बम धमाका: बड़ा सवाल-दोषी कौन ?

ललित गर्ग दिल्ली*********************************** ११ जुलाई २००६ को मुम्बई की भीड़भरी स्थानीय ट्रेनों में हुए श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों ने समूचे देश को झकझोर कर रख दिया था। इसने पीड़ित परिवारों के साथ-साथ जन-जन को आहत किया था। ७ जगह पर हुए इन धमाकों में १८७ निर्दाेष लोगों की जान गई और ८२४ से ज्यादा लोग घायल … Read more

डिजिटल भारत:अपार संभावनाएँ, समावेशी नीतियों की जरूरत

डॉ.शैलेश शुक्लाबेल्लारी (कर्नाटक)**************************************** क्या आप जानते हैं कि भारत में हर मिनट १ हजार से अधिक लोग डिजिटल भुगतान कर रहे हैं और २०२५ तक देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था १ ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है ? फिर भी, देश के ६० फीसदी से अधिक ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट की पहुंच नहीं है … Read more

आखिर क्या है ‘आधुनिकता’… ??

सीमा जैन ‘निसर्ग’खड़गपुर (प.बंगाल)********************************* आपने ध्यान दिया है कि आजकल ज्यादातर लोग आधुनिक (मॉडर्न) होना चाहते हैं। क्या बच्चे… क्या जवान… क्या उम्रदराज लोग… सभी इस विचित्र दौड़ में शामिल हैं। और दूसरी तरफ बाजार अटे पड़े हैं ऐसे लोगों की जरूरतें पूरी करने में। अजीबो-गरीब कपड़े, जूते, हार-हमेल, अनोखी डिजाइन के सजने-संवरने की वस्तुओं … Read more

लोकतंत्र की चिंता या सत्ता लोभ ?

ललित गर्ग दिल्ली*********************************** भारतीय लोकतंत्र आज विश्व के सबसे बड़े, जीवंत और जागरूक लोकतंत्रों में गिना जाता है। यह संविधान की मजबूत नींव, संस्थाओं की पारदर्शिता और जनता की जागरूकता से संचालित होता है, परंतु विडम्बना है कि देश का विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस और उनके नेता राहुल गांधी बार-बार लोकतंत्र और संविधान पर खतरे की … Read more

वापसी

डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्लइन्दौर (मध्यप्रदेश)****************************** वृद्धाश्रम में अम्मा को खड़ा कर उसने उनका सूटकेस वहाँ रखा और औपचारिकताएँ पूरी करने के लिए कार्यालय की ओर चला गया।लौटकर आया तो अम्मा को आँसू पोंछते देख कर वह द्रवित हो गया।“क्या करूं अम्मा…? घर में शांति के लिए मजबूरीवश मुझे यह करना पड़ रहा है। तुम तो … Read more

विश्व व्यवस्था में एक निर्णायक आवाज ‘२१वीं सदी का भारत’

पूनम चतुर्वेदीलखनऊ (उत्तरप्रदेश)********************************************** भारत का लोकतंत्र विश्व में सबसे बड़ा और जीवंत माना जाता है। यहाँ की चुनाव प्रणाली को संविधान द्वारा सुनिश्चित की गई स्वतंत्रता, निष्पक्षता और पारदर्शिता की कसौटी पर खरा उतरना होता है, परंतु कुछ ऐसे क्षण आते हैं, जब लोकतंत्र को उसकी परिभाषा और नैतिकता पर कसौटी से गुजरना पड़ता है। … Read more

टूटते-बिखरते परिवार की गंभीर चिंता आवश्यक

पद्मा अग्रवालबैंगलोर (कर्नाटक)************************************ गुरुग्राम में पिता द्वारा टेनिस खिलाड़ी बेटी राधिका की गोली मार कर हत्या ने पूरे देश में सनसनी फैला कर रख दी है। कहा जा रहा है कि पिता और बेटी के बीच कोई विवाद था। इसी तरह जयपुर में एक कलियुगी पिता सालों से अपनी ही २ नाबालिग बेटियों का शारीरिक … Read more

निरंकुश अभिव्यक्ति से जुड़े सर्वोच्च फैसलों का स्वागत हो

ललित गर्ग दिल्ली*********************************** सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की आजादी एवं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर समाज विरोधी अभिव्यक्ति की सुनवाई करते हुए समय-समय पर जो कहा, वह जहां संवैधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिहाज से खासा अहम है, वहीं संतुलित- आदर्श राष्ट्र एवं समाज व्यवस्था का आधार भी है। सोशल मीडिया मंचों पर समाज विरोधी अभिव्यक्ति … Read more

रिश्तों को लीलता खोखला ‘स्वाभिमान’

ऋचा गिरिदिल्ली*************************** कहाँ खो गया रिश्तों से प्रेम…? एक पिता ने अपने ही ‘स्वाभिमान’ की हत्या कर दी, अपने स्वाभिमान के लिए फिर और स्वाभिमानी बन गया हमेशा के लिए!पिता का धर्म होता है अपने बच्चों के ख्वाबों को हकीकत बनाने में उसके पीछे चट्टान की मानिंद मजबूती से खड़े होने का, अपने बच्चों के … Read more

कहर बरसाते-बरपाते पहाड़

सरोज प्रजापति ‘सरोज’मंडी (हिमाचल प्रदेश)*********************************************** मेरा गाँव ऐसे इलाके में है, जहां हर साल पहाड़ों के दरकने (भूस्खलन) का भयावह रूप देखने को मिल रहा है। बादल फटने से भयंकर त्रासदी से दो-चार होना पड़ रहा है। आषाढ़-सावन भादो में कभी भी यह मंजर हतप्रभ कर रहा है। आए-दिन पहाड़ों में घरों के समूल दफन … Read more