा। सभी अपनी-अपनी आदत से मजबूर हैं। झूठ बोलना भी एक कला है, आजकल बहुत काम आती है। इसमें इंसान अपने … Read more

काश! प्राचार्य होता!

डॉ. शैलेश शुक्लाबेल्लारी (कर्नाटक)**************************************** काश! मैं किसी कॉलेज का प्राचार्य होता-बस एक डिग्री फ्री रजिस्ट्रेशन भरने की बजाय पावर-पैक खाता हाथ में होता। यह पद केवल ‘शैक्षणिक जिम्मेदारी’ नहीं, बल्कि एक लाइफ-स्टाइल लाइसेंस होता, जो सुबह से शाम तक प्राचार्य स्टाइल में बिताने की अनुमति देता। कॉलेज में क्लास रूम की घंटी छात्रों के लिए … Read more

मैं बिजली विभाग का प्रमुख होता…

डॉ. शैलेश शुक्लाबेल्लारी (कर्नाटक)**************************************** सरकारी दफ्तरों में जो बिजली सबसे ज्यादा जलती है, वह मीटर से नहीं, ‘कमीशन कनेक्शन’ से जलती है। और अगर बात हो इलेक्ट्रिकल विभाग की, तो समझिए यह विभाग बिजली का नहीं, चालाकियों का हाई वोल्टेज ट्रांसफॉर्मर है;जहाँ तारों से नहीं, तरकीबों से करंट दौड़ता है। मैं जब किसी खराब बल्ब … Read more

जेब-कतरे परेशान…

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’सोलन (हिमाचल प्रदेश)***************************************************** जबसे ऑनलाइन भुगतान आरम्भ हुआ है, तब से आदमी ने तो जेब में पैसे रखना बंद कर दिया है। अब वे जेब में क्रेडिट कार्ड रखते हैं, या मोबाईल से भुगतान करते हैं। इस कारण हमारे समाज का एक जेब-कतरा वर्ग बेरोजगार हो गया है…। इतना खतरा मोलकर जब … Read more

पांडेय जी के हसीन सपने और बदलती दुनिया

लालित्य ललितदिल्ली*********************************** पांडेय जी अचानक से बौद्धिक हुए, जब उनके मन में विचार आया कि हाथी के दांत खाने के और दिखावे के और हुआ करते हैं; उन्होंने यह भी मान लिया कि दुनिया आपसे कहीं ज्यादा और मोल-भाव किए रखती है कि किससे क्या मिल जाए और कहाँ तक मिलने की संभावना है। वे … Read more

जूते की महिमा

डॉ. प्रताप मोहन ‘भारतीय’सोलन (हिमाचल प्रदेश)***************************************************** बचपन में हमें बताया गया था कि जूता पैर में पहनना जरूरी है, क्योंकि जूता पैर की सुरक्षा करता है। कुछ बड़े होने पर जब हम घर में कोई काम नहीं करते थे, या बड़ों का कहना नहीं मानते थे, तब ये आवाज सुनाई देती थी-‘जूते खाने हैं क्या … Read more

काश! मैं किसी कंपनी का निदेशक (वित्त) होता!

डॉ.शैलेश शुक्लाबेल्लारी (कर्नाटक)**************************************** काश! मैं बड़े निगम का निर्देशक (वित्त) होता-जो कि सिर्फ एक पद नहीं, बल्कि एक शक्ति-पोषक स्थिति है। मैं बस बैलेंस शीट ही नहीं, बल्कि उसके साथ ही बैलेंस ऑफ पॉवर भी संभालता। जहाँ कर्मचारी पोर्टल मुद्दों पर नतीजे रहते, वहीं मेरी दुनिया में वित्तीय फ्लो से ज्यादा जरूरी होता कैश फ्लो। … Read more

पांडेय जी और दिल की दिल्लगी

लालित्य ललितदिल्ली*********************************** हुआ क्या चुनांचे! दिल है मांगे कुछ, सोचे कुछ। पांडेय जी ने कई दिनों से अपनी गाड़ी सड़क पर नहीं निकाली, जब से मेट्रो से दिल लगा बैठे। फिर क्या हुआ, वह बता दें आपको।सड़क पर पांडेय जी थे और उनकी गाड़ी। आज उनका मन गाड़ी में नहीं लगा, क्योंकि डैश बोर्ड पर … Read more

अर्थव्यवस्था की रीढ़-सिविल इंजीनियर देवो भव!

डॉ.शैलेश शुक्लाबेल्लारी (कर्नाटक)**************************************** हम भारतीयों को अपने आराध्य देवों की पूजा करना सदा से प्रिय रहा है। कोई भोलेनाथ की आराधना करता है, कोई गजानन को प्रसन्न करता है, कोई मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम का स्मरण करता है, कोई बजरंगबली, संकतमोचक हनुमान को, कोई नोटबंदी के दौर में एटीएम को, तो कोई हरियाली में छुपे … Read more