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आत्मप्रकाश गुरु नानक देव

एन.एल.एम. त्रिपाठी ‘पीताम्बर’ 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)

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कायनात को जब होती दरकार इंसानियत का हाकिम गुरु नानक एक नाम,
नेकी नियत के रिश्तों का अलख जगाता ईश्वर के स्वर साक्षात का देता दुनिया को नया नया प्रकाशl
सन चौदह सौ उनहत्तर तलवंडी एक गाँव कालू तुरूपता के दामन घर आँगन में बालक दुनिया में नाव सूर्य का मान,
पंडित ज्ञानी ने देखी जन्म लग्न की कुंडली,नेक नियति,मानव- मानवता का संत दुनिया में नया प्रभा प्रवाह नानक इसका नामll

बचपन से नानक का दिखता परम प्रकाश गुरुओं के हर प्रश्न का उत्तर देत मुस्काय,
गुरु गोपाल दास ने ओंकार का दुनिया में मतलब महत्त्व का अर्थl
पिता कालू मेहता ने देखा नानक का बचपन से ही संत-फ़क़ीर का साथ,
लरिकाई की हँसी-ठिठोली शरारत नानक को ना भायll

सोच-समझ के पिता कीन्ह विचार नानक के नन्हें कांधे डाला जिम्मेदारी का भार,
गाय चरावन नानक भोर भई जंगल को नित जायl
नानक मन ही मन कीन्ह विचार,जब तक गाय चरत बैठो ध्यान लगायl
नित-प्रतिदिन नानक गाय चरावन जात जस गईया जंगल करे तस तस नानक का ध्यान ज्ञान से बढ़त आत्मप्रकाश,
एक दिन नानक गाय संग गए जंगल को गाय चरत अपनी धुन में नानक बैठे ध्यान लगायll

नानक नित-दिन प्रातः गाय चरावन जात प्रतिदिन आश्चर्य का नानक बनत पर्याय,
एक दिन गाय चरत-चरत गई खेत का फसल कुछ चबाय।
किसान खेत का मालिक क्रोधित हो दौड़ा आय,
बोला बालक नानक से-कैसे गाय चराय तुम्हरी लापरवाही से हुआ बहुत नुकसान॥

कैसे भरपाई होवे हानि की सो तुम करो उपाय,चाहे तुमरे बापू मेरी हानि भर जाए,
सुन क्रोधित किसान के कटु वचन नानक के मन को बर्छी-सा चुभ जाय।
बोला किसान-चल दृष्ट बालक राजा के दरबार,न्याय वहीं होगा करियो तुम हानि भरपाई,
नानक गया राज दरबार किसान ने राजा से किया न्याय की फरियाद॥

बालक नानक को देख राजा राय बहादुर मंद मंद मुस्काय,
राजा की यादों में नाग छतरी की याद युग की नई रोशनी दुनिया का दरबार आरोपी बन उसके ही दरबार।
क्रोधित किसान ने राजा को बयां किया सब हाल,बोला-है प्रजापालक करो आज तुम न्याय,
राजा ने फिर पूछा घटना का वृत्तान्त,किसान की भरपाई का मार्ग॥

बालक नानक बोला-सुनो चाचा किसान ध्यान लगाय,
जितना गईया ने खेत चारि नापो आपन माप जब फसल कटत दूना होई मानो हमरी बात।
किसान का मन नहीं मानत,बोला खिसियाय-कैसे भरोसा तुम्हरे बात पर तुम तो खुद बालक बात करत जस भगवान,
नानक कैसेहु समझाय सगरों जुगत लगाय, किसान के मन मे भरोसा कुछ जगाय॥

बोला किसान बबुआ फसल कटत तक अब इंतज़ार,
गर निकली तुम्हरी बात ग़लत जानियो फिर अंजाम।
राजा ने भी किसान को दिया ढांढस-विश्वास-जाओ निश्चित हो होइहि पूरी हानि,
धीरे-धीरे दिन बीते फसल काटन का दिन नियरॉय॥

फसल कटी किसान ने लियो माप लगाय चौहद्दी खेत की लिया दिमाग लगाय,
ऊपज निकली खेत की गत वर्षों से दुगुनी फसल और आय।
किसान आत्मग्लानि से शर्मिंदा ख़ुद से लजाय,आत्मग्लानि से भरे भाव से गया नानक के पास,
क्षमा खेद से मांगता शरणागत की नाहीं, निश्चल निर्विकार नानक ने किया किसान को माफ॥

सूर्य की प्रबलता की गर्मी अधिकाय तक्षक के रूप में नाग देव खुद भयंकर गर्मी से रक्षा को नानक के सर अपने फन की छतरी दियो बनाय,
नानक निश्छल निश्चिन्त रहो ध्यान लगाय।
राय बहादुर राजा रियासतदा राज काज के कार्य से मंत्री संग निकले जंगल की राह,
दंग रह गए देख कर नाग फन की छतरी के साये में बालक ध्यान लगाय,बालक कैसे बचें नाग से राजा राय बहादुर सगरों हुगुत लगाय॥

घोड़े पर सवार भाजत तलवार सोवत बालक की रक्षा को राजा राय बहादुर पहुंचे ध्यान मगन बालक के पास,
धीरे-धीरे बाग देवता सरके अपने-आप,देख दंग राजा हुआ समझ कुछ न पाय।
बालक नानक के चमत्कार से नित-नित महक दमक दुनिया का गुलशन गुलज़ार,
दुनिया ने बालक नानक को दिया गुरु नानक साहब का नाम॥

कालू मेहता की पिता की चाहत,नानक गृहस्थ जीवन का वरण करे-करे दुनियादारी का काज,
पिता कालू मेहता ने किया बहुत विचार बेटे की छूटे संतई सोचन लगे उपाय।
बड़े प्यार से बेटे नानक को लिया बुलाय, बोले-बेटा शुरू करो व्यापार से गृहस्थी की शुरूआत।
नानक साहिब ने आज्ञाकारी पुत्र से किया पित्र आज्ञा को शिरोधार्य,
पिता ने द्रव्य दिया,मित्र संग शुरू किया
व्यापार॥

व्यापार की व्यहारिकता में नानक की कटती सुबह और शाम,
नित्य-निरन्तर की तरह नानक मित्र संग निकले करने को व्यपार।
भूखे सन्त फकीर जैसे नानक की देखत राह आस लगाय,
नानक साहिब ने देखा विकल भूख से संत फ़क़ीर का हाल दौड़े-भागे हाट गए ले आये भूखे संतन फ़क़ीर का आहार भूल गए
व्यापार॥

व्यापार की पूँजी-बाप की आशा औऱ कमाई भूखे की क्षुधा दृप्ति नानक ने दिया गंवाय,
पिता ने जाना जब पुत्र ने उनकी आस-विश्वास की पूंजी को भूखे की क्षुधा तृप्ति में दिया व्यर्थ गंवाय।
क्रुद्ध क्षुब्ध हो नानक को पीटत लिया दौड़ाय,
बहन नानकी ने देखा,दुखी पिता से पिटते भाई नानक को पिता को समझने की कोशिश करती ढांढस देती॥

पिता पुत्र को नालायक लापरवाह का कसूरवार मानते,
उनको क्या पता नानक उनकी सन्तान युग दुनिया की आशाओं-उम्मीदों का चिराग।
पिता-पुत्र के मध्य मिलते नहीं विचार,
पिता की चाहत बेटा सँभाले घर-गृहस्थी
व्यापार॥

उनको क्या मालूम नानक उनकी संतान युग दुनिया की नए मूल्य-मूल्यों की मानव मानवता का अभिमान,
बहन नानकी और जय राम पहुंचे राजा राय बहादुर के पास।
नानक के लिये मांगी नौकरी,राय बहादुर ने दी नानक को नौकरी,लेखा-जोखा सुल्तानपुरपुर का अनाज गोदाम,
राजा ने दी नेक नियति से एक सलाह-नानक का रच डालो योग्य संगिनी संग ब्याह॥

नानक का धूमधाम से माँ-बाप ने किया विवाह,
जीवनसंगिनी ‘सुलखनी’ नानक के जीवन की नव शुरुआत।
सुलखनी नानक संग पहुचे सुल्तानपुर जिंदगी के अरमानों के साथ,
नानक ने संभाला राज्य अनाज गोदाम के मुखिया का भार॥

जिंदगी में सब कुछ चलने लगा खुशी-मुस्कानों के साथ,
ईश्वर की कृपा-आशीर्वाद से सुखमनी नानक को प्राप्त हुए दो अनमोल रतन।
पुत्र यश-कीर्ति का वरदान,
नानक की खुशी मुस्कान साथ सहकर्मियों
को ना आई रास॥

वर्षों गुजर गए सुख चैन से जीवन में ना कोई व्यवधान,
दौलत खान सुल्तानपुर का बेताज़ बादशाह नानक से मन ही मन नफरत का भाव।
दौलत खान की यह बात साथ सहकर्मी साथियों ने बनाया हथियार,
पहुंचे लिये शिकायत सुल्तान दौलत खान के पास,की शिकायत नानक की नमक-मिर्ची लगाय॥

आनाज के गोदाम में घपले-घोटाले के आरोपों की नफरत के वार घाव दौलत का को पसंद आई अवसर और बात,
दिया आदेश-जाँच के हर पहलू से जाँच हुई निकली ना कोई बात,आरोप सभी निराधार। हुए लेखा-जोखा नियत निष्ठा विश्वास के आईने से साफ,
लज्जित सब सहकर्मी आरोप सभी निराधार, दौलत खान के आश्चर्य से शर्मिंदा शर्मशार॥

दिन-रात सुबह-शाम बीतते रहे युग नानक का गुरु नानक साहब का इंतजार,
एक दिन नानक घर से निकले,नहीं लौटे बीतने लगे सुलखनी के निराशा में दिन-रात।
मान लिया परिवार ने अब नहीं रहा नानक का साथ,
रोते-बिलखते परिवार ने छोड़ दी नानक की आस,मान लिया नानक छोड़ चले गए परिवार अनाथ॥

लौटे नानक तीन दिवस के बाद आश्चर्य चकित भाव में सब लोग परिवार,
नानक ने बतलाया अपने अंतर्ध्यान का राज।
नानक बोले-परम शक्ति परमात्मा का है यह आदेश-मैं युग दुनिया मिटाऊं द्वेष दम्भ छल छद्म कपट प्रपंच,
मानव मानवता का प्रेम दया क्षमा का मार्ग मर्म का नानक कर्म-धर्म के ज्ञान का गुरु युग का सूर्योदय प्रवाह॥

त्याग-तपस्या युग जीवात्मा कल्याण जीवन का उद्देश्य हमारा नियति का वरदान,
लालों ने भी सुनी गुरु सहिब की महिमा और बखान,जागी श्रद्धा मन में।
गुरु साहिब को घर भोजन का न्योता लिये स्वयं याचक-सा लालों आशीर्वाद को,
गुरु साहिब के चरणों मे मत्था दियो नवाय॥

गुरु सहिब ने जब देखा निर्मल निश्छल लालों का भाव,
स्वीकार किया निमंत्रण लालों को गले लगाय।
गुरु सहिब विराजमान रहे कुछ दिन, आमनाबाद जनता जनार्दन गुरु सहिब की वाणी में आशीर्वाद पाय अघाय,
जन-जन की इच्छा गुरु सहिब का दर्शन आशीर्वाद की प्यास,जो जाए गुरु शरण में हो जाये निष्पाप निहाल॥

सुना महिमा गुरु की अमनाबाद का रईस नबाब,
ठानी मन में जिद गुरु साहिब आवे उसके द्वार।
भेज दिया निमंत्रण अपने कारिंदों के हाथ, गुरु पास जब पहुंचे कारिंदे लिये निमंत्रण- भागो सिंग का साथ सुना ध्यान से गुरु सहिब ने न्योता दिया लौटाय॥

तब खुद भागा भागा-भागा पहुँचा लिए साथ दौलत और अभिमान,
देखा हतप्रभ हुआ गुरु सहिब लालों की सूखी रोटी बड़े प्यार-चाव से खात।
बोला गर्व अभिमान से गुरु से-मैं तो स्वादिष्ट मिठाई भोजन को लाया हूँ गुरु साहिब सेवा में ग्रहण करें कलेवा करें कृतार्थ,
लालों की रोटी जब गुरु सहिब खात-चबाय, टपके दूध की धार॥

जब गुरु सहिब ने अभिमान की मिश्री भागो सींग का नैवैद्य लगे दबाय,निकल पड़ी रक्त की धार भागो लगा लजाय,
गुरु साहिब बोले तब-सुन भागो तू मज़दूरों का खून चूसता-सताता,देता उन्हें रुलाय।
मज़दूरों का पसीना ही तेरे नैवेद्य में रक्त की हाय,
जब तू इंसानों के संग नहीं करेगा इंसानियत का व्यवहार,तब तक तेरा मिथ्या तेरा अभिमान॥

देखो इस लालो को निश्चल निर्मल मेहनतकश ईमान का का इंसान,इसकी सूखी रोटी में खुद खुदाय,
पश्चात्ताप आत्मग्लानि से भागो बहुत लजाय।चरण पड़ो गुरु साहिब के छोड़ अहंकार अभिमान।
नानक जग का गुरु प्रेम शांति का मार्ग,
मानव मानवता का बुनियादी सिद्धान्त का बुनियादी कल्याण मार्ग॥

गुरु साहिब को एक दिन दूनी चंद रईस सेठ धुनिचंद ने श्रद्धा से आमन्त्रित किया,
घर पवित्र मन पवित्र कर गुरु आशीर्वाद की चाह।
गुरु सहिब नानक पहुंचे दुनीचंद के द्वार,सेठ धुनिचन्द भाग्य पर फूला नहीं समाय,
आदर-आस्था से गुरु भक्ति में समर्थ
शक्ति दियो लगाय॥

गुरु भक्ति में धुनिचंद अपनी दौलत संपत्ति का करत रहत बखान,गुरु साहब सब सुन रहे धुनिचंद की दौलत का गुणगान,दौलत चंद की आप बखान,
भोजन धुनिचंद का ग्रहण कर धुनि चंद के हाथन में गुरु साहब ने छोटी सी सुई दियो थमाय।
बोले गुरू साहिब-सुनो धुनिचंद तुम्हरे पास तो दौलत की चकाचौंध जिंदगी पर क्या मेरी दी सुई तेरे संग जाय,अंतकाल में झूठे इस संसार से हाथ साथ कछु ना जात,
टुटा धुनि का गुरुर…गुरु ने लिया गले लगाय धुनिचंद में फैला आत्म प्रकाश॥

परिचय-एन.एल.एम. त्रिपाठी का पूरा नाम नंदलाल मणी त्रिपाठी एवं साहित्यिक उपनाम पीताम्बर है। इनकी जन्मतिथि १० जनवरी १९६२ एवं जन्म स्थान-गोरखपुर है। आपका वर्तमान और स्थाई निवास गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) में ही है। हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री त्रिपाठी की पूर्ण शिक्षा-परास्नातक हैl कार्यक्षेत्र-प्राचार्य(सरकारी बीमा प्रशिक्षण संस्थान) है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त युवा संवर्धन,बेटी बचाओ आंदोलन,महिला सशक्तिकरण विकलांग और अक्षम लोगों के लिए प्रभावी परिणाम परक सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,नाटक,उपन्यास और कहानी है। प्रकाशन में आपके खाते में-अधूरा इंसान (उपन्यास),उड़ान का पक्षी,रिश्ते जीवन के(काव्य संग्रह)है तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-भारतीय धर्म दर्शन अध्ययन है। लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-पूज्य माता-पिता,दादा और पूज्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन हैं। विशेषज्ञता-सभी विषयों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा दे सकने की क्षमता है।

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