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मकर संक्रांति अलबेली

आशीष प्रेम ‘शंकर’
मधुबनी(बिहार)
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मकर सक्रांति स्पर्द्धा विशेष….

मकर की मस्त नवेला,
आई है अजगुत बेला।
पवन सिहकी मन बहका,
आडम्बर लगा अकेला।

पारस मनोरम इंगित हैं,
मकर की कथा कथित है।
खिच्चड़़,संग तिल की लाई,
तिल-तिल दिनकर स्थित हैं।

अम्बर में भानु छिपे हैं,
पर रौशन जहाँ किए हैं।
हैं एक झलक दिखलाई,
सभी बंद पंख पनपे हैं।

लाई है बसंत बहाई,
अद्भुत अवसर विस्माई।
जो कुसुम लगे तरूवर में,
महकी-चहकी फुलवारी।

जोड़ों ने ली अंगड़ाई,
खग मृग प्रमोद बरसाई।
भंवरे भवरी बगिया में,
अब प्रेम हुई भरपाई।

साधो की साध्य अर्जित है,
ऊधो संग कृष्ण सहित है।
कमलनयन मनभावन,
सब देव दलन हर्षित हैll

परिचय-आशीष कुमार पाण्डेय का साहित्यिक उपनाम ‘आशीष प्रेम शंकर’ है। यह पण्डौल(मधुबनी,बिहार)में १९९८ में २२ फरवरी को जन्में हैं,तथा वर्तमान और स्थाई निवास पण्डौल ही है। इनको हिन्दी, मैथिली और उर्दू भाषा का ज्ञान है। बिहार से रिश्ता रखने वाले आशीष पाण्डेय ने बी.-एससी. की शिक्षा हासिल की है। फिलहाल कार्यक्षेत्र-पढ़ाई है। आप सामाजिक गतिविधि में सक्रिय हैं। लेखन विधा-काव्य है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में केसरी सिंह बारहठ सम्मान,साहित्य साधक सम्मान,मीन साहित्यिक सम्मान और मिथिलाक्षर प्रवीण सम्मान हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जागरूक होना और लोगों को भी करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-रामधारी सिंह ‘दिनकर’ एवं प्रेरणापुंज-पूर्वज विद्यापति हैं। इनकी विशेषज्ञता-संगीत एवं रचनात्मकता है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी भाषा है,और इसके लिए हमारे पूर्वजों ने क्या कुछ नहीं किया है,लेकिन वर्तमान में इसकी स्थिति खराब होती जा रही है। लोग इसे प्रयोग करने में स्वयं को अपमानित अनुभव करते हैं,पर हमें इसके प्रति फिर से और प्रेम जगाना है,क्योंकि ये हमारी सांस्कृतिक विरासत है। इसे इतना तुच्छ न समझा जाए।

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