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जल-जीवन:जग-जीवन

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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ज से जल जीवन स्पर्धा विशेष…

जीकर जल इस जग-जीवन में,
जीवन की ज्योत जलाता है।
हरी-हरी हरियाली हरखे,
मन हरिया हर्षाता है।
झर-झर कल-कल नदियां बहकर,
सागर बनकर इठलाए।
सूरज से गर्मी को पाकर,
बादल बनकर सरसाए।
अपनी गरिमा आप बना कर,
बूंद-बूंद गिर जाता है।
जी कर जल इस जग-जीवन में,
जीवन की ज्योत जलाता है।
हरी-हरी हरियाली हरखे,
मन हरिया हर्षाता है…॥

थल-वायु के कण-कण में,
छुप रहता आत्मा बनकर।
रक्त धमनियों में ज्यूँ बहता,
धरती के रग-रग बहकर।
शीतलता और नमी संजोकर,
स्वर्ग धरती को बनाता है।
जी कर जल इस जग-जीवन में,
जीवन की ज्योत जलाता है।
हरी-हरी हरियाली हरखे,
मन हरिया हर्षाता है…॥

धन-कुबेर से बढ़कर है जल,
कीमत इसकी पहचानो।
जग-जीवन में अमृतरूपी,
प्राण-रतन इसको मानो।
संसाधन प्राणी का बन यह,
आप अनमोल बन जाता है।
जी कर जल इस जग-जीवन में,
जीवन की ज्योत जलाता है।
हरी-हरी हरियाली हरखे,
मन हरिया हर्षाता है…॥

कभी रूद्र के रूप में तांडव,
कभी नदियों की निर्मल धार।
कभी हिमालय उजल सौंदर्य,
नील कभी सागर अपार।
रेगिस्तान भी इसके दम पर,
पल में दरिया लहराता है।
जी कर जल इस जग-जीवन में,
जीवन की ज्योत जलाता है।
हरी-हरी हरियाली हरखे,
मन हरिया हर्षाता है…॥

बड़ी-बड़ी शैलें चट्टानें,
वेग को इसके सह ना सके।
रूप बदलता ‘कण से मण’ का,
‘अजस्र’ भी कुछ कह ना सके।
हिम-वाष्प में रूप बदलकर ,
असीम ऊर्जा पनपाता है।
जी कर जल इस जग-जीवन में,
जीवन की ज्योत जलाता है।
हरी-हरी हरियाली हरखे,
मन हरिया हर्षाता है…॥

‘बिन जल के सब सूना’ जग में,
सब खुशियाँ नीरस समान।
बीज न खुलता,पुष्प न खिलता,
सुलग के जलता सकल जहान।
खेतों से माटी में मिल कर,
जल ही जग हरियाता है।
जी कर जल इस जग-जीवन में,
जीवन की ज्योत जलाता है।
हरी-हरी हरियाली हरखे,
मन हरिया हर्षाता है…॥

आज प्रदूषण,चढ़ता पारा,
जल-जीवन संकट कगार।
सूखे उपवन,सड़ती नदियाँ,
धरा खो रही आज श्रृंगार।
बूँद-बूँद जल को सहेजो,
कण्ठ प्यासा चिल्लाता है।
जी कर जल इस जग-जीवन में,
जीवन की ज्योत जलाता है।
हरी-हरी हरियाली हरखे,
मन हरिया हर्षाता है…॥

तप्त तवे-सी जलती धरती,
हरित सौंदर्य को खोकर।
शिखर-हिम भी स्खलित हो गए,
दीर्घ पुरातनता धोकर।
जल बिन थल अब रेत-सा बन कर,
शुष्क अग्नि धधकाता है।
जी कर जल इस जग-जीवन में,
जीवन की ज्योत जलाता है।
हरी-हरी हरियाली हरखे,
मन हरिया हर्षाता है…॥

धरती लावा उगल रही है,
खुद गर्मी से घबरा के।
पाताल गया,पाताल से नीचे,
जल शोषण से गहरा के।
जल-थल का जो तालमेल था,
आज बिगड़ता जाता है।
जी कर जल इस जग-जीवन में,
जीवन की ज्योत जलाता है।
हरी-हरी हरियाली हरखे,
मन हरिया हर्षाता है…॥

रीतियां-नीतियां वो अपनाओ,
जल-जीवन बर्बाद न हो।
जल बिन न जल-जल मर जाए,
जीवन फिर आबाद न हो।
जल से ही कल उज्ज्वल होगा,
‘अजस्र’ यही समझाता है।
जीकर जल इस जग-जीवन में,
जीवन की ज्योत जलाता है।
हरी-हरी हरियाली हरखे,
मन हरिया हर्षाता है…॥

परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|

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