रोहित मिश्र
प्रयागराज(उत्तरप्रदेश)
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हमारा जन्म इस जगत में एक विशेष प्रयोजन के तहत हुआ है। इस जगत में हम अपने निर्धारित कार्य को संपादित करने के लिए आते हैं। ये दुनिया एक रंगमंच है,और हम इस रंगमंच के सिर्फ एक पात्र है। अर्थात हमारा जन्म किसी न किसी कार्य को संपादित करने के लिए हुआ है,और हमें अपने कार्य के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए।
तभी किसी ने कहा है-‘काल करे सो आज कर, आज करे सो अब,पल में प्रलय होगी,बहुरी चरोगे कब’ अर्थात हमें अपने कार्यों को टालने से बचना चाहिए और अपने कार्यों के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए। इस बात को एक उदाहरण के जरिए भली-भांति समझ सकते हैं…किसी परिक्षार्थी की परीक्षा को छः महीने बाकी हो और उसमें ये भावना हो कि अभी तो परीक्षा को छः महीने हैं और तैयारी आराम से हो जाएगी और यही सोचते-सोचते २ माह बीत जाते हैं और तभी कुछ रिश्तेदार उस विद्यार्थी के घर १०-१५ दिन के लिए आ जाते हैं। तब वह विद्यार्थी अपने रिश्तेदारों के जाने के बाद ही पढ़ाई की योजना बनाने की सोचता है। फिर त्यौहार आ जाते हैं। अब वह त्यौहार बीतने का इंतजार करने लगता है। त्यौहार के बाद रिश्तेदारी में शादी पड़ जाती है। अब वह शादी से निपटने पर ही पढ़ाई की योजना बनाने की सोचता है। इस प्रकार कुछ न कुछ कार्य पड़ने पर वह अपनी परीक्षा की तैयारी को टालता रहता है। जब परीक्षा के १५ दिन ही शेष रह जाते हैं,तो वह परीक्षा किसी तरह उत्तीर्ण करने के लिए इधर-उधर भागता है,और परीक्षा की तैयारी ठीक से न कर पाने के कारण परीक्षा में वह अनुचित साधनों का प्रयोग करने से भी नहीं हिचकता है।
अर्थात कहने का आश्य यह है कि,हमें अपने कार्यों को कल के ऊपर नहीं छोड़ना चाहिए,क्योंकि कल कभी नहीं आता है। जिसे कार्य टालना होगा,उसके पास हजारों बहाने तैयार रहते हैं,और जिसे कार्य करना होता है,वह बहानों में भी अवसर ढूंढ लेता है।
आशय यह है कि,यह जीवन बहुत छोटा और अनमोल है। जहाँ हमें युवावस्था में लगता है जीवन बहुत बड़ा है,व प्रौढ़ावस्था में लगता है कि अब हमारे जीवन के गिने-चुने दिन हैं। यानि समय का चक्र चलता रहता है,ये हमारे लिए नहीं रुकता है, बल्कि हमें इस समय के चक्र के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना होगा और इस सुन्दर संसार को कुछ अच्छा देकर जाना होगा,ताकि हमारे जाने के बाद भी हमारे नाम और काम इस दुनिया में जीवित रहें।