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अम्फानी कहर

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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फिर एक तबाही,विनाश,
महा तूफान अम्फान विकट
बर्बादी के वो निशां-ए-दर्द,
तहस नहस क्षत-विक्षत जहां।
सुन्दर वन की खूबसूरत वादियां,
गिरे औंधे मुँह पेड़ लाखों
स्कूल,कॉलेज और आशियाने,
बर्बादियाँ सड़कों,गाड़ियों सेतूओं की।
मौत की कुदरती आपदाएँ,
टूटी कहर बन कर चारों तरफ
एक तरफ ‘कोरोना’ का रोना,
दहशत,मौत की कालिमा
दूसरी तरफ अम्फाम की दास्ता-ए-सितम।
सिसकती कराहती हुई संवेदनाएँ,
सैकड़ों मौतों का नग्न तांडव
उजड़े अनाथ हुए भविष्य,
अपने दुर्भाग्य पर आर्तनाद करती हुई
बंगाल और उत्कल की दशा-दिशा।
कब तक मिल पाएगी निजात-ए-रहम,
दुर्दान्त घायल जख़्मों पर
निभाने का समय आया,
अपना राष्ट्रधर्म,इन्सानियत।
कोटि-कोटि धन सम्पदाएँ,
क्षण भर में मिटा ख़ुद की नामो-निशां
कठिनतर पुनः राहत पुनर्वास उनके,
अपनी रनिवासर मिहनत से
सजाए ख़ुद के उजड़े आशियाने।
जरूरत दर्द पर मरहम लगाने की,
देश को पुनः साथ आने की
किन्तु,यक्ष प्रश्न पुनः उठता मन,
बढ़ती हुई मानव लिप्सा अनवरत
कारण स्वयं प्राकृतिक आपदाएँ।
अतिकुपित निज कर्तन निज छाती,
सागर नदी पर्वत तरु कानन धरा
आखिर कब तक ये भौतिक,
अनंत जिजीविषा कहर ढाएगी ख़ुद पर
ये आँधी,तूफान,बाढ़,भूकम्पन या भूक्षरण,
बन ढाती रहेगी विपदाएँ क्रुद्ध कुदरत।
सुधरो रे मानव चल नैतिक पथ,
बन रक्षक मानव जगत अविरत
आओ मिल करें मदद इस अवसाद में,
अपनों के तन मन धन यथावत॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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