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माँ सरस्वती-अज्ञान की नाशक

गोपाल मोहन मिश्र
दरभंगा (बिहार)
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वसंत पंचमी स्पर्धा विशेष …..

हिन्दू धर्म में अनेक देवी-देवता अपने भक्तों को उनकी इच्छानुसार भक्ति एवं उसका फल प्रदान करते हैं। धन-देवी माँ लक्ष्मी की आराधना करने पर धन की प्राप्ति होती है, तो शक्ति की आराधना करने पर शक्ति की प्राप्ति होती है। उसी प्रकार ज्ञान-देवी माँ सरस्वती की आराधना करने पर विद्या,ज्ञान, विवेक,बुद्धि की प्राप्ति होती है। माँ सरस्वती अज्ञान के अन्धकार से ज्ञान के प्रकाश तक अपने आराधकों को ले जाकर उन्हें बुद्धि ही नहीं,धन तथा शक्ति की भी प्राप्ति करा देती हैं।
माँ सरस्वती सफेद कमलों का आसन धारण कर ज्ञान के शान्त सरोवर में शुभ्र वस्त्रों से सुसज्जित होकर हाथों में वीणा,पुस्तक एवं माला धारण किए हुए अवतरित हुई हैं। उनका यह रूप संगीत,ज्ञान, विवेक प्रदान कर माया-मोह के अन्धकार से भी सभी को निकालने में समर्थ है। देवी भागवत के अनुसार उनकी उत्पत्ति भगवान् श्रीकृष्णजी की जिह्वा के अग्र भाग से हुई है।
गंगाजी के शाप से वे नदी के रूप में अवतरित होती हैं। ब्रह्माजी इन्हें पुष्कर तीर्थ में सरस्वती सरोवर के रूप में स्थापित करते हैं। यह ब्रह्माजी के आदेश से वाल्मिकि मुनि के मुख से ४ चरणों के श्लोक के रूप में प्रकट होती है-
‘या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा माँ पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।’
वे मूलत: भगवान् नारायण की पत्नी तथा ब्राह्मी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह तीनों लोक-स्वर्ग में भारती के रूप में,पृथ्वी में सरस्वती के रूप में और अन्तरिक्ष में वाग्देवी के रूप में स्थान पाती हैं। सरस्वती की कृपादृष्टि प्राप्त करने पर सुर तथा स्वर की साधना प्राप्त होती है। लेखक और कवियों तथा कलाकारों को नव रचना करने की प्रेरणा मिलती है। यदि ये प्रसन्न हों,तो मूर्ख भी ज्ञानी बन जाता है। जैसे कवि कालिदास माँ सरस्वती की कृपा पाकर संस्कृत के महाकवि के रूप में प्रसिद्ध हुए। ऐसा कहा जाता है कि यदि सरस्वती जिह्वा पर आकर उल्टी हों,तो व्यक्ति की बुद्धि दिग्भ्रमित हो जाती है और उससे विपरीत कार्य करवाती है। कैकेयी की दासी मंथरा की जिह्वा पर विराजमान होते ही राम को वनवास देने की दुर्बुद्धि उन्हें सूझी थी।
ज्ञान का वरदान देने वाली माता सरस्वती समस्त प्रकार के अज्ञान,अन्धकार का नाश कर देती हैं। उनका बल पाकर उनकी आराधना करने वाले,न केवल बुद्धि प्राप्त करते हैं,बल्कि बुद्धि का वरदान पाकर अपने समस्त कार्य तथा अपनी इच्छाओं की भी पूर्ति कर लेते हैं। वह तो धन,यश,ज्ञान सब-कुछ प्रदान करती हैं।

परिचय–गोपाल मोहन मिश्र की जन्म तारीख २८ जुलाई १९५५ व जन्म स्थान मुजफ्फरपुर (बिहार)है। वर्तमान में आप लहेरिया सराय (दरभंगा,बिहार)में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-ग्राम सोती सलेमपुर(जिला समस्तीपुर-बिहार)है। हिंदी,मैथिली तथा अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले बिहारवासी श्री मिश्र की पूर्ण शिक्षा स्नातकोत्तर है। कार्यक्षेत्र में सेवानिवृत्त(बैंक प्रबंधक)हैं। आपकी लेखन विधा-कहानी, लघुकथा,लेख एवं कविता है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी भावनाएँ व्यक्त करने वाले श्री मिश्र की लेखनी का उद्देश्य-साहित्य सेवा है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक- फणीश्वरनाथ ‘रेणु’,रामधारी सिंह ‘दिनकर’, गोपाल दास ‘नीरज’, हरिवंश राय बच्चन एवं प्रेरणापुंज-फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“भारत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में बहुमुखी विकास और दुनियाभर में पहचान बना रहा है I हिंदी,हिंदू,हिंदुस्तान की प्रबल धारा बह रही हैI”

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