डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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काव्य संग्रह हम और तुम से….

फँसी इश्क की जाल में,ओढ़ मनसि संकोच।
लुका-छिपी कर देखती,सजन मिलन मन सोच॥
लटक वेणियाँ करघनी,काजल नैन विशाल।
पीत वसन गोरा वदन,साजन मदन प्रहार॥
जुल्फें ले अंगराईयाँ,पलक चपल नित नैन।
बिम्बाधर मुस्कान प्रिय,मदन बाण हर चैन॥
रमणी धमनी बन सजन,प्रेम रक्त संचार।
मादक रति रस पान से,बना सजन रुख़्सार॥
ब्रह्मा की अनुपम सृजन,मृगनयनी मुखचन्द।
कोमल किसलय तनु प्रिया,सजन हृदय मकरन्द॥
मन मयूर नाचे प्रिया,सावन प्रीत बहार।
बनी चकोरी साजना,सज सोलह श्रृंगार॥
धीमा-धीमा बरसता,गन्धमाद घनश्याम।
भींगी-भींगी कामिनी,खोयी प्रिय अभिराम॥
लखि पुलकित वन माधवी,सुरभित पुष्प पराग।
कामदेव प्रिय कान्त को,रति मानस अनुराग॥
लता लवंगी विहँसती,देख भँवर गुञ्जार।
पंचम स्वर पिक लहरियाँ,प्रिया मुग्ध अभिसार॥
चन्द्रहास सुष्मित वदन,कोमल गाल रसाल।
वक्षस्थल उन्नत शिखर,प्रिय वियोग बदहाल॥
मुग्धा सजनी इश्क में,घायल है मनमीत।
आँखमिचौनी कर रहा,बना इश्क नवनीत॥
उबल रहा रतिराग से,फँसा इश्क रसराज।
मन विनोद सजनी हृदय,करे प्रीति आगाज॥
लखि निकुंज प्रिय विरह को,दे प्रियतम उपराग।
अनाघ्रात पा रूपिणी,क्यों जलते हो आग॥
इश्क विश्क में फँस युगल,मिलने को आतुर।
वफा गज़ब की दास्तां,कशिश दिली दस्तूर॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥