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समाज को सकारात्मक परिवर्तन हेतु प्रेरित करेगी धनुष उठाओ हे अवधेश

अवधेश कुमार ‘अवध’
मेघालय
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संत कबीर की उक्ति दु:ख में सुमिरन सब करै..." आज भी प्रयोजन युक्त है। दुखिया है कौन! कबीर बाबा बताते हैं कि,…दुखिया दास कबीर है…।अर्थात् जो समाज के बारे में सोचेगा,वह सामाजिक अवमूल्यन देखकर दुखी अवश्य होगा और एक सामाजिक प्राणी के नाते मनुष्य होने की यह निर्विवाद शर्त भी है। ऐसी विकट परिस्थिति में हर पुरुष पुरुषोत्तम को याद करता है...आह्वान करता है और उनके द्वारा पुनर्स्थापना की अपेक्षा भी। भगवान श्रीराम सर्वशक्तिमान होते हुए भी पुरुषोत्तम हैं,इसलिए हर सज्जन एवं कर्मशील मनुष्य उनकी ओर उन्मुख होता हैl हर रिश्ते के मानक पर खरा उतरने वाले दशरथ नन्दन अवधेश करोड़ों लोगों के नाथ हैं,सहायक हैं,आस हैं। आदिकवि वाल्मीकि, भक्तकवि तुलसीदास,आचार्य केशव दास, कृतवास,कंबन और समीक्षक सहित सैकड़ों लोगों ने श्रीराम कथा को अपने मतानुसार लेखनी से गढ़ा। इसी अंतहीन श्रृंखला की एक कड़ी बनकर श्रीराम की ननिहाल से भक्तकवि जगत प्रकाश शर्माजगतनेधनुष उठाओ हे अवधेशकी आर्त्त पुकार के साथ काव्यात्मक अलख जगाया है। जगत प्रकाश शर्मा उस सनातनी परम्परा के पोषक एवं वाहक हैं,जहाँ सब कुछ राममय है। इनके २० वर्ष की लम्बी अवधि का आश्चर्यजनक सुखद परिणाम १०८ भागों में विरचितधनुष उठाओ हे अवधेशहै। इसके वाचन से पिता के हृदय में प्रस्फुटित संतुष्टि ही जगत के लिए अनमोल पारितोषिक है। कृतिकार इसको आह्वान कविता का नाम देता है। पद्मश्री महेश शर्मा आशीष देते हुए कहते हैं कि इसमें अवधेश रूप अवतार की प्रतीक्षा करने के स्थान पर सजग नागरिकों को चैतन्य रूप से पुकारा,और ललकारा भी गया है। शास्त्र और शस्त्र दोनों का एकसाथ होना आवश्यक है। शास्त्र से शस्त्र की पात्रता आती है और शस्त्र से शास्त्र सुरक्षित रहता है। जब भी शास्त्र और शस्त्र में दूरी बढ़ायी गई,कभी समाज लाचार हुआ तो कभी समाज में अत्याचार हुआ। धर्ममूर्ति अवधेश श्रीराम और धनुष का अटूट सम्बंध रहा है। आसुरी वृत्तियों के संहार का असल साक्षी धनुष ही रहा है। यही कारण है कि समाज में धर्म की उन्नति हेतु कवि बारम्बार अवधेश से धनुष उठाने हेतु अनुनय विनय करता है। प्रमुख पंक्तियों द्वारा कवि का भाव समझा जा सकता है और साथ ही यह भी कि कवि श्रीअवधेश से धनुष उठाने की गुहार क्यों लगाता है! कुतर्क करने वाले हठी के सम्मुख मौन हो जाना ही सर्वाधिक सफल निदान है। इसी प्रकार लोभ के समक्ष सदैव तृप्ति को हारना पड़ता है। इसके लिए प्रयुक्त छंद देख सकते हैं- हठ के सम्मुख मौन सुनीति,
लोभ से तृप्ति कभी न जीती। सुरसा मुँह न केवल राम कथा तक सीमित है,बल्कि एक लोकप्रिय मुहावरा भी बन चुका है। यहऊँट के मुँह में जीरासे भी अधिक अंतर को प्रकट करता है। कवि ने समाज की विपत्ति को सुरसा-मुख के रूप में देखा है- सुरसा मुख खुलता ही जाए,
कब तक हनुमत देह बढ़ाएँ!
नहीं सूक्ष्मता में अब तृप्ति,
सुरसा बनी समाज विपत्ति। चिकित्सक को धरती का भगवान कहा जाता है और कहना भी चाहिए। आज के कोरोना काल में इनकी भूमिका और भी पूज्य हो गई है। इसके बावजूद भी कुछ चिकित्सक श्वेत पोश मात्र बनकर रह गए हैं। किसी भी जघन्य अपराधी से भी बदतर हो गए हैं। इस संदर्भ में कवि कहता है कि- कहते थे देकर सम्मान,
जिन्हें धरा का हम भगवान।
‘जगत’ देखकर रहता दंग,
बेच रहे वह मानव अंग। रामायण में हनुमान भी भूमिका अवर्णनीय है,परिभाषा की सीमा से बाहर है,अशेष है। समाज को जाग्रत करने के लिए पुन: हनुमान जी को बुलाना होगा- घर-घर अलख जगाने होंगे,
हनुमान कुछ लाने होंगे। किसी भी युग में राष्ट्र प्रेम सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। मातृभूमि को पूजनीया माता का दर्जा प्राप्त है और जन जागरण ही इसका उपचार है। इसके द्वारा ही इस भाव को व्यापक और हस्तान्तरित किया जा सकता है। कवि का आह्वान देखें- रामराज्य के सब आयाम,
जाग्रत पुन: करे आवाम।
ऐसी जनमत की गति हो प्रभु,
सबसे ऊपर रहे स्वदेश।
धनुष उठाओ हे अवधेश श्रीराम का चरित्र स्वयं में सर्वोपरि है और इस महान चरित्र को लिखने-पढ़ने वाला न्यूनाधिक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। आज के दौर में श्रीराम का चरित्र और भी प्रासंगिक हो जाता है। कविजगत` की राममयी यह कृति निश्चय ही समाज को सकारात्मक परिवर्तन हेतु प्रेरित करेगी। हमारी शुभकामनाएँ।

परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी (असम)में हैं। जन्मतिथि पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर है। आपके आदर्श -संत कबीर,दिनकर व निराला हैं। स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र),बी. एड.,बी.टेक (सिविल),पत्रकारिता व विद्युत में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त श्री शाह का मेघालय में व्यवसाय (सिविल अभियंता)है। रचनात्मकता की दृष्टि से ऑल इंडिया रेडियो पर काव्य पाठ व परिचर्चा का प्रसारण,दूरदर्शन वाराणसी पर काव्य पाठ,दूरदर्शन गुवाहाटी पर साक्षात्कार-काव्यपाठ आपके खाते में उपलब्धि है। आप कई साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य,प्रभारी और अध्यक्ष के साथ ही सामाजिक मीडिया में समूहों के संचालक भी हैं। संपादन में साहित्य धरोहर,सावन के झूले एवं कुंज निनाद आदि में आपका योगदान है। आपने समीक्षा(श्रद्धार्घ,अमर्त्य,दीपिका एक कशिश आदि) की है तो साक्षात्कार( श्रीमती वाणी बरठाकुर ‘विभा’ एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा)भी दिए हैं। शोध परक लेख लिखे हैं तो साझा संग्रह(कवियों की मधुशाला,नूर ए ग़ज़ल,सखी साहित्य आदि) भी आए हैं। अभी एक संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखनी के लिए आपको विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में विविध पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन जारी है। अवधेश जी की सृजन विधा-गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधाएं हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जनमानस में अनुराग व सम्मान जगाना तथा पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जनभाषा बनाना है। 

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