कुल पृष्ठ दर्शन : 165

You are currently viewing हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति को बचाने में सहायता कीजिए…

हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति को बचाने में सहायता कीजिए…

डॉ. अशोक कुमार तिवारी
*********************************

ओमान से हिंदी शिक्षक की गुहार

जैसे मैं पहले लिख चुका हूँ सीबीएसई से सम्बद्ध इंडियन स्कूल निजवा ओमान से हिन्दी भाषी हिन्दी शिक्षक-शिक्षिकाओं को षड्यंत्र करके हटाकर हिन्दी भाषा को कमजोर किया जा रहा है। ये बातें लिखने पर विद्यालय वाले जेल में बंद करवा देने की धमकियाँ दे रहे हैं। हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति को बचाने में सहायता कीजिए।
१ अप्रैल को एम्बेसेडर साहब ने मुझे मिलने का समय दिया था। निज़वा से मिलने के लिए हम दोनों गए थे पर अचानक सर की कोई मीटिंग आ गई तो पूरी बात नहीं हो पाई। उन्हें बताना चाहता हूँ- निज़वा की समस्या के लिए जिम्मेदार प्रिंसिपल जॉन डोमनिक प्रिंसिपल के लायक योग्यता- अनुभव नहीं रखते हैं। प्रेसिडेंट नौशाद काकेरी कम पढ़े-लिखे छोटे बिजनेसमैन हैं, जिनके बच्चे लगभग २ साल पहले आईएसएन से टीसी ले चुके हैं। ऐसे अरुण प्रसाद और मुफीद साहब भी प्रिंसिपल की संकुचित धारणा के समर्थन के लिए समिति में हैं-इन्हीं सबसे तंग आकर अत्यंत अनुभवी और योग्य पुराने प्रेसीडेंट डॉ. जुनैद, अनुपमा मैम और फरकत उल्लाह सर ने समिति से इस्तीफा दे दिया है। (उन्होंने कई बार प्रिंसिपल की समस्याओं को बीओडी में भेजा था,पर कोई सुनवाई नहीं हुई।)। डॉ. जुनैद की समिति के सभी लोग,जब वो लोग समिति चला रहे थे,शिक्षकों के निवेदन पर एचओडी-इंचार्जस को बदलने की बात की थी,पर प्रिंसिपल ने किसी की बात नहीं मानी और पब्लिकली सभी स्टाफ के सामने मना कर दिया। आज उन्हीं अयोग्यों की टीम बनाकर प्रिंसिपल सर राजनीति कर रहे हैं।
प्रिंसिपल के आने से पहले आईएसएन में रियाल्स की कमी नहीं रहती थी,बोर्ड में बच्चे फेल नहीं होते थे,सब मिलकर काम करते थे। मेरे मेंटर फहीम सर हैं,पर आज प्रिंसिपल मेरे बारे में अगेंस्ट द कम्युनिटी का झूठा प्रचार करते हैं,क्योंकि सबसे जूनियर अपेक्षाकृत अनुभवहीन रूना फातिमा को हिन्दी एचओडी कैसे बनाया है-मैंने ये प्रश्न कर दिया था। ये निवेदन दिसम्बर २०१९ में ऐम्बेसेडर साहब से मिलने पर और पुराने प्रिंसिपल-प्रेसीडेंट को भी भेजा था,तब तो ये प्रश्न इस श्रेणी में नहीं आया था ?,जिससे सभी दुखी हुए,पर प्रिंसिपल के साथ पूरा बीओडी ऑफिस है,ये सोचकर सभी चुप रह गए। बोर्ड रिजल्ट्स जो इस बार का सबसे खराब आया है,विद्यालय में लगाया जाए ऐसे निर्देश को जो उस समय के अकेडेमिक को-ऑर्डिनेटर अनुपमा मैम ने सुझाव दिया था,उनकी बात भी प्रिंसिपल ने नहीं मानी थी। इसलिए अनुपमा मैम ने दुखी होकर इस्तीफा दे दिया।
२०१५ में मेरे ज्वाइन करने के बाद ७ हिन्दी शिक्षक-शिक्षिकाएँ थीं। आज केवल रूना फातिमा एकमात्र हिन्दी शिक्षिका आईएस एन में बची हुई हैं। बाकी सभी को षड्यंत्र करके हटा दिया गया है। स्कूल के ५३ शिक्षकों तथा हिन्दी पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के लिखित निवेदन पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है। २५ फरवरी की जाँच रिपोर्ट भी अभी तक नहीं आई है।

(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

Leave a Reply