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देवी कुष्मांडा

मधुसूदन गौतम ‘कलम घिसाई’
कोटा(राजस्थान)
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दिवस चार का यह नवराता,कुष्मांडा देवी माता,
एक अंड से ब्रह्मांड सकल,जाना उपजाया जाता।

अपनी मन्द हँसी ही लेकर,सकल जगत है जन्माया,
माता तेरी लीला न्यारी,कौन जान अब तक पाया।

रोग शोक को हरने वाली,तेरे दर्शन काफी है,
पापमुक्त हो जाता पल में,जो भी मांगे माफी है।

हे माता जिसके हाथों से,जब प्रसाद चढ़ जाता है,
किंचित सन्देह बिना उसका,आयु यश धन बढ़ जाता है।

नारंगी वर्णी नवराता,तुझको प्यारा लगता माँ,
ऊर्जा और ज्ञान का संगम,इसमें ही मिल पाता माँ।

शक्ति प्रेम का सघन ज्ञान भी,इसी रंग में छुपा हुआ,
आनंद प्राप्ति का कारक भी,नारंगी रंग बना हुआ।

मंगल ग्रह है मंगल कारक,सूर्यदेव का ओज छिपा,
अरु ब्रहस्पति का ज्ञान अनोखा,इस माता में खूब दिखा।

आदिशक्ति यह आदिमाता,सूर्यलोक में बसती थी,
इसीलिये यह तेज सूर्यसम,अपने तन में रखती थी।

शिव अरदाँगी सिंह सवारी,शोभित अष्टभुजा देवी,
सात हाथ में आयुध सब है,अष्टहाथ माला देवी।

पदम् पुष्प और चक्र गदा,धनुष कमंडल इमरत को,
एक हाथ में बाण लिए,भजती माला जग हित को।

दशो दिशा में तेज प्रकाशित,कांति समतुल्य सूरज के,
सकल जगत के रोशन हैं,तुझसे हर कण इस रज के।

साधक का मन अवस्थित होता,अनाहत चक्र के अंदर,
सो स्थिर मन से ही ध्यान धरे,मन बने तपस्वी मंदिर।

हे कुष्मांडा माता दे दे,मुझको स्मित मिश्री जैसी,
‘मधु’ बेचारा ध्यान धरे तो,करना किरपा कुछ ऐसी।

जिससे मैं भी तर जाऊँगा,नाम तुम्हारा हो जग में,
कोई बाधा नहीं रहे फिर,कोई साधक के मग में।

इस दिन कोय करें पूजा,विस्तृत मस्तक वाली का,
हलुआ और दही का भोजन,भाता इनको थाली का।

भेंट चढ़े सूखे मेवे फल, ‘मधु’ खुश माता हो जाती,
बलि भी जो देना चाहो तो,कुम्हड़ की ही बलि भाती ॥

परिचय–मधुसूदन गौतम का स्थाई बसेरा राजस्थान के कोटा में है। आपका साहित्यिक उपनाम-कलम घिसाई है। आपकी जन्म तारीख-२७ जुलाई १९६५ एवं जन्म स्थान-अटरू है। भाषा ज्ञान-हिंदी और अंग्रेजी का रखने वाले राजस्थानवासी श्री गौतम की शिक्षा-अधिस्नातक तथा कार्यक्षेत्र-नौकरी(राजकीय सेवा) है। कलम घिसाई की लेखन विधा-गीत,कविता, लेख,ग़ज़ल एवं हाइकू आदि है। साझा संग्रह-अधूरा मुक्तक,अधूरी ग़ज़ल, साहित्यायन आदि का प्रकाशन आपके खाते में दर्ज है। कुछ अंतरतानों पर भी रचनाएँ छ्पी हैं। फेसबुक और ऑनलाइन मंचों से आपको कुछ सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी आप अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समय का साधनामयी उपयोग करना है। प्रेरणा पुंज-हालात हैं।

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