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इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अशोक कुमार ने दिया हिंदी में आदेश-हिंदी भाषा को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण निर्देश

मुम्बई(महाराष्ट्र)।

यदि नाम देवनागरी में लिखे तो पढ़ने में कोई भूल नहीं होती परन्तु रोमन में लिखा हो तो पता नहीं चलता कि उच्चारण क्या करना है। इसी बात पर यह उच्च न्यायालय का फैसला है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हिंदी में आदेश देकर हिंदी भाषा को बढ़ावा देने का महत्वपूर्ण निर्देश दिया है। न्यायालय ने कहा कि माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड २०२० व भविष्य की परीक्षाओं के अंक पत्र में अंग्रेजी के साथ हिंदी देवनागरी भाषा में नाम लिखे। यह भी कहा है कि इसके लिए जरूरी होने पर नियमों में संशोधन किया जाए।
न्यायालय ने यह आदेश अंग्रेजी के नामों की स्पेलिंग दो तरीके से लिखी होने के कारण दिया है। ज्ञात हो कि उप्र बोर्ड के अंक व प्रमाण पत्रों में नाम की स्पेलिंग दुरुस्त करने के हजारों प्रकरण हर वर्ष सामने आते हैं। इसके लिए अभ्यर्थियों को धन,समय खर्च करना पड़ता है। न्यायालय ने याची के हाईस्कूल व इंटरमीडिएट के अंकपत्रों
के नाम की स्पेलिंग दुरुस्त करने का भी निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति अशोक कुमार ने वाराणसी क्षेत्रीय कार्यालय परिक्षेत्र के मनीष द्विवेदी की याचिका पर दिया है। याचिका पर राज्य सरकार के अधिवक्ता राहुल मालवीय ने सरकार का पक्ष रखा। हिंदी भाषा में सुनाए गए फैसले में कहा कि भारतीय संविधान में राजभाषा देवनागरी हिंदी में सरकारी काम-काज करने की व्यवस्था दी गई है। हिंदी को पूर्ण रूप से स्थापित होने तक १५ वर्षों तक अंग्रेजी भाषा में काम-काज की छूट दी गई थी,जिसे आज तक जारी रखा गया है। न्यायालय ने हिंदी को बढ़ावा देने के लिए राजभाषा नीति के तहत हिंदी में सरकारी काम करने पर भी बल दिया है। याची के नाम की स्पेलिंग में अंतर होने पर सुधार की मांग की गई थी,जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुम्बई)

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