प्रियंका सौरभ
हिसार(हरियाणा)
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दरअसल सरकारी विद्यालय असफल नहीं हुए हैं,बल्कि यह इसे चलाने वाली सरकारों,नौकरशाहों और नेताओं की असफलता हैl सरकारी विद्यालय प्रणाली की हालिया बदसूरती के लिए यही लोग जिम्मेवार हैं,जिन्होंने निजीकरण के नाम पर राज्य की महत्वपूर्ण सम्पति का सर्वनाश कर दिया हैl वैसे भी वो राज्य जल्द ही बर्बाद हो जाते हैं,या भ्रष्टाचार का गढ़ बन जाते हैं,जिनकी शिक्षा,स्वास्थ्य और पुलिस व्यवस्था पर निजीकरण का साँप कुंडली मारकर बैठ जाता हैl आज निजी विद्यालयों का जाल देश के हर कोने में फैल गया हैl सरकारी विद्यालय केवल इस देश के सबसे वंचित और हाशिये पर रह रहे समुदायों के बच्चों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैंl अच्छे घरों के बच्चे निजी शाला में महंगी शिक्षा ग्रहण कर रहे और इस तरह हम भविष्य के लिए २ भारत तैयार कर रहे हैंl
शिक्षा के माफिया विद्यालयीन शिक्षा को एक बड़े बाजार के रूप में देख रहे हैं,जिसमें सबसे बड़ी रुकावट सरकारी शाला ही हैl इस रुकावट को तोड़ने के लिए वे आये दिन नई-नई चालबाजियों के साथ सामने आ रहे हैं,जिसमें सरकारी शालाओं में लोक-निजी-साझेदारी व्यवस्था को लागू करने पर जोर दे रहे हैंl शिक्षा की सौदेबाजी के इस काम में नेताओं और अफसरशाही का भी समर्थन मिल रहा है,जो सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने में मदद करते हैंl यही कारण है कि राज्य सरकारें प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी,गुणवत्तापूर्ण शिक्षा,ज़रूरी आधारभूत सुविधाओं की कमी,बच्चों की अनुपस्थिति और बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने के मसलों पर कोई जोर नहीं देतीl हैरानी होगी कि हरियाणा राज्य में पिछले १० साल में प्राथमिक शिक्षकों की कोई भर्ती नहीं की गई,जबकि वहां के लाखों छात्र अपनी योग्यता को साबित कर एचटेट
की दस-दस बार परीक्षाएं उत्तीर्ण कर चुके हैंl इससे यही साबित होता है कि सरकार राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर जोर नहीं देना चाहतीl
करीब ५ साल पहले इलाहाबाद हाई ने सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा पर सख्त कदम उठाया था। कोर्ट ने कहा था कि जब तक जनप्रतिनिधियों,उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों और न्यायाधीशों के बच्चे सरकारी विद्यालयों में नहीं पढ़ेंगे,तब तक इन विद्यालयों की दशा नहीं सुधरेगी। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को उस समय अगले शिक्षा सत्र से इस व्यवस्था को लागू करने को कहा था,मगर यह व्यवस्था लागू करने का आदेश शिक्षा के ठेकदारों ने कागज़ों में ही गुम कर दियाl
हमें सबके लिए एक समान विद्यालय की बात करनी होगी,लेकिन यह बात इतनी सीधी नहीं है। जब पानी से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य तक की चीजों को बाजार में ला दिया गया हो तो यह बात बेतुकी है। शिक्षा की जर्जर हालत को सुधारने के लिए हमें इस दिशा में बढ़ना होगा। सामाजिक न्याय,समरसता और बदलाव का यही एकमात्र रास्ता है। ये देश भर के सभी बच्चों के लिए एक ऐसी व्यवस्था की वकालत है,जिसमें हर वर्ग के बच्चे को बगैर किसी भेदभाव के एक साथ पढ़ने-बढ़ने का अधिकार मिल सकता है।
वैसे भी,सावर्जनिक विद्यालय तभी अच्छे तरीके से चल सकते हैं,जब इसके संचालन में समुदाय और अभिभावकों की भागीदारी होl आज ग्रामीण क्षेत्र के ज्यादार सरकारी विद्यालय बच्चों के अभाव में बंद होने की कगार पर हैंl गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए समुदाय की सक्रिय भागीदारी ज़रूरी है,लेकिन हमारे सरकारी शाला संचालन-प्रशासन,बजट व प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी और ढांचागत सुविधाओं पर खरे उतरने में नाकाम रहे हैं,जिससे लोगों का ध्यान सरकारी से हटकर निजी विद्यालयों की तरफ हो गया हैl दूसरा शिक्षा माफियों ने इसे मौका समझकर अपना धंधा बना लिया हैl
ऐसे में एक उम्मीद न्यायपालिका से ही बचती हैl वर्तमान दौर में देशभर में शिक्षक पात्रता
उत्तीर्ण युवाओं की कोई कमी नहीं है,लेकिन वो नौकरी के अभाव में बेरोजगार हैंl केन्द्र सरकार और न्यायपालिका को शिक्षा के निजीकरण पर पूर्ण पाबंदी लगानी चाहिए और देश में सबके लिए एक समान शिक्षा की पहल को पुख्ता करना चाहिएl सभी निजी शाला सरकार के अधीन कर नयी शिक्षक भर्ती करें,ताकि देशभर के प्रतिभाशाली शिक्षक हमारी शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करेंl