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निजता कानून से मिलेगी बात छिपाने की आजादी

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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पिछले तीन-चार सौ साल से दुनिया में एक बड़ी लड़ाई चल रही है। उसका नाम है,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। ब्रिटेन,यूरोप,अमेरिका और भारत-जैसे कई देशों में तो यह नागरिकों को उपलब्ध हो गई है लेकिन आज भी चीन,रूस और कुछ अफ्रीकी और अरब देशों में इसके लिए लड़ाइयाँ जारी हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता क्या है ? अपने दिल की बात बताने की स्वतंत्रता!,लेकिन आजकल एक नई लड़ाई सारी दुनिया में छिड़ गई है। वह है अपनी बात बताने की नहीं,छिपाने की स्वतंत्रता। छिपाने का अर्थ क्या है ? यही कि आपने किसी से फोन पर या ई-मेल पर कोई बात की तो उसे कोई तीसरा व्यक्ति न जान पाए। वह तभी जाने,जब आप उसे अनुमति दें।
आजकल मोबाइल फोन और इंटरनेट की तकनीकी का कमाल ऐसा हो गया है कि करोड़ों लोग हर रोज़ अरबों-खरबों संदेशों का लेन-देन करते रहते हैं लेकिन उनमें से ज्यादातर को यह पता नहीं है कि उनके एक-एक शब्द पर कुछ खास लोगों की नजर रहती है। कौन हैं ये खास लोग ? ये हैं व्हाट्सप और फेसबुक के अधिकारी लोग! उन्होंने ऐसी तरकीबें निकाल रखी हैं कि आपकी कितनी भी गोपनीय बात हो,वे उसे सुन और पढ़ सकते हैं। ऐसा करने के पीछे उनका स्वार्थ है। वे आप पर जासूसी कर सकते हैं,आपको आर्थिक नुकसान पहुंचा सकते हैं, वे आपके फैसलों को बदलवा सकते हैं,आपके पारस्परिक संबंधों को बिगाड़ सकते हैं। यही शक्ति वे सरकार के मंत्रियों,सांसदों और अधिकारियों के विरूद्ध भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
इसीलिए यह मांग उठ रही है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की तरह निजता याने गोपनीयता की स्वतंत्रता की भी कानूनी गारंटी हो। हमारे संविधान में निजता की कोई गारंटी नहीं है। २०१७ में हमारे सर्वोच्च न्यायालय में इस मुद्दे पर जमकर बहस हुई थी। अब २०२१ में भी सर्वोच्च न्यायालय में यही मुद्दा जोरों से उठा है,लेकिन दोनों में बड़ा फर्क है। २०१७ में कुछ याचिकाकर्ताओं ने मांग की थी कि निजता को भी अभिव्यक्ति की तरह संविधान में मूल अधिकार की मान्यता दी जाए,लेकिन तब सरकारी वकील ने तर्क दिया कि यदि निजता को मूल अधिकार बना दिया गया तो उसकी आड़ में वेश्यावृत्ति,तस्करी,विदेशी जासूसी,ठगी,राष्ट्रदोही
आपराधिक और आतंकी गतिविधियां बेखटके चलाई जा सकती हैं। उसने सर्वोच्च न्यायालय के १९५४ और १९५ के २ फैसलों का जिक्र भी किया था,जिनमें निजता के अधिकार को मान्य नहीं किया गया था,लेकिन अब सरकारी वकील निजता के अधिकार के लिए सर्वोच्च न्यायालय में पूरा जोर लगाए हुए हैं। क्यों ? क्योंकि व्हाटसप और फेसबुक जैसी कम्पनियों के बारे में शिकायतें आ रही हैं कि वे निजी संदेशों की जासूसी करके बेशुमार फायदे उठा रही हैं। व्हाटसप के जरिए भेजे जाने वाले संदेशों से इतना फायदा उठाया जाता है कि व्हाट्सप को फेसबुक ने १९ अरब डॉलर जैसी मोटी रकम देकर खरीद लिया है। हर व्हाटसप संदेश के ऊपर यह लिखा हुआ आता है कि आपके संदेश या वार्ता को कोई न पढ़ सकता है,न सुन सकता है,लेकिन इस साल उसने घोषणा कर दी थी कि ८ फरवरी २०२१ से उसके हर संदेश या बातचीत को फेसबुक देख सकेगी। यह खबर निकलते ही इतना हंगामा मचा कि व्हाट्सप ने इस तारीख को आगे खिसकाकर १५ मई कर दिया।
लोग इतने डर गए कि लाखों लोगों ने व्हाट्सप की जगह तत्काल ‘सिग्नल,टेलीग्राम’ और बोटिम’ जैसे नए माध्यमों को पकड़ लिया। देश में आजकल जैसा माहौल है,ज्यादातर मंत्रिगण,नेता,पत्रकार और बड़े व्यापारी लोग व्हाट्सप के इस्तेमाल को ही सुरक्षित समझते हैं। इसीलिए भारत सरकार ने २०१८ में ‘व्यक्तिगत संवाद रक्षा कानून’ के निर्माण पर बहस चलाई है। उसमें दर्जनों संशोधन आए हैं और संसद के इसी सत्र में वह शायद कानून भी बन सकता है। यह कानून ऐसा बन रहा है,जिसमें व्यक्तिगत निजता की तो पूरी गारंटी होगी लेकिन राष्ट्रविरोधी और आपराधिक गतिविधियों को पकड़ने की छूट होगी।
आजकल सर्वोच्च न्यायालय में सरकारी वकील फेसबुक के वकीलों से जमकर बहस कर रहे हैं और पूछ रहे हैं कि यूरोप में आप जिस नीति को पिछले २ साल से चला रहे हैं,वह भारत में क्यों नहीं चलाते ? यूरोपीय संघ ने लंबे विचार-विमर्श के बाद निजता-भंग पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं और उसका उल्लंघन करनेवाली कम्पनियों पर भारी जुर्माना ठोक दिया है। व्यक्ति-विशेष की अनुमति के बिना उसके संदेश को किसी भी हालत में कोई नहीं पढ़ सकता। १६ साल की उम्र के बाद ही बच्चे व्हाट्सप का इस्तेमाल कर सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी निजता के अधिकार की रक्षा में गहरी रूचि दिखाई है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने फेसबुक के लोगों को कहा है कि ‘आप होंगे,दो-तीन ट्रिलियन की कम्पनी, लेकिन लोगों की निजता उससे ज्यादा कीमती है। हर हाल में उसकी रक्षा हमारा फर्ज है।’ न्यायपीठ ने व्हाट्सप से कहा है कि वह ४ हफ्तों में अपनी प्रतिक्रिया दे। फेसबुक के वकीलों ने कहा है कि यदि भारतीय संसद यूरोप-जैसा कानून बना देगी तो हम उसका भी पालन करेंगे। हमारी संसद को यही सावधानी रखनी होगी कि निजता का यह कानून बनाते वक्त वह कृषि-कानूनों की तरह जल्दबाजी न करे।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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