श्रीमती अर्चना जैन
दिल्ली(भारत)
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ब्रह्म का अर्थ आत्मा है जो शुद्ध है,बुद्ध है, शाश्वत आनंद स्वरूप है। स्वयं की आत्मा में रमण करना ब्रह्मचर्य धर्म है, संयम की जड़ सदाचार है और यह दोनों ब्रह्मचर्य पर आधारित हैं। जो लोग ब्रह्मचर्य की महिमा को समझते हैं,वे संयम और सदाचार के महत्व को भली-भांति जान लेते हैं। जीवन शक्ति को शरीर में धारण करने की क्षमता ही ब्रम्हचर्य है। ब्रह्म यानी अपने में रहना,शुभ आत्म तत्व में लीन होना ही ब्रह्मचर्य है।
पुरुष वेग की अग्नि अल्प-दृढ़ अग्नि के समान होती है,जो थोड़ी देर जलेगी और बुझ जाएगी,जैसे माचिस की तीली का मसाला,जो हवा का सम्पर्क पाकर जलता है और क्षण में ही बुझ जाता है।
स्त्री के अंदर की अग्नि कंडे की अग्नि के समान होती है। कंडा काफी देर तक भीतर ही भीतर जलता रहता है,सुलगता रहता है, और हवा लगने पर वह अधिक देर तक सुलगता है। स्त्री वेग की अग्नि को इसी कंडे की उपमा दी गई है। इस अग्नि को हम जैसे-जैसे बाहर से जलाने के माध्यम लाएंगे,वैसे- वैसे अग्नि जलती रहती है। स्त्री की ब्रह्मचर्य रूपी अग्नि संवेग के साथ चलती है,वह जलती रहती है। स्त्रियों की इस अग्नि को बढ़ाने के बाहरी साधन बहुत सारे हैं,जैसे-दोस्तों- रिश्तेदारों के साथ घूमना-फिरना, उठना -बैठना,खाना-पीना आदि। यह सब बाहरी कारण हवा की भांति काम करते हैं, जिनसे वासना रूपी अग्नि जलती रहती है, सुलगती रहती है।
पहले १६ साल तक बच्चियों को घर में रखा जाता था,उन्हें सुरक्षित किया जाता था। बेटियों के जल्दी भावुक होने का कारण यही है,इसीलिए उनकी सुरक्षा अधिक की जाती है,मगर आजकल के बाहरी वातावरण ने सबको असभ्य बना दिया है। आज के भौतिक युग में ऐसे ऐसे फिल्मी गीत और फिल्में दिखाई जाती है जिनसे ब्रह्मचर्य पूर्ण खण्डित हो गया है। फेसबुक,व्हाट्सएप पर होने वाली बात,लड़के-लड़कियों की मित्रता और दोस्ती का चलन,इन सबने केवल बच्चों को ही नहीं,बल्कि शादीशुदा लोगों के परिवार में भी ब्रह्मचर्य को खण्डित कर दिया है।
हमें इन सब बाहरी माहौल से बचते हुए स्वयं और बच्चों को भी बचाना है। उन्हें ब्रह्मचर्य का महत्व और अर्थ बतलाना है,जो आज के समय में बहुत जरूरी है।
परिचय-श्रीमती अर्चना जैन का वर्तमान और स्थाई निवास देश की राजधानी और दिल दिल्ली स्थित कृष्णा नगर में है। आप नैतिक शिक्षण की अध्यापिका के रुप में बच्चों को धार्मिक शिक्षा देती हैं। उक्त श्रेष्ठ सेवा कार्य हेतु आपको स्वर्ण पदक(२०१७) सहित अन्य सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है। १० अक्टूबर १९७८ को बडौत(जिला बागपत-उप्र)में जन्मी अर्चना जैन को धार्मिक पुस्तकों सहित हिन्दी भाषा लिखने और पढ़ने का खूब शौक है। कार्यक्षेत्र में आप गृहिणी होकर भी सामाजिक कार्यक्रमों में सर्वाधिक सक्रिय रहती हैं। सामाजिक गतिविधि के निमित्त निस्वार्थ भाव से सेवा देना,बच्चों को संस्कार देने हेतु शिविरों में पढ़ाना,पाठशाला लगाना, गरीबों की मदद करना एवं धार्मिक कार्यों में सहयोग तथा परिवारजनों की सेवा करना आपकी खुशी और आपकी खासियत है। इनकी शिक्षा बी.ए. सहित नर्सरी शिक्षक प्रशिक्षण है। आपको भाषा ज्ञान-हिंदी सहित संस्कृत व प्राकृत का है। हाल ही में लेखन शुरू करने वाली अर्चना जैन का विशेष प्रयास-बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए हर सफल प्रयास जारी रखना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार और सभी को संस्कारवान बनाना है। आपकी दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुन्शी प्रेमचन्द व कबीर दास जी हैं तो प्रेरणापुंज-मित्र अजय जैन ‘विकल्प'(सम्पादक) की प्रेरणा और उत्साहवर्धन है। आपकी विशेषज्ञता-चित्रकला,हस्तकला आदि में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी मातृ भाषा है,हमारे देश के हर कोने में हिन्दी का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। प्रत्येक सरकारी और निजी विद्यालय सहित दफ्तरों, रेलवे स्टेशन,हवाईअड्डा,अस्पतालों आदि सभी कार्य क्षेत्रों में हिन्दी बोली जानी चाहिए और इसे ही प्राथमिकता देनी चाहिए।