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आ चलें प्रेम के पनघट पे

डॉ. सुरिन्दर कौर नीलम
(झारखंड)
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काव्य संग्रह हम और तुम से


शहर की भीड़ में सूनापन,
भावों का सूखा वृंदावन,
आ चलें प्रेम के पनघट पे।

मोबाइल को छोड़ो तब हो मिलने की गुंजाइश,
जेबों में लम्हें भर लाना बस इतनी फरमाइश।
दौर मशीनों का साजन,
न टूटें रेशम के बंधन,
आ चलें प्रेम के पनघट पे…।

वही नशीले नटखट कंगन आँखों से पहनाना,
साँसें जब लें करवट,
वे कुछ न बोलें समझाना।
जब हो रेत लहर का मिलन,
सुने बस तू मेरी धड़कन,
आ चलें प्रेम के पनघट पे…।

चेहरे की रेखाओं में पढ़ लेना ख़त वो पुराने,
जज्बातों की मुड़ी तहें खोलेंगी कुछ अफसाने।
आ छू लें अपना बचपन,
वो पहली बारिश कागज़ मन,
आ चलें प्रेम के पनघट पे…॥

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