सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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विश्व पुस्तक दिवस स्पर्धा विशेष……

मित्रों,पुस्तकों की महत्ता के बारे में कुछ लिखना यानी सूरज को दीपक दिखाने के समान है,जो स्वयं सूर्य की तरह सारे जगत को प्रकाशवान करती हैं। फिर भी पुस्तकों के महत्व पर कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूँ-
जिस समय हम होश संभालते हैं,या शिक्षा हेतु किसी विद्यालय में प्रवेशित होते हैं तब से लगाकर जीवन पर्यन्त एक सच्चे मित्र की तरह हमारा साथ निभाती हैं पुस्तकें। अक्षर ज्ञान और भाषा ज्ञान से शुरू होकर हमारा जीवन निर्माण,चरित्र निर्माण और जीवन के कठिन पलों में एक दीपक की तरह हमें राह दिखाती हैं। मनुष्य किसी भी जाति का हो, किसी भी धर्म का हो,विद्यालय में प्रवेश लेते ही उसके हाथों में पुस्तकों का आना शुरू हो जाता है और इन्हीं पुस्तकों के बल पर वह ऐसे-ऐसे महान कार्य करता है,जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। आज पूरी दुनिया में जो तरक्क़ी हुई है,वह इन पुस्तकों के कारण ही हुई है। मनुष्य ने न सिर्फ़ धरती पर रहकर विकास की गंगा बहाई है,बल्कि इन्हीं पुस्तकों के बल पर उसने चन्द्रमा की सैर की है। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आज दुनिया में जितनी उन्नति हुई है,वह सब इन पुस्तकों के बल पर ही हुई है। चाहे कोई-सा भी देश हो,कोई-सा भी धर्म हो,शिक्षित होकर जीवन को एक आदर्श नियम विधान में जीने की कला पुस्तकें ही सिखाती हैं। ऋषि-मुनियों और महापुरुषों द्वारा सैकड़ों-हज़ारों साल पहले लिखे गए धार्मिक ग्रंथ गीता,कुरान,बाइबिल,गुरुग्रंथ,रामायण ये ऐसी अमर कृतियाँ हैं जिनका प्रकाश सूरज और चन्द्रमा की तरह युगों-युगों तक अमर रहेगा। प्राचीनकाल से लगाकर आज तक लेखकों,कवियों-साहित्यकारों ने अपनी शिक्षा और अनुभव के आधार पर ऐसी-ऐसी पुस्तकों का निर्माण किया है,जिनके ज्ञान की रोशनी युगों-युगों तक समाज और दुनिया को दिशा-दर्शन करती रहेंगी।
ऐसे ही लेखकों,कवियों,साहित्यकारों की स्मृतियों को बनाए रखने के लिए ही ‘विश्व पुस्तक दिवस’ और ‘विश्व पुस्तक मेले’ का आयोजन किया जाता है।
२३ अप्रैल ही इसलिए कि,२३ अप्रैल १५६४ को एक ऐसे ही लेखक ने दुनिया को अलविदा कहा था,जिनकी कृतियों का विश्व की समस्त भाषाओं में अनुवाद हुआ था,नाम था-शेक्सपियर।
किसी व्यक्ति की किताबों का संकलन देखकर ही आप उसके व्यक्तित्व का अंदाज़ा लगा सकते हैं। कहते हैं- “किताबें ही आदमी की सच्ची दोस्त होती हैं और दोस्त से ही आदमी की पहचान होती है।”
निवेदन करता हूँ कि किताबों के महत्व को जानें और जन-जन तक इस बात को पहुँचाने की कृपा करें।
किताबों के लिए बारबरा डब्ल्यु तुचमन ने कहा है कि-“किताबें सभ्यता की वाहक हैं,किताबों के बिना इतिहास मौन है,साहित्य गूंगा है,विज्ञान अपंग है, विचार और अटकलें स्थिर हैं। ये परिवर्तन का इंजन है,विश्व की खिड़कियां हैं,समय के समुद्र में खड़ा प्रकाश स्तम्भ हैं।”
ऐसे ही विचारक जोसेफ एडिसन का कहना है-
“पुस्तकें वह विरासत हैं,जो मानव जाति के लिए एक महान प्रतिभा छोड़ती हैं,जो पीढ़ी से पीढ़ी तक उन लोगों तक पहुँचाई जाती हैं जो अभी जन्में तक भी नहीं हैं।”
परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”