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प्रकृति और प्राणी

एन.एल.एम. त्रिपाठी ‘पीताम्बर’ 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)

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प्रकृति और मानव स्पर्धा विशेष……..


छीति जल पावक गगन समीर पञ्च तत्व के मूल का शरीर,
पांच तत्व प्रकृति की जागीर जल ही जीवन जीवन की तासीर।

शुद्ध हवा साँस धड़कन का आधार मानव जीवन की खुशहाली-हरियाली,
झरना,नदियां और पहाड़ जल श्रोत की बुनियाद।

वन ही जीवन जंगल जल पृथ्वी पर्यावण के संस्कृति संस्कार,
जल संरक्षण वन संरक्षण स्वच्छ अवनि आकाश।

स्वस्थ मन मस्तिष्क का मानव,खुशबू खुशियों की युग सृष्टि चमन बहार,
ऋतुएँ मौसम युग मानवता के संग-संग।

आदि अनंत पृथ्वी के आवरण अस्तित्व अभिमान,
ऋतुएँ मौसम सामान्य युग का कल्याण।

सूरज चाँद सितारे धरा धन्य के श्रृंगार है सारे,
सुबह-शाम दिन और रात काल समय का प्रभा प्रवाह।

स्वच्छ वायु,शुद्ध,जल स्वस्थ,समबृद्ध समाज युग संसार,
चाँद और सूरज पर जाने की चाहत विज्ञान वैज्ञानिक युग का चरमोत्कर्ष चमत्कार।

विकास की अंधी दौड़ में अँधा हुआ है युग मानव अन्धकार में है भविष्य वर्तमान,
प्रकृति के प्यारे प्रकृति से प्रकृति उपमार्जक जीवन गायब।

चीता-शेर इतिहास हिस्सा बनने को तैयार,
गौरैया अब बच्चों की दादी माँ के किस्से का किरदार।

अँधाधुंध वृक्ष जंगल कट गए वायु दूषित जल दूषित मौसम ने चाल बदल दी,
अँधाधुंध विकास की होड़-दौड़ में उजड़ते जंगल पिघलते ग्लेशियर।

समुद्र तल की ऊंचाई पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा,
दुनियां के हर हिस्से में प्रतिदिन अवनि का दिल काँप रहा।

भूमि का कम्पन युग में लम्हा-लम्हा दुनिया को दहलाता,
नई-नई बीमारी,महामारी,बवंडर,तूफ़ान,सुनामी का कहर प्रकृति कोप का नया नाम।

मानव का प्रकृति के संग निहित स्वार्थ में निर्मम व्यवहार का परिणाम,
अक्सर भोगता,झेलता विकास के नाम पर मानव नित्य-नए अपने घर घरौंदों का निर्माता।

ब्रह्मांड के अन्य प्राण-प्राणी का घर जीवन छीनता,
ईश्वर की दुनिया में प्रकृति प्राणी प्राण के लिये अनिवार्य।

मानव खुद प्रकृति का अपने मतलब की खातिर लम्हा-लम्हा कर रहा सत्या नाश,
प्रकृति का क्रोध-कोप रौद्र रूप मौसम की रफ्तार बदल दी,चाल बदल दी।

गर्मी में बारिश,ठंडी में बारिश तपती धरती ठंडी में गर्मी का आलम,
प्रकृति ने उलटी करवट बादली,मानव के मंसूबों पर कस दी लगाम।

प्राणी,प्राण,प्रकृति एक-दूजे के लिये एक दूजे से एक-दूजे का भविष्य वर्तमान,
प्रकृति के संग मानव युग का जैसा व्यवहार युग की वैसी संस्कृति संस्कार।

मानव का कर्तव्य यही है पर्यावरण का संरक्षण हो,ना कोई प्रदूषण हो,
नेक नियति का मानव हो,युग की प्रकृति मनोरम हो।

स्वछ अवनि और आकाश,स्वच्छ पवन, पानी,
स्वस्थ मन-मस्तिष्क का प्राणी कायनात की तरक्क़ी-खुशहाली॥

परिचय–एन.एल.एम. त्रिपाठी का पूरा नाम नंदलाल मणी त्रिपाठी एवं साहित्यिक उपनाम पीताम्बर है। इनकी जन्मतिथि १० जनवरी १९६२ एवं जन्म स्थान-गोरखपुर है। आपका वर्तमान और स्थाई निवास गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) में ही है। हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री त्रिपाठी की पूर्ण शिक्षा-परास्नातक हैl कार्यक्षेत्र-प्राचार्य(सरकारी बीमा प्रशिक्षण संस्थान) है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त युवा संवर्धन,बेटी बचाओ आंदोलन,महिला सशक्तिकरण विकलांग और अक्षम लोगों के लिए प्रभावी परिणाम परक सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,नाटक,उपन्यास और कहानी है। प्रकाशन में आपके खाते में-अधूरा इंसान (उपन्यास),उड़ान का पक्षी,रिश्ते जीवन के(काव्य संग्रह)है तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-भारतीय धर्म दर्शन अध्ययन है। लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-पूज्य माता-पिता,दादा और पूज्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन हैं। विशेषज्ञता-सभी विषयों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा दे सकने की क्षमता है।
अनपढ़ औरत पढ़ ना सकी फिर भी,
दुनिया में जो कर सकती सब-कुछ।
जीवन के सत्य-सार्थकता की खातिर जीवन भर करती बहुत कुछ,
पर्यावरण स्वच्छ हो,प्रदूषण मुक्त हो जीवन अनमोल हो।
संकल्प यही लिए जीवन का,
हड्डियों की ताकत से लम्हा-लम्हा चल रही हूँ।
मेरी बूढ़ी हड्डियां चिल्ला-चीख कर्,
जहाँ में गूँज-अनुगूँज पैदा करने की कोशिश है कर रही,
बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ,स्वच्छ राष्ट्र, समाज,
सुखी मजबूत राष्ट्र,समाज॥

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