प्रज्ञा आनंद
ठाणे (महाराष्ट्र)
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काव्य संग्रह हम और तुम से….
मैं भी कोई कविता हो जाती,
तेरे मन के मुस्कुराते,रोते भावों को
छूकर गुजरती।
तेरी सोच में बहा करती,
तेरी यादों में खिला करती।
तेरे शांत हृदय के स्पंदनों के
बीच की खामोशी बनकर,
उम्रभर तेरे साथ रहती।
या बन जाती कोई गीत,
जिसे तू यूँ ही कभी उदास बैठे
अपने होंठों तक ले आता,
और मुझे अनायास ही गुनगुना जाता।
या होती कोई किताब,
जिसे तू अपने सीने पर रखकर सो जाता।
या बनकर,आईना तेरे घर का,
अपने चेहरे पर तेरा चेहरा बनाती।
मेरा तेरे पास यूँ ही आ जाना ही,
अगर गुनाह है,
तो मैं तेरी यादों में आकर,
बेगुनाह बन जाती।
मैं भी कोई कविता बन जाती…॥