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ऑनलाइन राष्ट्रीय लघुकथा-काव्य गोष्ठी में राष्ट्रप्रेम व श्रृंगार से श्रोता हुए मंत्रमुग्ध

दिल्ली।

राष्ट्रीय संस्था हिंदी साहित्य भारती के तत्वावधान में ऑनलाइन अखिल भारतीय लघुकथा-काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें पूरे देश से जुड़े प्रख्यात साहित्यकारों,मनीषियों द्वारा राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत,सम-सामयिक,भक्ति और श्रृंगार से सराबोर गीतों,कविताओं एवं सुंदर लघुकथाओं की प्रस्तुति देकर रचनाकारों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया । अध्यक्षता डॉ. विकास दवे (सम्पादक-‘देवपुत्र’ पत्रिका)ने की,तो मुख्य आतिथ्य वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि प्रो. ओमपाल सिंह निडर (पूर्व सांसद)का रहा।
इस कार्यक्रम का शुभारम्भ श्रीमती प्रतिभा गुप्ता(लखनऊ) द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉ. दवे ने संस्था के मार्गदर्शक श्रीधर पराडकर,संस्था अध्यक्ष डॉ.रवीन्द्र शुक्ल एवं राष्ट्रीय मीडिया संयोजिका डॉ.रमा सिंह द्वारा इस संस्था के गठन एवं सुसंचालन के लिए हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित की। आपने कहा कि ,हिंदी साहित्य भारती के माध्यम से साहित्यानुरागियों,रचनाधर्मियों एवं समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को एकसाथ लाकर मंच समृद्ध करने का प्रयास सराहनीय है। साहित्य सृजन को भारत भूमि पर तपस्या माना गया है,अतः यह कार्य सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की पृष्ठभूमि को लेकर किया गया है। तुलसी द्वारा मुगल बादशाह के मनसबदारी हेतु दिए गए आमंत्रण को ठुकराए जाने का उदाहरण देकर उन्होंने सांस्कृतिक दर्शन पर प्रकाश डाला। निराला जी एवं सुभद्रा कुमारी चौहान की सृजनशीलता के उल्लेख के संदर्भ में कहा कि बुन्देले हरबोलों की वीर गाथाओं को सुनकर महारानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर कालजयी,अमर रचना लिखने का साहस सृजन का उत्कृष्ट उदाहरण है। अतः इस मंच के माध्यम से हम राष्ट्रहित-चिंतन में अपनी ऊर्जा एवं श्रम का समर्पण करें।
मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. ओमपाल सिंह निडर(फिरोजाबाद) ने भावपूर्ण वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह मंच हमारी राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत एवं हिंदी को परम वैभव तक ले जाने के लिए पूर्णतः सक्षम रहेगा। उन्होंने राष्ट्रभाषा,राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत अत्यंत ओजपूर्ण रचनाओं से माँ भारती का आह्वान किया,-‘मातु सिंहवाहिनी मैं द्वार पे खड़ा हूँ तेरे,कवि का निभाऊं धर्म ऐसा वरदान दे।’ इस क्रम को आगे बढ़ाते हुए कमल सक्सेना ने हृदयस्पर्शी गीत प्रस्तुत किया,-इस कदर हम जिंदगी से हार कर बैठे रहे,घर हमारा था मगर हम द्वार पर बैठे रहे।’ डॉ. वंदना गुप्ता ने ‘बोनसाई’ के रूप से पेड़-पौधों को छोटा किए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए भावपूर्ण लघुकथा प्रस्तुत की। अनिल चिंतित(चंडीगढ़) ने माँ पर भावपूर्ण रचना प्रस्तुत की-‘निवाला त्याग कर भूखी रही हमको खिलाया माँ,बड़ी तंगी भरे हालात में हमको पढ़ाया माँ..।’ डॉ. सुरेखा केरूर
(बेंगलुरु)ने ‘एकता’ शीर्षक से कविता पढ़ी,तो श्री सेवा सदन प्रसाद(मुम्बई) ने ‘एक छुपा हुआ किरदार’ प्रभावी लघुकथा प्रस्तुत की।मंजू पांडेय (उत्तराखंड) ने ‘आईना’ लघुकथा से जीवन की दुष्प्रवृत्तियों पर प्रहार किया। औरंगाबाद से नरेंदर कौर छाबड़ा ने ‘सुहाग चिह्न’ लघुकथा,अंकित शुक्ला ने राजभाषा हिंदी का वंदन गीत,अनंगपाल सिंह एवं डॉ. बरखा श्रीवास्तव(इंदौर)ने लघुकथा ‘आखिर तुम क्या करती हो’ पढ़कर नारी की सुसुप्त साधना को रेखांकित किया।
कार्यक्रम में संस्था अध्यक्ष डॉ. शुक्ल,डॉ. केशव देव शर्मा,रामचरण ‘रुचिर’,सूरजमल मंगल,डॉ.राजेन्द्र शुक्ल ‘सहज’,डॉ.लता चौहान एवं डॉ.जमुनाकृष्णराज आदि सदस्यों ने सम्मेलन का रसास्वादन करते हुए कवियों का उत्साहवर्धन किया।
संचालिका डॉ. योग्यता भार्गव(अशोक नगर) ने मंच,साहित्य मनीषियों व श्रोताओं का आभार प्रदर्शन किया।

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