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मेरी हमसफ़र ‘बैशाखी’

शिवेन्द्र मिश्र ‘शिव’
लखीमपुर खीरी(उप्र)
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सच पूछिए तो मैं…
कभी अकेला नहीं रहता,
क्योंकि मैं,जब भी…
कहीं भी जाता हूँ…मेरा हमसफर…
सदैव मेरे साथ रहता है…।
यह सच है..मैं उसके बिना,
एक कदम भी नहीं चल पाता…।
आज के समय में जब…
किसी के पास किसी के लिए,
एक क्षण का भी समय नहीं है,
फिर भी वह मेरा साथ…
कई बरसों से निभा रही है,
और निभाती रहेगी…।
वही मेरा असली सहारा है,
उसी ने मुझे मेरे पैरों पर,
खड़ा होना सिखाया है…
इतना ही नहीं…वही है जो,
मुझे दुनिया की सैर करवाती है…।
कभी मुझसे कुछ नहीं कहती…
कोई न गिला-न शिकवा…वरना,
आज-कल तो लोग…
एक गिलास पानी का भी अहसान,
जताने लग जाते हैं..।
कभी-कभी मैं सोचता हूँ…
उसके आने से ही हमें गति मिली है…
सम्मान मिला है..और बहुत कुछ,
जो शायद मैं बिना उसकी मदद से,
हासिल नहीं कर सकता था…।
मुझे कहने में कतई संकोच नहीं है कि,
मेरी ‘बैसाखी’ ही मेरी सच्ची हमसफर है॥

परिचय- शिवेन्द्र मिश्र का साहित्यिक उपनाम ‘शिव’ है। १० अप्रैल १९८९ को सीतापुर(उप्र)में जन्मे शिवेन्द्र मिश्र का स्थाई व वर्तमान बसेरा मैगलगंज (खीरी,उप्र)में है। इन्हें हिन्दी व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। जिला-लखीमपुर खीरी निवासी शिवेन्द्र मिश्र ने परास्नातक (हिन्दी व अंग्रेजी साहित्य) तथा शिक्षा निष्णात् (एम.एड.)की पढ़ाई की है,इसलिए कार्यक्षेत्र-अध्यापक(निजी विद्यालय)का है। आपकी लेखन विधा-मुक्तक,दोहा व कुंडलिया है। इनकी रचनाएँ ५ सांझा संकलन(काव्य दर्पण,ज्ञान का प्रतीक व नई काव्यधारा आदि) में प्रकाशित हुई है। इसी तरह दैनिक समाचार पत्र व विभिन्न पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार देखें तो विशिष्ट रचना सम्मान,श्रेष्ठ दोहाकार सम्मान विशेष रुप से मिले हैं। श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा की सेवा करना है। आप पसंदीदा हिन्दी लेखक कुंडलियाकार श्री ठकुरैला व कुमार विश्वास को मानते हैं,जबकि कई श्रेष्ठ रचनाकारों को पढ़ कर सीखने का प्रयास करते हैं। विशेषज्ञता-दोहा और कुंडलिया केA अल्प ज्ञान की है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार (दोहा)-
‘हिन्दी मानस में बसी,हिन्दी से ही मान।
हिन्दी भाषा प्रेम की,हिन्दी से पहचान॥’

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