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माँ…तुमने दीप जलाया है

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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मेरे अँधियारे पथ पर माँ,
तुमने दीप जलाया है।
गुणी नहीं हूँ फिर भी माते,
तुमने कंठ लगाया है॥

ठोकर पथ पर लगी,पकड़कर,
तुमने सदा उठाया माँ।
निद्रा भगा नयन से मेरे,
मुझको सदा जगाया मांँ॥

शूल छाँट कर पथ से मेरे,
तुमने सदा सजाया है।
मेरे अँधियारे पथ पर माँ,
तुमने दीप जलाया है॥

तीर बहुत फेंके रिपुओं ने,
तुमने फूल किये हैं माँ।
उनके कलुषित भाव सदा ही,
तुमने धूल किये हैं माँ॥

अपने उर के पूर्ण गेह में,
मैंने तुम्हें बसाया है।
मेरे अँधियारे पथ पर माँ,
तुमने दीप जलाया है॥

आखर,भाव सभी तेरे माँ,
तेरे ही तो गीत सभी।
तुमको ही अर्पण करता हूँ,
अपनी हार व जीत सभी॥

मेरे जीवन में तुमने ही,
सुख का बाग लगाया है।
मेरे अँधियारे पथ पर माँ,
तुमने दीप जलाया है॥

तू कोमल उर की है माता,
तू ममता की मूरत है।
तुमने उतना दिया सदा ही,
जितनी मुझे जरूरत है॥

मेरे दोष नहीं देखे माँ,
नित मुझको अपनाया है।
मेरे अँधियारे पथ पर माँ,
तुमने दीप जलाया है॥

गुणी नहीं हूँ फिर भी माते,
तुमने कंठ लगाया है।
मेरे अँधियारे पथ पर माँ,
तुमने दीप जलाया है॥

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है।

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