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भारतीय नारी कल और आज

शशांक मिश्र ‘भारती’
शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश)

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हमारा देश आजाद हुए सात दशक से अधिक का समय हो चुका है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त तथा महीयसी महादेवी वर्मा प्रसाद जी की पंक्तिया `अबला जीवन यही कहानी आँचल में है दूध आँखों में पानी`,`एक नहीं दो दो मात्राएं नर से बढ़कर नारी नारी नहीं बन्दिनी हूँ`,जैसी पंक्तियों का अर्थ बदल चुका है। नारी आज अबला दमिता शोषिता लम्बे घूंघट की परिधि से तेजी से बाहर आ रही है। गाँव घरों की नारी जहां आजादी के समय प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त कर पा रही थी वह भी कम से कम इण्टर अन्यथा स्नातक कर रही है। वेशभूषा के बदलाव हों,खान-पान अथवा रहन-सहन हर बदलाव देश की राजधानी नई दिल्ली से दूरस्थ गांवों तक तेजी से दिख रहा है। क्षेत्र की बात करें तो शिक्षा,चिकित्सा,अभियांत्रिकी,पुलिस,सुरक्षाबल,खेल,राजनीति,वैज्ञानिक, शोध,लेखन,रोजगार,सेवा,नौकरी,प्रबन्धन आदि हर जगह अपना स्थान पुरूषों के समान पाती दिख रही है। यह सब उसने अपने कठिन श्रम विश्वास और साहस से पाया है।

घर-परिवार और समाज की स्थिति की बात करें तो नववधूएं अन्याय शोषण के विरुद्ध पहले से अधिक सजग हैं। अपनी जिम्मेदारी के साथ-साथ अपने अधिकारों को भी समझ रही हैं। इसीलिए पहले-सा सास-ननद उन पर उस तरह से हावी नहीं हो पा रही हैं,जैसा कि एक दशक पहले तक था। शिक्षा समाज की जागरूकता बनने वाले कानून और सोशल मीडिया ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। पहले जहां दहेज प्रथा के कारण बालविवाह और अनमेल विवाह अधिक होते थे,उनकी संख्या नाममात्र को रह गयी है। कई बार लड़कियां अपने निर्णय स्वंय करती दिख रही हैं,तो कुछ ने समाज परिवार में अपनी स्थिति ऐसी बना ली है मजबूत कर ली है कि,उनका या उनके निर्णय का कोई विरोध ही नहीं कर सकता। अपितु,अन्यों के लिए अनुकरणीय बनने की ओर अग्रसर हैं।

भारत में प्राचीनकाल से ही महिलाएं आगे रहीं हैंl वैदिक काल में अट्ठाइस मन्त्र दृष्टा महिलाओं के नाम मिलते हैं। उसके बाद सीता,सावित्री,अपाला,घोषा,गार्गी,लक्ष्मीबाई,दुर्गावती,चेनम्मा,जीजाबाई, पन्नाधाय,मीरा,इन्दिरा,गौरा,देवी आदि का नाम कौन नहीं जानता।वर्तमान स्थिति की बात करें तो लक्ष्मी शा,पीवी सिन्धु,साइना नेहवाल, मैरीकाम,चन्दा कोचर,अरुंधति भट्टाचार्य,प्रियंका चोपड़ा,लता मंगेशकर दीपा कर्माकर,किरण मजूमदार,सुषमा स्वराज,नीता अंबानी,निर्मला सीतारमण,मेनका गांधी,ममता बनर्जी,किरण बेदी,स्मृति ईरानी तथा मिताली राज जैसी वो महिलाएं हैं,जिन्होंने अपनी योग्यता से न केवल स्थान बनाया है,अपितु अनुकरणीय भी बन रही हैं। समाज-देश इनका लोहा मान रहा है।

कहा जा सकता है कि,भारतीय नारी पहले से काफी बदल चुकी है और तेजी हर क्षेत्र आगे बढ़कर अपना स्थान तो बना ही रही है,महत्व भी दर्शा रही है। इसको स्वीकारना भी चाहिए।

परिचय–शशांक मिश्र का साहित्यिक उपनाम-भारती हैl २६ जून १९७३ में मुरछा(शाहजहांपुर,उप्र)में जन्में हैंl वर्तमान तथा स्थाई पता शाहजहांपुर ही हैl उत्तरप्रदेश निवासी श्री मिश्र का कार्यक्षेत्र-प्रवक्ता(विद्यालय टनकपुर-उत्तराखण्ड)का हैl सामाजिक गतिविधि के लिए हिन्दी भाषा के प्रोत्साहन हेतु आप हर साल छात्र-छात्राओं का सम्मान करते हैं तो अनेक पुस्तकालयों को निःशुल्क पुस्तक वतर्न करने के साथ ही अनेक प्रतियोगिताएं भी कराते हैंl इनकी लेखन विधा-निबन्ध,लेख कविता,ग़ज़ल,बालगीत और क्षणिकायेंआदि है। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत एवं अंगेजी का रखते हैंl प्रकाशन में अनेक रचनाएं आपके खाते में हैं तो बाल साहित्यांक सहित कविता संकलन,पत्रिका आदि क सम्पादन भी किया है। जून १९९१ से अब तक अनवरत दैनिक-साप्ताहिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में रचना छप रही हैं। अनुवाद व प्रकाशन में उड़िया व कन्नड़ में उड़िया में २ पुस्तक है। देश-विदेश की करीब ७५ संस्था-संगठनों से आप सम्मानित किए जा चुके हैं। आपके लेखन का उद्देश्य- समाज व देश की दशा पर चिन्तन कर उसको सही दिशा देना है। प्रेरणा पुंज- नन्हें-मुन्ने बच्चे व समाज और देश की क्षुभित प्रक्रियाएं हैं। इनकी रुचि- पर्यावरण व बालकों में सृजन प्रतिभा का विकास करने में है।

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