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वर दे,वीणावादिनि वर दे

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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वसंत पंचमी स्पर्धा विशेष …..

सभी जानते हैं कि पतझड़ के बाद ऋतुराज वसंत का आगमन होता है,जिसे हम ऋतुराज,कामसखा, पिकानन्द,पुष्पमास,पुष्प समय,मधुमाधव आदि नामों से भी पुकारते हैं। इस ऋतु में वन-उपवन, बाग-बगीचों में लताएं,नए-नए लाल-हरे कोमल पत्तों से ही नहीं,बल्कि नाना प्रकार के पुष्पों से भी भर जाती हैं। इस प्रकार मौसम और प्रकृति में जो मनोहारी बदलाव होते हैं उससे प्रकृति का कण-कण खिल उठता है,यानि मानवों के साथ साथ पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं।
पतझड़ पश्चात माघ शुक्ल पंचमी को वसंत पंचमी कहिए,श्रीपंचमी या ज्ञान पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को ज्ञान और कला की देवी माँ सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। इसलिए,इस दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा बड़े ही उल्लास व उमंग के साथ की जाती है। यह त्यौहार वैसे तो पूरे भारत में,फिर भी खासकर पूर्वी भारत,पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बहुत ही बड़े रूप में बड़े उल्लास से मनाया जाता है। इस दिन हर क्षेत्र के शिक्षाविद यानि कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार माँ सरस्वती की वंदना के साथ साथ अपने अपने उपकरणों सरस्वती स्वरूपा जैसे कलम,कापी,पुस्तक,वाद्य यंत्रों की पूजा-वंदना से ही दिन की शुरूआत करते हैं और माँ शारदे से अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। ज्यादातर लोग पूजा-वंदना के बाद ही अन्न ग्रहण करते हैं।
सनातन धर्म में बसंत पंचमी के दिन को स्वयं सिद्ध मुहूर्त वाला दिन माना जाता है,जिसका मतलब होता है उस दिन प्रारंभ होने वाला हर कार्य सफलता को प्राप्त करेगा ही। इसीलिए इस दिन दूरगामी योजनाओं की शुरुआत कहिए या शिशुओं को विद्यार्जन के लिए पहली बार पाटी(स्लेट) कहिए या पोथी,की पूजा-अर्चना करवा कर सबसे पहले अक्षर ज्ञान के साथ लिखना सिखाया जाता है और पाठशाला में दाखिला भी कराया जाता है।
बसन्त पंचमी वाले दिन विद्यालयों में शिक्षक हों या विद्यार्थी,सभी पूरी उमंग व उल्लास के साथ विद्या की देवी माता सरस्वती की प्रतिमा को मंच पर स्थापित कर विधि-विधान के साथ सामूहिक पूजा-अर्चना करते हैं। इसके उपरांत आधुनिक युग के सर्वाधिक क्रान्तिकारी,प्रगतिवादी,चेतना के ओजस्वी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ के चित्र पर माल्यार्पण वाले कार्यक्रम पश्चात सभी उनकी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना ‘वर दे,वीणावादिनि वर दे! प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव भारत में भर दे!!’ की समवेत स्वरों में प्रार्थना करते हैं।
इस दिन प्रायः सभी विद्यालयों में वार्षिकोत्सव अन्यथा माँ शारदा के भक्ति गीतों का आयोजन होता है,जिसमें मंच पर सुंदर-सी सजी सरस्वती देवी की प्रतिमा के सामने,दर्शकों की भारी भीड़ के आगे विद्यार्थियों के साथ शिक्षकगण भी अपना अपना व्याख्यानख,गीत बड़े ही जोश,उमंग व उल्लास के साथ प्रस्तुत करते हैं। विजेताओं को प्रमाण-पत्र व ईनाम भी दिया जाता है।
इसी प्रकार शहरों में भी कहीं प्रांगण में तो कहीं पार्क में सरस्वती माता की मूर्ति स्थापित कर सार्वजनिक पूजा के आयोजन के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पूरे उल्लास एवं धूमधाम से मनाने के पश्चात सामूहिक भोज सानन्द किया जाता है।
इस तरह यह स्पष्ट है कि,बसन्त पंचमी वाला समय जहाँ एक तरफ ज्ञानवान बनने के लिए संकल्पित होने का अवसर है,वहीं उमंग व उल्लास के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपना हुनर प्रदर्शित करने का अवसर भी है।

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