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शिव जैसा दानी नहीं

श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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शुभ सुहावना सोमवार दिन आया,
डम-डम डमरू शिवजी ने बजाया
नंदीगण नाचे छम-छम छमा-छम,
जब बजाएं शिव डमरू डमा-डम।

शिव जी को गौरी दूध से नहाई,
अपराजिता फूलों से दी सजाई
गोरे शिव के अंग,में भभूत लगाई,
भांग पीस कर,शिव को पिलाई।

भक्तों की भीड़ लगी है मंदिर में,
भांग,धतूरा सजा लिए थाली में
झूम-झूम के भक्तन भजन सुनाएं,
घंटी बजाय,शिव जी को जगाएं।

सुंदर नयन जब खोलें त्रिपुरारी,
भक्तन स्वर गूंजे हम हैं भिखारी
अज्ञानी,मुझ जैसा है नहीं,
दीजे आशीष जो राउर मन होई।

खाए बसहा,दूध फल और मिठाई,
गाय का दूध भक्त नाग को पिलाई
खाएं शिवजी भांग धतूरा के गोले,
तब भक्तन ला,शिव के मन डोले।

कहे,-कहो,मेरे पुत्र कैसे आया,
क्या,तुम्हारे घर संकट,आया
अन्न-धन से,तुझे भर देता हूँ,
कुल समेय जीवन दान देता हूँ।

हर्षित मन हो,भक्त चले हर्षाय,
बोलत चले मन में,नमः शिवाय।
भू पर मानव जैसा अज्ञानी नहीं,
सब देवों में शिव जैसा दानी नहीं॥

परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।

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