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गुलमोहर के फूल

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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गुलमोहर के फूलों जैसे,मैं खिली रहती थी,
कोई मकसद नहीं था हँसने का,फिर भी हँसती रही।
मेरे नैनों की डगर से तुम एक रोज गुजर रहे थे,
मैं बोली भी नहीं थी और तुम ठहर गए थे।
किया था तूने वादा मैं प्यार निभाऊंगा,
सारी रात राह ताकती रही,कब आओगे सोचती रही।
गीत मिलन का हर पल मैं गुनगुनाती रही,
कोई मकसद नहीं था हँसने का,फिर भी हँसती रही…

वादा कर गए थे तुम मैं जल्द लौटकर आऊंगा,
फिर लौटकर तुम नहीं आए…नहीं आए।
तड़प-तड़प कर दिल से आह निकलती रही,
हर शाम की खामियां रोज मुझे खलती रही।
तेरे झूठे सब वादे कांटों की तरह चुभते रहे,
गुलमोहर के फूलों जैसे,मैं खिली रहती थी।
कोई मकसद नहीं था हँसने का,फिर भी हँसती रही…

पगली कठपुतली-सा ओ मुझे समझता रहा,
खूब नचाता रहा,और मैं नाचती रही।
थक गई जब एक रोज देव नाचते-नाचते,
आई समझ में तब मुझे उस मदारी की बातें।
अच्छा सिला दिया तूने मुझे प्यार में,
थक गई मैं अब तेरे इंतजार में…तेरे इंतजार में।
मेरी भीअपनी कुछ इच्छाएं हैं,तुम नहीं जाने,
अब निकल गई है देव मदारी की झोली से।
गुजरने लगी है देव अब,देवलोक की टोली से,
खुशनसीब समय था ओ,जब तुझसे प्यार नहीं था।
गुलमोहर के फूलों-सा मैं सदा खिली रहती थी,
कोई मकसद नहीं था हँसने का,फिर भी हँसती रही…॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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