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बदली हुई परिस्थिति में मातृभाषा का महत्व और अधिक-कुलपति डॉ. रेणु जैन

देअविवि में हिंदी पर वेबिनार

इन्दौर(मप्र)।

संस्कृति को उन्नत बनाने में भाषा श्रेष्ठ माध्यम है। मातृभाषा में अध्ययन-अध्यापन करने से मौलिक विचार उत्पन्न होते हैं। इससे भाषा का शब्द भण्डार समृद्ध होता है। बदली हुई परिस्थितियों में मातृभाषा का महत्व और अधिक बढ़ गया है। भाषा में आत्मनिर्भरता से तेज गति से विकास होगा।
यह बात देवी अहिल्या विश्वविद्यालय(इन्दौर) की कुलपति डाॅ.रेणु जैन ने अध्यक्षता करते हुए कही। अवसर था विश्वविद्यालय की तुलनात्मक भाषा एवं संस्कृति अध्ययनशाला द्वारा दो आयोजित वेबिनार का,जिसका विषय था,-‘हिन्दी-प्रयोग की विविध धाराएं।’ वेबिनार में वरिष्ठ प्राध्यपक प्रो.शोभा जैन ने ‘हिंदी और अभिनव भारत’ विषय पर कहा कि हिंदी भारत की अस्मिता है। संस्कृत विशाल वट वृक्ष है तो हिंदी उस वृक्ष का तना है। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा में ४० हजार से अधिक पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं। संचार क्रांति ने हिंदी को व्यापकता प्रदान की है। हमारे यहां के श्रेष्ठ नेतृत्व ने हिंदी को विश्व पटल पर स्थापित करने में योगदान दिया है। अभिनव भारत के निर्माण में हिंदी की भूमिका महत्वपूर्ण है।
पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो.अशोक कुमार ने ‘हिंदी एवं संचार तकनीक’ के प्रयोग पर कहा कि आज हमें मातृभाषा,राष्ट्रभाषा और संविधान में वर्णित राजभाषा को साथ में लेकर चलना होगा। संचार तकनीक ने सर्जनात्मक शक्ति के नये आयाम खोल दिए हैं।
शासकीय कमलाराजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय ग्वालियर की प्राध्यापक प्रो.राजरानी शर्मा ने ‘प्रयोजनमूलक हिंदी और रोजगार की संभावनाएं’ विषय पर प्रतिभागियों को ऐसे ८६ क्षेत्रों की जानकारी दी जिनमें रोजगार की बहुत गुंजाइश है। हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो.आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने ‘हिंदी और संप्रेषण कौशल’ पर विस्तार से प्रकाश डाला। आपने कहा कि,हमें बहुभाषा होने की कोशिश करना चाहिए,जिससे व्यक्तित्व में निखार आता है।
हिंदी अभियान से जुड़ी सुश्री विजयलक्ष्मी जैन ने ‘भारत को भारत कहो’ अभियान की जानकारी देते हुए हिंदी को अपनाने पर जोर दिया।
प्रारंभ में विभागाध्यक्ष डाॅ.रेखा आचार्य ने अतिथियों का स्वागत किया। संचालन एवं आभार की जिम्मेदारी डाॅ.पुष्पेंद्र दुबे ने निभाई।

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