श्रीमती प्रिया वर्मा
बेंगलोर(कर्नाटक)
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फागुन संग-जीवन रंग (होली) स्पर्धा विशेष…

होली में कमाल करे मेरे रसिया,
पी के धमाल करें,मेरे रसिया।
जबसे देखा भोला को भांग पीते,
होली में भांग पी के झूमते रहते।
दोनों हाथ में ले लाल-लाल गुलाल,
लगाए अपने हाथों से,अपने गाल।
खुब नाचेगावे करे बड़े शोर रसिया
मनावे भाभी, तो नहीं माने बतिया
चुपके जाए,पिया भांग पी के आए,
सास ननंद के सामने अंग से लगाए।
नीले-पीले रंग पिया तन में लगाए,
मुझको भी रंग में रह-रह के नहाए।
रंग-अबीर-गुलाल ले और पिचकारी,
चुपके रंग डाले देख के सखी हमारी।
ऐसी होली आई मैं फँसी जाल में,
इत है नन्दोई,उधर देवर की चाल में।
प्यारी ननंद का मेरी कहना है क्या,
बिना रंग लगाए उन्हें रहना है क्या।
मैं तो पी के संग,खूब खेली होली,
जिधर सुनती हूँ प्यार की ही बोली॥
परिचय – श्रीमती प्रिया वर्मा का शौक कविता लेखन है,साथ ही गीत-भजन गाना भी पसंद है। इनका निवास बैंगलोर (कर्नाटक)में है। आप स्नातकोत्तर तक शिक्षित एवं निजी विद्यालय में शिक्षक हैं।