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मायका

संजय जैन 
मुम्बई(महाराष्ट्र)

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बचपन की यादों को,
मैं भुला सकती नहीं।
माँ के आँचल की यादें,
कभी भूली ही नहीं।
दादा-दादी और नाना-नानी,
का लाड़ प्यार हमें याद है।
मौसी-बुआ का दुलार,
दिल से निकला नहीं।
वो चाची की चुगली,
चाचा से करना।
भाभी की शिकायत,
भैया से करना।
बदले में पैसे मिलना,
आज भी याद है।
और उस पैसे से,
चाट खाना याद है।
भाई-बहिनों का प्यार,
और लड़ना भी याद है।
भैया की शादी का वो दृश्य,
आँखों के समाने बार-बार आता है।
जिसमें भाभी की विदाई पर,
उनका जोर से रोना याद है।
खुद की शादी और विदाई का,
हर एक लम्हा याद आ रहा है।
माँ-बाप के द्वारा दी गई,
हिदायतें और नसीहतें
दिल में रखे हूँ।
मानो अपनी दुनिया खो आई हूँ।
माँ-बाप का आँगन छोड़ आई हूँ।
दिल में नई उमंगें लेकर,
पिया के साथ आई हूँ।
जो मेरे जीवन का,
अब आधार स्तम्भ है।
मानो मेरी जिंदगी का,
यही संसार है।
छोड़ा माता-पिता और,
भाई बहिनों को तो।
नये माता-पिता और ननंद-देवर,
भाई-बहिनों जैसे पाए हैं।
छोटी-सी दुनिया छोड़ कर,
बड़ी दुनिया में आई हूँ।
अब जवाबदारियों का बोझ,
स्वंय उठाकर चल रही हूँ।
पिया से मिल रहा स्नेह प्यार,
जिससे नई दुनिया बसाई
हूँ।
जो खुद कल बच्ची थी,
आज माँ बन के सामने आई हूँ।
और माँ का फर्ज मैं,
खुद निभा रही हूँ।
जिंदगी का चक्र,
ऐसे ही चलता रहेगा।
समय हमारे जीवन का,
यूँ ही निकलता रहेगा॥

परिचय–संजय जैन बीना (जिला सागर, मध्यप्रदेश) के रहने वाले हैं। वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। आपकी जन्म तारीख १९ नवम्बर १९६५ और जन्मस्थल भी बीना ही है। करीब २५ साल से बम्बई में निजी संस्थान में व्यवसायिक प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। आपकी शिक्षा वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ ही निर्यात प्रबंधन की भी शैक्षणिक योग्यता है। संजय जैन को बचपन से ही लिखना-पढ़ने का बहुत शौक था,इसलिए लेखन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। अपनी लेखनी का कमाल कई मंचों पर भी दिखाने के करण कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के एक प्रसिद्ध अखबार में ब्लॉग भी लिखते हैं। लिखने के शौक के कारण आप सामाजिक गतिविधियों और संस्थाओं में भी हमेशा सक्रिय हैं। लिखने का उद्देश्य मन का शौक और हिंदी को प्रचारित करना है।

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