यही हकीकत

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* यही हकीकत ज़िंदगी, पौरुष हो जयगान।सामाजिक सेवा सुयश, सार्थक जीवन मान॥ आलस जीवन शत्रु है, राह बने प्रतिकूल।समझ हकीकत विफलता, आलस कर निर्मूल॥ लोकतंत्र तब हो सफल, शिक्षित हों जन देश।हो प्रबंध बिन भेद के, शिक्षा का परिवेश॥ रखो आस्था कर्म पर, बढ़ो सुपथ परमार्थ।कार्य तभी सम्पूर्ण हो, प्रगति … Read more

संध्या रजनी का आलिंगन

संजीव एस. आहिरेनाशिक (महाराष्ट्र)********************************************* ढले-ढले रविराज अभी जो हुए हैं देहरी पार,रक्तिम, स्वर्णिम वर्णों का पसरा है अम्बारऊँचे-ऊँचे पहाड़ों पर फैले संध्या के अभिसार,उलझा-उलझा आकाश है आखिर क्या है सार! गुलाबी सिंधुरी पखरण है जहाँ अस्त हुआ सूरज,आशा भरे क्षितिजों ने अभी भी खोया नहीं धीरजकिरणों की याद में पहाड़ों की चोटियाँ हुई नीरज,कलियाँ जो … Read more

शिक्षक है जीवन

बबिता कुमावतसीकर (राजस्थान)***************************************** शब्दों से गढ़ती है जीवन, ज्ञान का सागर भरती है। भ्रम के बादल दूर भगाती, माँ-सी ममता देती है। छिपी प्रतिभा बाहर निकालती, वाणी में संस्कार भरती है। हर प्रश्न का उत्तर बनती, सच्चा सहारा बन जाती है। कक्षा में मुस्कान है लाती, वह कल का निर्माण करती है। शिक्षा का आधार … Read more

गुल्लक का खेल

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)********************************** गुल्लक को देखा जब मैंनेबचपन आँखों में तैर गया,याद मुझे आयी छुटपन कीकैसा माँ ने खेल किया। सबको गुल्लक बाँटी थी औरबोली इस पर नाम लिखो,अपनी-अपनी सभी सम्हालोफिर देखो यह काम करो। पास तुम्हारे रंग पड़े हैंइसको खूब सजाओ तुम,जो कुछ पास में रखा हैउससे काम चलाओ तुम। रोज़ मैं दूँगी एक … Read more

पिता को समझना आसान नहीं

कल्याण सिंह राजपूत ‘केसर’देवास (मध्यप्रदेश)******************************************************* वो भावनाओं में नहीं,वह जिम्मेदारियों को निभाने मेंपूरे जीवन को दाँव पर लगा देता है। पत्नी की मुस्कराहट,बच्चों के सपनों को पूरी शिद्दत और लगन से पूरा करता हैनारियल के सामान पिता,परिजनों को क्रूर, कुरूप, सख्त लगता है। एक समय के बाद कहाँ समझते, उनके जज्बातों,भावनाओं, विचारों को…जो पिता पूरी … Read more

ढलती सांझ की लालिमा

डॉ. विद्या ‘सौम्य’प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)************************************************ ढलती सांझ की लालिमा के संग-संग,जैसे जल जाते थे…चिमनी की ढिबरी में दीए,और…जगमगा जाते थे जैसे लालटेन की रोशनी में,बंद बस्तों से निकली किताबों के,एक-एक अक्षर…जल जाती थी जैसे चूल्हे में लगी लकड़ियाँ,चढ़ जाते थे जैसे पतीलों पर अनाज के दानेउसी तरह चढ़ती रही मैं भी,बलिदान की अनचाही वेदियों परऔर … Read more

बिदाई

सरोजिनी चौधरीजबलपुर (मध्यप्रदेश)********************************** मन हो रहा है अधीरबेटी कैसे धरूँ मैं धीर,बाबा ने ढूँढा है घर-वर बिटियामाता के नयनों की नूरजो बेटी मेरी प्राण से प्यारी,कैसे रहूँगी उससे दूरशुभ घड़ी आयी, बाजी शहनाई,द्वारचार की रीतिपरछन कर माता दूल्हे को देखेंनयनों में बढ़ी प्रीति। मंडप अंदर बैठे हैं दूल्हे राजा,बन बेटी के मीतकन्यादान दिए पित-माताफिर भाँवर … Read more

सपने सजाते हैं

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* खिली भोर की नयी अरुणिमा खोल उन्मुक्त विहग उड़ जाते हैं,नवल प्रीत मनमीत गगनआलिंगन सपने जगाते हैं।महके तन मन चारु गुलबदन वय यौवन मद है मुस्काती-चन्द्रमुखी उत्तुंग शिखर उर तल आशिक दिल को भाते हैं॥ प्रेम गगन उन्मुक्त चपल मन बेताब उड़न भर जाते हैं,मन्दहास खुशियाँ अधरों पर मुख … Read more

शरद सुहानी सूरज आभा

सरोज प्रजापति ‘सरोज’मंडी (हिमाचल प्रदेश)*********************************************** शरद सुहानी, सूरज आभा,ललित मनभावन ‘अंशु’ आभारोज सवेरे महकी आभा,मानस पटल उमंगित आभा। जागो प्रतिदिन सुबह-सवेरे,शीत हिलोर मर्ज़ वात घेरेरुखसार, मन हरि भक्ति घेरे,उज्जवल प्रभा शिखर सवेरे। देखूं जब भी शिखर सवेरे,स्वर्णिम रविजात फ़ैल सवेरेप्राण चराचर ठिठुरन घेरे,दीप्त तप्त अंचल सर्वत्र घेरे। चटक वर्ण पीत झर-झर जाए,दरख्त रिक्त, बिन पत्ते … Read more

शील-त्याग सज्जन पहचान

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’बेंगलुरु (कर्नाटक) ************************************************* शील त्याग गुण कर्म से, सज्जन जन पहचान।सदाचार विनयी चरित, मिले लोक सम्मान॥ मितभाषी संयम श्रवण, मुख पर हो मुस्कान।आत्मबली मृदुभाषिता, सज्जन चरित महान॥ उद्योगी नित सत्पथी, धारक सुमति विवेक।संस्कार संस्कृति लसित, सज्जन जीवन नेक॥ सज्जन शीतल छाँव है, समरसता प्रतिमान।सामाजिक सेवा निरत, अभिभावक अवदान॥ सत्संगति सज्जन सुखद, धीर … Read more