प्रेम की बजने लगी शहनाई

सुजीत जायसवाल ‘जीत’कौशाम्बी-प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)******************************************* निर्दयी ‘कोरोना’ रूप विकट चहुँ दिशि दिखे उत्पात,लॅाकडाउन है दुःख,कृन्दन अब मानव तन पर आघातमैं पूर्व भ्रमण स्मृतियों में डूबा हुआ था आज,हे गिरिधर यशोदा नंदन कर सुख- शांति का प्रभात। भ्रमण को मुझको शौक बड़ा गया था हरिद्वार,मसूरी,रशियन के संग हो छवि मेरी,इच्छा हो गई तब पूरीअंदाज निराला था उसका … Read more

मासूम माँ

रेणू अग्रवालहैदराबाद(तेलंगाना)************************************ अपने जब शत्रु हो जाते हैं,वो बड़े भारी पड़ जाते हैं।हारना तो निश्चित हो जाता हैहम बहुत बेबस हो जाते हैं।घर-घर महाभारत चल रही है,आज भाइयों के साथ-साथ,बहू भी सास को छल रही है,जो हम कमाए बरसों-बरस से-बहू एक दिन में छीन रही है।क्यों बहू को सास नहीं सुहाती,वही तो बहू को ब्याह … Read more

संग्रह का निहित स्वार्थ छोड़ना होगा

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ********************************** आज संसार में मानवीय मृगतृष्णा सागरवत मुखाकृति को अनवरत धारण करती जा रही है। एतदर्थ मनुष्य साम,दाम,दंड,भेद,छल,प्रपंच, धोखा,झूठ,ईर्ष्या,द्वेष,लूट,घूस,दंगा,हिंसा,घृणा और दुष्कर्म आदि सभी भौतिक सुखार्थ आधानों को अपना रहे हैं। सतत् प्राकृतिक संसाधनों, जैसे-भूमि खनन,वन सम्पदा का कर्तनt,पहाड़ों को काटना,नदियों का खनन एवं समुद्रों को भी प्रदूषित करने से मनुष्य … Read more

मानव हूँ

आशा आजाद`कृति`कोरबा (छत्तीसगढ़) ******************************************* मैं मानव हूँ स्वार्थ धरें नित,करता काम।कभी न सोचूँ अहित काज का,निज अंजाम॥ लोभ मोह में फँसता जाता,मैं अज्ञान,दीन-दुखी को बहुत सताया,बन अनजान।पीछे मुड़कर पीर न देखी,बढ़ता नाम,मैं मानव हूँ स्वार्थ धरें नित,करता काम…॥ चले नहीं जोर अमीरों पर,डरता खूब,लख गरीब कर्जे में अक्सर,जाते डूब।नहीं आंकलन किया स्वेद का,देता दाम,मैं मानव … Read more

लम्हें…

विद्या होवालनवी मुंबई(महाराष्ट्र )****************************** गुजरा हुआ हर पल लम्हा बन जाता है,हर लम्हा यादों का बसेरा बन जाता है। कभी-कभार हँसाता है,तो कभी रूला भी देता है,कुछ को भुला देते हैं,तो कुछ नए एहसास भी जगा देता है। लम्हों की धूप-छाँव जीवन भर गुनगुनाती है,कभी मोहब्बत तो कभी नफ़रत भी सिखा देती है। गुजरा हर … Read more

आचार्य द्विवेदी का संपूर्ण साहित्य मानव की प्रतिष्ठा का प्रयास

डॉ. दयानंद तिवारीमुम्बई (महाराष्ट्र)************************************ जिसमें सारे मानव सभ्यता को सुंदर बनाने की कल्पना की जाती है,उसे ही तो साहित्य कहते हैं। साहित्य की हर महान कृति अपनी ऐतिहासिक सीमाओं का अतिक्रमण करने की क्षमता रखती है। अपनी संस्कृति के स्मृति संकेतों,मिथकों और भाषाई प्रत्यय से गुजरते हुए हर कविता,हर निबंध,हर उपन्यास मनुष्य के समग्र और … Read more

भयावहता में चेतना जाग्रत करने के उद्देश्य से सृजित कविताएं समाज सेवा ही-प्रो. खरे

मंडला(मप्र)। कोरोना की विभीषिका दिल दहला देने वाली है,जिसने सारी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। हम कवि-लेखक-कलाकार भी घबराए,पर बाद में न केवल हम खुद संभले,बल्कि अपने सृजन व कला से हम औरों को संभालने व उनका मनोबल बढ़ाने में भी जुट गए। सम्मेलन में कविताओं को सुनकर ऐसा ही लगा कि कोरोना से … Read more

इंसानियत के दुश्मन

अमल श्रीवास्तव बिलासपुर(छत्तीसगढ़) *********************************** कहां खो गई ममता,करुणा,क्यों तुम इतने क्रूर हो गए ?यत्र,तत्र,सर्वत्र मिलावट,कितना मद में चूर हो गए ? अपनी सुख-सुविधा की खातिर,ले लेते कितनों की जानें।पेटी,कोठी,कोठा,भरने,बुनते रहते ताने-बाने।मतलब के हित नहीं हिचकते,तुम शोषण,उत्पीड़न करने।क्या विक्रेता ? क्या उपभोक्ता,?कैसे ? ठगे जा रहे कितने ? स्वार्थ वृत्तियों के चंगुल में,क्यों इतना मजबूर हो गए … Read more

आनंद से ओत-प्रोत रचनाओं का पाठ किया गोष्ठी में

इंदौर(म.प्र.)। खुशी,उमंग,उत्साह,आनंद ये सब मन के वो भाव हैं,जो नकारात्मक व बोझिल मानसिकता को पराजित कर मन को सकारात्मक प्रकाश से आलोकित करते हैं। इसी कड़ी में शब्दों का सेतु निर्मित कर आनंद के ऐसे ही जीवन रस को बिखेरने का प्रयास ‘आओ खुशियाँ बाँटें’ कार्यक्रम के माध्यम से साहित्यिक संस्था नई क़लम (साहित्य के … Read more

बेटियाँ…हर रंग में घुलती

अल्पा मेहता ‘एक एहसास’राजकोट (गुजरात)*************************************** मेघधनुष के रंग बिखराती,घर-आँगन को रंगों से भरती…नित-नित जीवन की तरंगों में,बेटी है जो हर रंग में घुलती…। कभी पिता के कंधे सहलाती,कभी भाई-बहन को दुलार करती…सखी बन ममता टटोले,बेटी है जो अश्रुधार पोंछती…। ना समझे जीवन में कोई,एक माता की मनोदशा…समझे जो हर हाल में उसको,बेटी है जो मलहम … Read more