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‘कें चु आ’ वास्तव में बिना रीढ़-दांत का शेर !

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा केन्द्रीय चुनाव आयोग यानी ‘के.चु.आ.’ को फटकार के साथ कहा गया कि,चुनाव के कारण होने वाली मौतों के लिए चुनाव आयोग जिम्मेदार है। इस कारण उनके ऊपर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए।
अब सवाल क़ि,जो आयोग दूसरों पर आश्रित है,यानी परजीवी है,उसके ऊपर कार्यवाही करने से क्या होगा। बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता। गंगोत्री पर कार्यवाही होना चाहिए। वास्तव में इस देश को इस स्थिति में लाने की जिम्मेदारी सत्ता के पिपासुओं की हैं।
कभी-कभी शब्दों के मायने खुद अर्थ बता देते हैं,जैसे केंद्रीय चुनाव आयोग यानी ‘कें चु आ’, जो बिना रीढ़ का कृमि होता है। यह गीली मिटटी में रेंगता हैं,भाग नहीं सकता। इसका शरीर कई खण्डों में बंटा रहता है और तीन चौथाई भाग शरीर की दीवार से अंदर गड़ा रहता है,और थोड़ा-सा हिस्सा बाहर होता है। ये जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं, और उपज भी। उपरोक्त विवरण से यह प्रतीत होता है कि,हमारे चुनाव आयोग की दशा यही है। पहली बात वह बिना रीढ़ का और दंतहीन शेर जैसा है, गुर्राता है पर काट नहीं सकता। या दूसरे शब्दों में सर्कस का शेर है,जो रिंग मास्टर के कोड़े या इशारे पर चलता है। उसको अपनी शक्ति का अहसास नहीं है,कारण वह पालतू बन जाता है या स्वामी भक्त श्वान।
वह इतना वफादार होता है कि, मालिक के टुकड़ों पर पलता है और मालिक के इशारे पर ही नाचता है,अपने मन का उपयोग नहीं कर सकता है। यह स्थिति केंचुआ की ही नहीं,जितनी भी सर्वोच्च संस्थाएं हैं,वे सब रिंग मास्टर के इशारे पर नाच रही हैं। इस समय रिंग मास्टर बहुत शक्तिशाली है, जिसने अपने प्रभाव का उपयोग कर सबको परजीवी बना लिया है। आज उसके विरोध में किसी की ताकत नहीं हैं। इससे यह फायदा हुआ है कि वह जितने अच्छे काम करता है,उनका श्रेय खुद ले लेता है और यदि गलत हुआ तो उनकी गर्दन मरोड़ देता है,कारण वे सब संस्थाएं उसकी पालतू जैसी हैं।
आज देश में बहुत विचित्र स्थिति निर्मित हो गई है। जो अस्थायी सेवक यानी नेता,मंत्री, प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्री हैं,उनसे स्थायी सेवक इतना डरते हैं,जैसे वे स्थायी सेवक उनके गुलाम हों। अरे वे पांच वर्ष के लिए आते हैं और मौज-मस्ती करके चले जाते हैं।
इसी केंचुआ में शेषन जैसा शेर रहा,जिसने अपनी शक्ति और उनके क्रियान्वयन को करके दिखाया। आज सब संस्था प्रमुख रिंग मास्टर के सामने केंचुआ बने हैं। इतनी कायरता या पराधीनता तो आपातकाल में नहीं लगी थी।
वास्तव में केंचुआ बिना रीढ़ का अवश्य होता है,पर उसके पास चलने-फिरने की छूट रहती है,किन्तु केंद्रीय चुनाव आयोग वर्तमान में अपने मष्तिष्क का भी उपयोग नहीं कर सकता है,वह परजीवी हो चुका है। वह अदृश्य शक्ति द्वारा संचालित है और जितना काम कहते हैं,उतना करता है। यानी विवेक हीन हो चुका है।
ये सब देश की अवनति की निशानी है। एक बात ध्यान रखनी होगी कि सबके दिन एक समान नहीं होते। इस समय रिंग मास्टर का पुण्य का उदय है,तो कोड़ा चल रहा है,अन्यथा सुबह जिनका राजतिलक होने वाला था,उन्हें वनवास जाना पड़ा। इसीलिए जब सत्ता मिली है,तो उसका दुरूपयोग नहीं करना चाहिए,अन्यथा जाने के बाद विशेषण का उपयोग करते हैं।
यह बिलकुल सत्य है कि,राजनीतिक दलों ने चुनावों में सत्ता पाने के लिए हजारों-हजारों को मौत में मुँह में ठेला और लाखों को संक्रमित किया। सत्ता का यह नशा उतारना होगा जनता को,नहीं तो शासक निरकुंश होकर और अत्याचार करेगा। धिक्कार है ऐसे राजपाट का,जो जनता की लाशों पर बैठकर जीत का जश्न मनाएं।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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