श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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देख कर गरीबी तुम किसी का नहीं उपहास करना,
हम सब भारत माँ के पुत्र हैं,धरती पर ही है रहना।
सबका मालिक एक है,एक सबका पालनहारा है,
जगत पिता सबका एक है,तू क्यों मन में हारा है।
वह पीड़ित था ‘कोरोना’ बीमारी से,हार गया बेचारा,
तड़प के प्राण छूटे,जब नहीं मिला दवा का सहारा।
किसी का भी उपहास ना कर,जो बनता है सेवा कर,
छा गया है हर जगह कोरोना,क्या बड़ा-क्या छोटा घर।
जिस माँ का बेटा चला गया,गया है बहना का भाई,
अब वह जीवन कैसे काटेगी,जिसकी थी वह लुगाई।
कल्याणी को देख के कभी भी,उसका उपहास ना कर,
एक दिन अंतिम चिता में सभी जलेंगे,विश्वास कर।
मानव तन पाया है सब,सभी अपना समाज बनाया है,
सेवा का भाव भूलकर,कहो मन कहाँ भरमाया है।
ऊँच-नीच का भ्रम बना के,नहीं किसी का उपहास कर,
श्रमदान कर,श्रमदान कर,सब मिल के यज्ञ महान कर।
हे चार दिनों का मुसाफिर,यदि तुझको खाना है मेवा,
पिता की आज्ञा पालन कर,दीन-दुखियों की कर सेवा।
एक दिन ऐसा आएगा,नहीं रहेगा कुछ नामो-निशान,
ये जीवन माया का मेला है,सत्य को तू पहचान।
अन्तिम गति का बस यही नारा है,राम नाम सत्य है,
कंचन-सी बनी काया,झूठी माया,यह सभी असत्य है॥
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।