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श्री कृष्ण लीला

दीपा गुप्ता ‘दीप’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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कृष्ण जन्माष्टमी स्पर्धा विशेष……….

लीला कृष्णा जन्म की,सुन लो चित को खोल।
कृष्ण कथा अनमोल है,मानो मीठा घोल॥

मथुरा में लेकर जन्म,गोकुल पाया प्यार।
धन्य मात जसुदा हुई,धन्य हुआ संसार॥

शेषनाग छाता बने,वासुदेव के शीश।
मेघ झमाझम बरसते,भीगें ना जगदीश॥

जमुना वेग अपार कर,चरण छुए घनश्याम।
प्रिया मिलन से हो द्रवित,छाई खुशी ललाम॥

जसुदा जाई ले सुता,लिटा दिए प्रिय लाल।
लिटा लाल को चूम मुख,अश्रु ढुलक रहे गाल॥

ज्यों ही जाकर हाथ में,सुता देवकी दीन।
जागे पहरेदार सब,गहन जो निंद्रा लीन॥

कानों में स्वर सुता के,सुनते आया कंस।
सोच चूर मद में रहा,अंत होय अब वंश॥

कर में ज्यों ही ली सुता,नभ में उछली जोर।
कौंधी चपला बीच घन, उदित काल की भोर॥

मैं माया ठगिनी बड़ी,समझी तेरी चाल।
जन्म ले चुका जगत में, मूरख तेरा काल॥

उधर गोकुल सज़ा रहे,सारे नर अरु नार।
ढोलक झाँझें बाजतीं,नँद लुटा रहे हार॥

शिव शम्भू मिलने चले,धर जोगी का रूप।
आकुल दर्शन के लिए,तृष्णा जगी अनूप॥

मारे बाल्य काल में,निसचर क्रूर अपार।
प्राण तजा जब पूतना,रही ईश को मार॥

रूप सलोना श्याम सखि,तीखे नयन कटार।
पायल बजती पाँव में,सभी रहे दिल हार॥

पायल रुनझुन बाजती,ठुमक चलें श्री श्याम।
लेत बलइयाँ मात-पितु,देख रहे अविराम॥

पायल की आहट हुई,मइया टेर लगाय।
ओखल के पीछे छुपे,श्याम रहे मुस्काय॥

माखन की चोरी करी,बाँधे मइया हाथ।
मैंने नहिं माखन चखा,रेखा खींची माथ॥

माटी मुँह में डाल ली,एक दिवस की बात।
मुँह जो खोला मात ने,लखि त्रिभुवन तब मात॥

कान्हा की वंशी बजी,गोपी दौड़ी आय।
पायल बेसर बिन भगी,सुध-बुध सब बिसराय॥

ग्वाल बाल संग कृष्ण,गऊएँ चरा रहे।
बाल धूल से हैं सने,बाँसुरी बजा रहे॥

गोकुल से मथुरा गमन,किया जभी घनश्याम।
मातम-सा छाया सखी,सुख में आई घाम॥

अल्प आयु में कंस वध,कीन्हा दोऊ भ्रात।
मुक्त कराए मात पितृ,आप वीर की भाँत॥

विपद द्रोपदी पर पड़ी,जोड़े दोनों हाथ।
देख बलबती आस्था,दिया श्याम ने साथ॥

मोह दूर अर्जुन हुआ,खुले ज्ञान के नेत्र।
रूप दिखाया भव्य प्रभु,लड़ा युद्ध कुरुक्षेत्र॥

जब भक्तों की आस्था, जुड़े प्रभु के संग।
चढ़े तभी फिर प्रीत का,चटक जोगिया रंग॥

अंत भला तो सब भला,अंत भजे प्रभु नाम।
अंत कटे तो सब कटे,जीव मिले घनश्याम॥

परिचय-दीपा गुप्ता का निवास उत्तर प्रदेश के बरेली में है। साहित्यिक उपनाम-दीप है। इनकी जन्म तारीख २२ जुलाई १९६६ एवं जन्म स्थान-बरेली है। भाषा ज्ञान-हिंदी एवं अंग्रेजी का है। उत्तर प्रदेश से नाता रखने वाली दीप ने स्नातकोत्तर की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में गृहिणी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत सेवाभावी संस्था की अध्यक्ष रह चुकी हैं। आपकी लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल, लेख आदि है। प्रकाशन में ३ एकल संग्रह-बालदीप (भाग-१,२ एवं ३) आ चुके हैं तो ३ साझा संग्रह-‘रिश्तों के अंकुर’, ‘पितृ विशेषांक’ और ‘काव्य पुंज’ भी प्रकाशित है। ३ साझा संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित हो रहे हैं। ऐसे ही अनेक रचनाएं समाचार पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। आपको प्राप्त सम्मान में-साहित्य सागर,मुक्तक लोक, ‘हिंदी सेवी’ सम्मान, ‘शब्द श्री’ सम्मान, ‘साहित्य भूषण’ सहित ‘श्रेष्ठ रचनाकार’ सम्मान प्रमुख हैं। विशेष उपलब्धि में केन्द्रीय मंत्री द्वारा संग्रह को शुभकामना संदेश देना है। लेखनी का उद्देश्य-भारत के भविष्य को गढ़ने में योगदान देना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-बाबा हैं। इनकी विशेषज्ञता-बाल गीत लेखन में है।

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