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राजधर्म निभाए सरकार

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़(हरियाणा)
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लोकतन्त्र में ऐसा भी होता है कि,प्रचण्ड बहुमत पाने के बाद सत्ताधारी दल का सर्वेसर्वा अपने को अजेय-विलक्षण समझने लगता हैl उसको लगता है कि मैं जो भी कर रहा हूँ,वह उचित ही हैl सब उसको मान ही लेंगे,नहीं तो मैं सत्ता के तंत्र से दबा कर उनके विरोध को अनसुना कर हर बार की तरह कुचल दूँगा,क्योंकि सभी विरोधियों का सुर एक भी हो जाए तो भी मेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा। यही तो लोकतांत्रिक तानाशाही है। इसी दिव्य अनुभूति का भान प्रधान सेवक कहने वाले प्रधानमन्त्री को हो गया है। जो कानून किसानों के हित के लिए बनाने का दावा किया जा रहा है,क्या उसके
लिए किसानों,किसान संगठनों,कृषि वैज्ञानिकों से बात की गई ? ज़मीनी हकीकत जानने वाले या जमीन से जुड़े लोगों से बात हुई। वर्तमान सरकार को सपने में भी यह उम्मीद नहीं थी कि किसानों का आंदोलन इतना विशाल,शान्त और प्रभावी होगा। राज्यसभा में मानसून सत्र में हो-हल्ले के दौरान धींगामुश्ती से ध्वनिमत से पारित कराया गया,मतदान भी नहीं होने
दिया गयाl गर ऐसा हुआ होता तो शायद ये ३ कानून भी अभी न बने होते। अकाली दल की नाराज़गी प्रचण्ड बहुमत के नशे में अनदेखी कर दी गई। किसानों से आज प्रत्येक की हमदर्दी जुड़ी है,वो अन्नदाता तो है ही,और फिर किसान वर्ग में
सब जाति-धर्म के लोग हैं। देश की आधी आबादी खेती से जुड़ी है। पंजाब के मरजीवड़े युवा व प्रौढ़ किसानों के ज़ज़्बे को भांपने व पहचानने में सरकार भूल कर गई। जब पंजाब में २ माह से रेल रोको आंदोलन चल रहा था,केन्द्रीय सरकार के राजस्व को हानि पहुँच रही थी तो भी सचेत जाती तो ठीक थाl फिर दिल्ली आने की घोषणा तो वो एक महीने से कर ही रहे थे। हरियाणा में तो अजब हालत है,दुष्यंत चौटाला का दल एक ओर तो कहता है,-हम किसानों के साथ हैं,फिर सत्ता का चस्का भी नहीं छोड़ पा रहा है। इस दोगलेपन को जनता खूब समझती है। इनका ये कानून कहता है कि किसान अपनी फसल कहीं भी बेच सकता है और इनके अपने ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर व शिवराज सिंह चौहान कह रहे हैं,-हम अपने राज्य में दूसरे राज्य के किसान को फसल बेचने नहीं देंगे। अरे,देश के अनोखे कर्णधारों पहले खुद तो इस प्रावधान पर एकमत हो जाओ!
केन्द्रीय सरकार को तो यह गुमान था कि,जैसे सीएएनागरिकता कानून से उपजे आंदोलन से निपटे,वैसे ही इससे भी निपट लेंगे,पर ये किसान रणबांकुरे तो लम्बी लड़ाई लड़ने की ठान कर आए हैं।जितना लम्बा सरकार खिंचवाएगी,उतना ही ये विशाल दृढ़ और असरदार होता जाएगा। सिर्फ दिल्ली व उसके आसपास के लोग ही नहीं,बल्कि धीरे-धीरे यह देश के अधिकांश हिस्सों में दृश्यमान होगा,जिसकी घोषणा किसान संगठनों के प्रतिनिधि कर ही रहे हैं।नेता तो सत्ता के नशे में स्वस्थ राजनीति का अर्थ ही भूल गए हैं। अपना विरोध करने वाला हर शख्स उन्हें देशद्रोही लगता है। लगता है यही उनके राजधर्म का पर्याय रह गया है। एक तरफ तो सरकार दबे स्वरों में ये भी कहती है कि,कुछ गलती हमसे हुई है,कानून लाने से पहले बात करनी चाहिए थी तो अब गलती सुधारने को अपनी मूंछ की लड़ाई भी बना रहे हो और ऊपर से धौंस भी दिखा रहे हो।
ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि,जो सरकार जनभावनाओं का सम्मान नहीं करती है,सत्ता के मद में भय का माहौल बना देती है,वक्त आने पर जनता उसे धूल भी चटा देती है। इतिहास गवाह है वक्त के प्रवाह में बड़े-बड़े सिकन्दर डूब गए। राजहठ तो छोड़े बिना बात नहीं बनेगीl
आज परिस्थिति बहुत विकट है,विधायिका-सांसद और विधायक नैतिक चरित्र विहीन,कार्यपालिका निरंकुश व तानाशाह,अधिकांश मीडिया सरकारी भोंपू–आम नागरिक किंकर्तव्यविमूढ़ है,क्या करूँ ? आज सच में हमारे देश की परिस्थिति कुछ ऐसी ही हो गई हैl कुछ भी समझ ही नहीं आ रहा कि,सही दिशा में,सही विकास की राह पर कैसे आगे बढ़ा जाए। हर कोई अंधेरे में ही हाथ-पाँव मारता दिखाई दे रहा है। कांग्रेस के साठ साल के शासन को पानी पी-पी कर कोसने वाले स्वयं को अजीब परिस्थितियों में उलझा हुआ तथा अपने को दूसरों से अलग कहने वाले अपने ही कार्यकलापों से जनता से अलग होते जा रहे हैं। यह तो सभी विपक्षी दलों का दुर्भाग्य है कि,वह अपनी- अपनी चौधराहट की छोटी-बड़ी गठरी व स्वार्थ को ले कर बस किसी तरह कुछ पाने की इच्छा में सलंग्न है। इन्हीं की नाकामयाबियों व बिखराव का फायदा उठा कर जो सरकार बहुमत से आई,अब वह हर बार अपनी असफलताओं का ढिंढोरा भी सफलता के गायन के रूप में पीटती हैl
जिन किसानों को दुगनी आय का झांसा ही देते रहे, आज उन्हीं के लिए बनाए कृषि कानूनों का लाभ उन्हें सही ढंग से समझा नहीं पा रहे हैं। उनको आंदोलन करने को मजबूर कर दिया है।
इस वर्ष के शुरू में पूरे विश्व में व्याप्त कोरोना महामारी को हल्के में लेकर मार्च के आखिर में बिना परिणाम की चिंता किए तालाबन्दी को एकाएक पूरे देश पर थोप दिया,जिससे सबके आगे रोजी-रोटी का संकट आ गया। ऐसी परिस्थितियों से ९ माह बाद भी अभी तक देश पूरी तरह उबर नहीं पाया हैl इससे केन्द्र के साथ सभी राज्य सरकारोँ को अपने किए उपायों की सफलता पर ही सन्देह हो रहा है। पूरी निष्ठा,समर्पण,सबके समान विकास की वास्तविक सोच को आगे रख कर ही कुछ ठोस करना होगा।
लगता है इस हमाम में सब वस्त्रहीन हैंl आज एक आम नागरिक अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहा हैl आखिर हमने इन्हीं कर्णधारों के हाथ में देश-प्रदेश की सत्ता ही नहीं,अपना भविष्य भी सौंपा हैl अपना कल सौंपा हैं,बरसों से सँजोए सुनहरी सपनों को साकार होते देखने की चाहत सजाई हैl जनता ने ही आपको राजपाट दिया था,राजधर्म का पालन करते हुए उसे सुचारू रूप से चलाने के लिए राज हठ में यह हश्र कर दोगे,सोचा न था! मत भूलो,हश्र करने वालों का हश्र क्या होगा,यह निर्धारण भी तो वक्त आने पर उन्हें ही करना है,जिन्होंने तुम्हें ये राजपाट सौंपा हैl

परिचय–राजकुमार अरोड़ा का साहित्यिक उपनाम `गाइड` हैL जन्म स्थान-भिवानी (हरियाणा) हैL आपका स्थाई बसेरा वर्तमान में बहादुरगढ़ (जिला झज्जर)स्थित सेक्टर २ में हैL हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री अरोड़ा की पूर्ण शिक्षा-एम.ए.(हिंदी) हैL आपका कार्यक्षेत्र-बैंक(२०१७ में सेवानिवृत्त)रहा हैL सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत-अध्यक्ष लियो क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ाव हैL आपकी लेखन विधा-कविता,गीत,निबन्ध,लघुकथा, कहानी और लेख हैL १९७० से अनवरत लेखन में सक्रिय `गाइड` की मंच संचालन, कवि सम्मेलन व गोष्ठियों में निरंतर भागीदारी हैL प्रकाशन के अंतर्गत काव्य संग्रह ‘खिलते फूल’,`उभरती कलियाँ`,`रंगे बहार`,`जश्ने बहार` संकलन प्रकाशित है तो १९७८ से १९८१ तक पाक्षिक पत्रिका का गौरवमयी प्रकाशन तथा दूसरी पत्रिका का भी समय-समय पर प्रकाशन आपके खाते में है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। प्राप्त सम्मान पुरस्कार में आपको २०१२ में भरतपुर में कवि सम्मेलन में `काव्य गौरव’ सम्मान और २०१९ में ‘आँचलिक साहित्य विभूषण’ सम्मान मिला हैL इनकी विशेष उपलब्धि-२०१७ में काव्य संग्रह ‘मुठ्ठी भर एहसास’ प्रकाशित होना तथा बैंक द्वारा लोकार्पण करना है। राजकुमार अरोड़ा की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा से अथाह लगाव के कारण विभिन्न कार्यक्रमों विचार गोष्ठी-सम्मेलनों का समय समय पर आयोजन करना हैL आपके पसंदीदा हिंदी लेखक-अशोक चक्रधर,राजेन्द्र राजन, ज्ञानप्रकाश विवेक एवं डॉ. मधुकांत हैंL प्रेरणापुंज-साहित्यिक गुरु डॉ. स्व. पदमश्री गोपालप्रसाद व्यास हैं। श्री अरोड़ा की विशेषज्ञता-विचार मन में आते ही उसे कविता या मुक्तक रूप में मूर्त रूप देना है। देश- विदेश के प्रति आपके विचार-“विविधता व अनेकरूपता से परिपूर्ण अपना भारत सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, साहित्यिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप में अतुल्य,अनुपम, बेजोड़ है,तो विदेशों में आडम्बर अधिक, वास्तविकता कम एवं शालीनता तो बहुत ही कम है।

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