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‘नाकाम’ पाक द्वारा भारत-विरोधी २ फर्जी मुद्दे

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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‘कोरोना’ के इस भयंकर संकट के दौर में पाकिस्तान की इमरान खान सरकार को पता नहीं क्या हो गया है! पाकिस्तानी जनता की कोरोना से रक्षा करने में अपनी नाकामी को छुपाने के लिए क्या उसे इस वक्त यही हथियार हाथ लगा है ? उसने भारत-विरोधी २ कदम उठाए हैं। एक तो उसने इस्लामी सहयोग संगठन से कहा है कि भारत में फैले ‘इस्लामद्रोह’ के विरुद्ध वह जांच कमेटी बिठाए और दूसरा,उसने बाकायदा बयान जारी करके अयोध्या में राम मंदिर बनाने का विरोध किया है। पाकिस्तान के पहले कदम का विरोध मालदीव और संयुक्त अरब अमीरात के राजदूतों ने ही दो-टूक शब्दों में कर दिया है। इन दोनों मुस्लिम देशों के राजदूतों ने कहा है कि किसी देश की कुछ घटनाओं के आधार पर उसके विरुद्ध इस तरह की जांच बिठाना उचित नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तानी राजदूत मुनीर अकरम ने यह मुद्दा इस्लामी संगठन के राजदूतों की बैठक में उठाया था। उन्होंने यह भी कहा कि कोरोना संकट का फायदा उठाकर भारत की हिंदुत्ववादी सरकार ने कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय कर लिया है और उसने पड़ौसी मुस्लिम देशों के शरणार्थियों में सांप्रदायिक भेदभाव का कानून बना दिया है। राजदूत से कोई पूछे कि ये मुद्दे कोरोना के पहले उठे थे या बाद में ? इन मुद्दों पर जिन्हें भारत सरकार का विरोध करना था,वे डटकर करते रहे। सरकार उन्हें छू भी नहीं सकती थी। हाँ,कश्मीरी नेताओं को कुछ वक्त के लिए नजरबंद जरुर किया गया लेकिन वह वैसा नहीं करती तो वहां खून की नदियां बह सकती थीं। दु:ख की बात यही है कि कोरोना के वक्त भी सिरफिरे आतंकवादी अपनी करनी से बाज नहीं आ रहे हैं। क्या पाकिस्तान ने उनकी भर्त्सना की ?
इसी तरह राम मंदिर बनाने का फैसला भी कोरोना के बहुत पहले आ चुका था। फैसला देने वालों में एक न्यायाधीश मुसलमान भी थे। इसके अलावा वर्षों की जांच के बाद न्यायाधीशों ने यह पाया कि बाबरी मस्जिद को मंदिर तोड़ कर ही बनाया गया था। इस तथ्य की पुष्टि भी ‘पुरातात्विक सर्वेक्षण’ के एक विशेषज्ञ ने की है,जो एक मुसलमान ही है। इसके अलावा देश की लगभग सभी प्रमुख मुस्लिम संस्थाओं ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को मान्य किया है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तानी सरकार द्वारा इस मामले को तूल देने का तुक क्या है ? अल्पसंख्यकों की स्थिति पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों से कहीं बेहतर है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।